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राजनीतिक पार्टी का कार्यकर्ता यानी एक Lollipop

राजनीतिक पार्टियों का अपना झंडा और प्रतीक चिन्ह के अलावा कुछ नहीं रहता। नेता बनने के लिए कार्यकर्ता का होना जरूरी होता है और उसका विश्वास जीतना फिर वह उस नेता को अपना  मसीहा समझने लगते हैं और अपने आप को उन के लिए समर्पित कर देते हैं। नेता इन्हीं लोगों की मदद से सगंठन मज़बूत करने में लग जाते हैं।

चुनाव आते ही टिकट पाने में लग जाते हैं और इन्हीं कार्यकर्ताओं के दम पर चुनाव मैदान में उतार जाते हैं। ऐड़ी-चोटी एक कर सभी चुनाव जीतने में लग जाते हैं। नेता जी चुनाव खत्म होते ही परिणाम पर आस लगाए अपने घर में बैठे रहते हैं। अगर जीत मिली तो पहली नज़र राजधानी के सरकारी आवास को आनन-फानन में हथियाने पर टिकी रहती है और हार की प्राप्ति होने पर घर के निजी कार्यो में लग जाते हैं।

कार्यकर्ता आगामी चुनाव तक अपने नेता के विरोधियों से हर बात पर लड़ता रहता है, बहुसंख्यकों के साथ चलने को मजबूर किया जाता है और प्रताड़ित भी। खुद के साथ परिवार भी शामिल किए जाते हैं।

कई सालों के समर्पण के पश्चात खुद को नेता बनते देखने की उम्मीद भी उन्हीं नेताओं के नए पीढ़ियों को लाने की कवायद में कुचल दिया जाता है। इसी प्रक्रिया में सारी जिंदगी वह किसी को ना तो खुश कर पाता ना ही किसी से प्यार बांट पाता। अपने परिवार से तो पूरी तरह अलग ही हो जाता है। दाद देनी चाहिए उन परिवार को जो हमेशा उसके साथ खड़ा रहता है और पाता कुछ भी नहीं।

नेता जी का क्या कहना कब टिकट पाने के लिए विरोधी पार्टी में ही चले जाए फिर इन कार्यकर्ताओं का क्या होगा जिसे विरोधियों से बैर करना सिखाया गया है।

धन्य हैं आप नेताजी।

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