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सपा के सीरियल का क्या होगा अगला एपीसोड? जानिए ब्रेक के बाद

महारथी अपने रचे चक्रव्यूह में खुद फंस गया है। सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह की रविवार को जो हालत रही उसे देखकर यही निष्कर्ष निकलता है। समाजवादी पार्टी और कुनबे को अपने सामने ही बिखरते देखने के मोड़ पर पहुंच गए हैं मुलायम सिंह, लेकिन उनके पारिवारिक महासंग्राम में द-एंड अभी नहीं आया है। सस्पेंस बरकरार है और अभी भी उम्मीद है कि टेलीविजन चैनलों की टीआरपी में सबसे भारी पड़ रहे सीरियल का शायद बहुत नाटकीय ढंग से सुखांत ही होगा।

बसपा के संस्थापक कांशीराम के साथ अंतिम समय में क्या हुआ था? उऩके परिवार के तमाम आरोपों के बावजूद मायावती ने जनता के बीच चुनाव जीतने की महारत दिखाकर उन सभी को अप्रासंगिक बना दिया है। लेकिन ऐसा नहीं है कि इससे संदेहों का सचमुच अंत हो गया हो। महापुरुषों के रहस्य उनके जीवन के कई दशकों बाद खुलने का जो दौर चल रहा है, कांशीराम के साथ जीवन के अंतिम समय में वास्तव में कोई साजिश हुई थी या इस तरह का दुष्प्रचार मायावती को बदनाम करने के लिए साजिशन किया गया था, आने वाला इतिहास इस उत्तर की प्रतीक्षा में रहेगा।

कांशीराम और मुलायम सिंह समकालीन रहे हैं और एक समय वे प्रदेश की सत्ता में पार्टनर भी रह चुके हैं। कांशीराम की नियति से उनकी नियति का मिलान कितना संगत होगा, यह विचार का विषय है। लेकिन मुलायम सिंह द्वारा रविवार को प्रदर्शित विचित्र और परस्पर विरोधी मुद्रायें कई सवालों को जन्म देने वाली हैं। क्या मुलायम सिंह को लेकर भी उन्हें जीवन के अंतिम दिनों में बंधक बनाये जाने का मिथक प्रचारित होगा? यह सवाल एक यक्षप्रश्न से कम नहीं है।

रविवार के दिन की शुरुआत मुलायम सिंह ने शिवपाल के साथ लखनऊ में सपा के कार्यालय में जा धमकने से की थी। इस दौरान उन्होंने अपनी और शिवपाल की नेमप्लेट अपने सामने फिर से लगवाई। इसके बाद अपने निजी सहायक जगजीवन से कार्यालय के सभी कमरों में ताला लगवाकर चाबी अपनी जेब में डाल ली और दिल्ली रवाना हो गये थे।

दिल्ली में जब वह अकेले कार्यकर्ताओं से बात कर रहे थे तो यह कहकर उन्होंने चौंका दिया कि अखिलेश जो कर रहा है, सही कर रहा है। जहां तक मेरा सवाल है मेरे पास बचा ही क्या है? सारे विधायक उसके साथ हैं। मेरे पास मुश्किल से आधा दर्जन विधायक हैं। आखिर वह मेरा लड़का है, मैं क्या उसे मार डालूं! इस तरह उन्होंने कार्यकर्ताओं को साफ यह संदेश देने की कोशिश की थी कि जैसा कि अखिलेश कहते हैं, वे ही उनके उत्तराधिकारी हैं इसलिए वे उनके करियर में कोई रुकावट नहीं डाल सकते। तदनुसार पार्टी के लोग उन्हीं के कहे मुताबिक चलें।

लेकिन मायावी अमर सिंह इस बीच शिवपाल के साथ उनके पास पहुंच गए और तीन घंटे की इनके बीच हुई मंत्रणा में मुलायम सिंह का मन फिर बदल गया और शाम को उन्होंने मीडिया से बात करते हुए पीछे हटने का इरादा छोड़कर राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद और साइकिल चुनाव चिन्ह के लिए निर्वाचन आयोग में पूरी ताकत से लड़ाई लड़ने की घोषणा कर दी।

रविवार को जब वे सुबह लखनऊ से रवाना हो रहे थे उस समय उन्होंने शाम तक सब कुछ ठीक हो जाने का यकीन बहुत सहजता से ही कराया था और कहा था कि जब विवाद है ही नहीं तो विवाद क्या सुलझाना। इसके बाद जब उन्होंने दिल्ली में पार्टी के कार्यकर्ताओं के साथ अकेले में अंतरात्मा की बात कही तो साफ हो गया कि मुलायम सिंह सब कुछ अखिलेश को सौंपकर तनावमुक्त होने की मानसिकता बना चुके हैं।

लेकिन फिर उनका इरादा क्यों बदला? उनके ऊपर किसका दबाव है। कौन उन्हें इमोशनली ब्लैकमेल कर रहा है जिससे वे अपने को असहाय महसूस कर रहे हैं? यह सारे सवाल एक अनसुलझी पहेली की तरह उत्तर प्रदेश के राजनीतिक परिदृश्य पर छाये हुए हैं। इस संदर्भ में कुछ घटनाओं पर विशेष रूप से गौर करने की जरूरत है। अमर सिंह को रविवार को ही केंद्र से जेड प्लस सुरक्षा मंजूर होने की जानकारी आयी। साफ है कि अमर सिंह के बहाने केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी उत्तर प्रदेश में अपना मतलब साधने की फिराक में है। अमर सिंह और प्रोफेसर रामगोपाल यादव, दोनों पर भाजपा का एजेंट होने का आरोप लग रहा है लेकिन अगर स्थितियों को देखें तो यह स्पष्ट है कि इस लड़ाई में भाजपा, अमर सिंह की मददगार है न कि रामगोपाल की। उन्हें यकायक जेड प्लस सुरक्षा मंजूर करने के पहले रामगोपाल के बेटे अक्षय यादव के खिलाफ यादव सिंह मामले में जांच को लेकर सीबीआई का जो बयान आया था, वह भी इसी बात की चुगली कर गया था।

सैफई परिवार में महाभारत छिड़ते ही अमर सिंह अपना इलाज कराने के लिए लंदन रवाना हो गए थे, लेकिन अपनी बीमारी की चिंता छोड़कर वे लौटे ही इसलिए ताकि पिता-पुत्र की लड़ाई में सबसे बड़ी भूमिका निभा सकें। अमर सिंह के पास कैसे-कैसे इल्म हैं, इसका खुलासा मुलायम सिंह के मुंह से ही हो चुका है जब उन्होंने सपा के राष्ट्रीय सम्मेलन में कहा कि अमर सिंह की मदद से ही आय से अधिक सम्पत्ति के सुप्रीम कोर्ट में चल रहे मामले में उन्हें छुटकारा मिल पाया था।

ऐसा लगता है कि पार्टी के सारे विधायक, पदाधिकारी, सांसद अखिलेश के साथ चले जाने से हताश मुलायम सिंह का मन पलटने के लिए अमर सिंह ने उन्हें दिलासा दिया कि कानूनी तौर पर रामगोपाल और अखिलेश अपनी कितनी भी मजबूती क्यों न कर लें लेकिन उन्होंने सब जगह मैनेज कर लिया है जिससे हर न्यायाधिकरण का फैसला अंततोगत्वा उन्हीं के पक्ष में आयेगा। एकांत बैठक में उन्होंने अपने दावे को लेकर कुछ ऐसे प्रमाणों के साथ मुलायम सिंह को आश्वस्त किया कि उनकी निराशा दूर हो गई। इसके पहले पत्रकारों के सामने भी अमर सिंह अपने पैंतरों की झलक दे चुके थे जब उन्होंने कहा था कि रामगोपाल ने जो दस्तखत चुनाव आयोग को सौंपे हैं वे फर्जी हैं। इनको सत्यापित करने में 8-9 महीने का समय लग जाएगा। मुलायम सिंह से दूसरी बात यह कही गई कि कोई उन पर बेटे के भविष्य को उजाड़ने का आरोप नहीं लगा पाएगा क्योंकि असली पार्टी का मामला लंबित हो जाने पर उन्हें अखिलेश को मनाने का पर्याप्त मौका मिल जाएगा। उनकी असली लड़ाई तो रामगोपाल से है, जिन्होंने प्रतिशोध की भावना से उनके खिलाफ यह बिसात बिछाई है। वे जैसे ही अखिलेश को अपनी ओर खींचने में सफल होंगे, रामगोपाल की सारी चालें पिट जाएंगीं। जो उनके लिए अपनी अपराजेय छवि अंतिम समय भी बनाए रखने के लिए जरूरी है।

शायद मुलायम सिंह पर इन्हीं बातों का असर हुआ है लेकिन उन्होंने तमाम तल्खी के बावजूद यह भी कहा है कि समाजवादी पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष मैं हूं। प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव हैं लेकिन मुख्यमंत्री भी अखिलेश यादव हैं। साफ है कि उनका पुत्र मोह अभी भी हिलोरे मार रहा है, इसलिए उन्हें अगर यह अहसास हो गया कि चुनाव आयोग में शह देकर वे अपने बेटे को ही नीचा दिखाने का काम रहेंगे तो वे जीत में भी मजा नहीं मानेंगे। इसलिये सोमवार तक मुलायम सिंह का रुख चुनाव आयोग के सामने जाने से ऐन पहले क्या होता है? यह जानने के लिए रुकते हैं एक ब्रेक के लिये।

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