Site icon Youth Ki Awaaz

“तनिक धीरे बोलो कोई भोजपुरी सुन लेगा तो मज़ाक उड़ाएगा।”

परदे में रहने दो परदा न उठाओ, परदा जो उठ गया तो भेद खुल जाएगा यह गाना मेरी सीमा चाची हमेशा गाया करती थीं और गाए भी क्यों न अपनी नज़रों मे वो एक धमाकेदार गायिका थीं। दिल्ली की कड़क सर्दी मे काम करते हुए भी वो ये ही गाना गुनगुना रही थीं। तभी दरवाज़े पर घंटी बजी तो चाची दरवाज़ा खोलने के लिए गई, दरवाज़ा खुलते ही जोरदार हंसी की आवाज़ आई तो मैं भी दरवाज़े पर पहुंच गया। देखा कि चाची की सखी मिश्राईन दरवाजे पर खड़ी थी और तभी मिश्राइन ने अपने भोजपुरिया अंदाज़ में बोलना शुरू कर दिया “ए सीमा का हाल बा ते त बहुत पातर लागताडे।” बस इतना ही बोलने की देरी थी कि चाची झिझियाके मिश्राईन को बोलीं “तनिक धीरे बोलो कोई भोजपुरी सुन लेगा तो मज़ाक उड़ाएगा।”

बात छोटी थी लेकिन माइने बहुत बड़े थे जो चोट कर गए। यह तो एक चाची की कहानी है, परंतु यह और भी लाखों, हज़ारों शहरी पुरबिया लोगों की कहानी को बयान करता जो चाची जैसी “कल्चरल शर्मिंदगी” नामक बिमारी से त्रस्त हैं। मज़े की बात तो यह है कि दो पंजाबी महिलाएं रोड पर बेझिझक पंजाबी भाषा का प्रयोग कर बात करती हैं, सभी प्रान्त के लोग चाहे मराठी हो या बंगाली, तमिल हो या तेलुगू; रोड पर अपनी बात अपनी भाषा में छाती ठोक कर करते हैं। पवन सिंह का मशहूर गीत “कमरिया करें लपालप लोलीपॉप लागेलू” ने गायक की कला और भोजपुरी की मधुरता के संगम के साथ बहुत ख्याति बटोरी और दिखा दिया कि भोजपुरी भी किसी से कम नहीं।

एक ओर शहरीकरण के पूरबिए मरीज हैं, जिन्हें इस भाषा में बात करने में शर्म आती है वहीं दूसरी ओर प्रेमचन्द ने इस भाषा की मधुरता, नटखटपन को परख, प्रेमचन्द से अद्वितीय लेखक मुन्शी प्रेमचंद तक का सफर तय कर लिया। एक बार एक बुद्धिजीवी ने कहा Those who cannot be faithful to their culture and language they cannot ever to faithful to anyone.

कॉलेज में अंग्रेजी का लेक्चर देने के लिए प्रोफेसर आई और आते ही वो अपने आप का परिचय देते हुए बोली “I am your English professor Rashmi I have done my PhD from Jawahar all Nehru university , I have been teaching here since 32 years and I have been fellow to university of Dublin and university of soka.” मैं टकटकी लगा कर देख रहा था कि वो मेरे पास आई और बोली नाम क्या है तुम्हारा मैंने जवाब दिया “रजत मिश्रा” तो वो बड़ी हँसी के साथ बोली “मेरी सहेली भी मिश्रा है और उनका कल्चर मुझे बहुत पसंद है और मेरे 32 साल के अनुभव में मैने सभी भाषाओं का अध्ययन किया पर भोजपुरी बहुत मधुर भाषा है।”

शायद प्रोफेसर उन बीमार शहरी पुरबिया लोगों से कम होशियार थीं कि उसे यह भाषा बोलने में शर्म नहीं आई और या फिर हम प्रोफेसर जितने समझदार नहीं है कि भोजपुरी की मधुरता को समझ नहीं पाए। पुरबिया पढ़े-लिखे लोग अपने बच्चों को भोजपुरी बोलने पर मारते हैं और कहते हैं कि अगर भोजपुरी बोलना सीख गया तो…………………….. भेद खुल जाएगा।

Exit mobile version