विश्वपुस्तक मेला 2017 एक नये आयाम और युवाओं को पुस्तकों तथा टेक्नोलॉजी बुक्स के अलावा ई-पेपर, ई-उपन्यास और ई-वाचन के माध्यम से समाप्त हो गया। [envoke_twitter_link]यह पुस्तक मेला कई माइनों में कुछ अलग सा दिखा।[/envoke_twitter_link] पुस्तकों की भरमार के साथ इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से पढ़ने-पढ़ाने और भाषा, कहानी, कविता, व्यंग्य, सिनेमा, धर्म निरपेक्ष, साम्प्रदायिकता पर चर्चा, बहस, खुली बहस, मुददों से भागने, सरकारी मंच से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पहली बार दिखाई दी।
जहां तक साहित्य का सवाल है, साहित्य पर खुलकर चर्चा हुई। बाल मण्डप में बच्चों की प्रस्तुतियों ने लेखकों, आलोचकों और आयोजकों के कान खड़े कर दिए- बच्चों का कहना था- हमें बच्चा न समझें? हिन्दी और अन्य भाषाओं के अलावा धर्म से संबंधित सामग्री भी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध थी। अपने-अपने धर्म के हिसाब से विशेष परिधानों में ज्ञान बांटते हुए लोग दिखाई दिए। ज्ञान-विज्ञान के अलावा बच्चों को रोज़गार से जुड़ी बातें दिखाने और प्रदर्शित करने का सफल प्रयास था।
मैं मुददे की बात पर आता हूं। [envoke_twitter_link]यह पुस्तक मेला यूथ को समर्पित था।[/envoke_twitter_link] मेरी बात से आप अवश्य सहमत होंगे। सभी पंडालों में युवाओं की भरमार थी। किसी भी पंडाल में घुस जाइये, युवाओं को किताबों से जूझते हुए, छांटते हुए, विमर्श करते हुए देखा गया।
पूरे पंडाल में एक विचित्र बात दिखाई दी। मलयालम मनोरमा का छोटा पंडाल। युवाओं को मलयालम मनोरमा के पंडाल पर मलयालम मनोरमा की हिन्दी ईयर को खरीदते और वहीं पर सामग्री का पठन करते देखा गया। मैने एक युवा से पूछा- मलयालय पर आप क्यों? आपको मलयालम आती है क्या? उसने ना में सिर हिला और मेरे सामने मलयालम मनोरमा की हिन्दी ईयर बुक सामने कर दी। मैंने जिज्ञासावश पूछा-इसमें क्या है? उसने सीधे सपाट शब्दों में कहा यह पुस्तक हर वर्ष मैं खरीदता हूं, अपने लिए और अपने दोस्तों के लिए, क्योंकि इसमें देश और विदेश की राजनीतिक घटनाओं से लेकर साहित्य, इतिहास, ज्ञान के साथ-साथ विज्ञान भी समाहित है।
अगर आप युवा हैं और आपकी आवाज़ यूथ की आवाज़ है तो इसे बिना पढ़े आप यूथ की आवाज़ को नहीं पहचान सकते हैं। इसमें युवाओं के लिए वह समस्त सामग्री है, जिससे युवाओं को रोज़गार, ज्ञान, सामान्य ज्ञान, भौगोलिक स्थिति के बारे में पूरे विस्तार से और प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध है। इसी पुस्तक की तर्ज पर अमर उजाला ने भी अपना वार्षिक विशेषांक निकाला है। मलयालम मनोरमा पर केवल हिन्दी ही अन्य दो-तीन भाषाओं के युवाओं को पढ़ते-खरीदते देखा। जिनमें बांग्ला़, मलयालम, अंग्रेजी और तमिल शामिल है।
पुस्तक मेले में हिन्दी की बात कहें तो डॉ0 लालित्य ललित के मार्गदर्शन में व्यंग्य की जो प्रस्तुतियां हुई वह आश्चर्यजनक रूप से अति प्रशंसनीय थी। माटी के गीतों को लिए निलोत्पल ने दर्शकों की सभी सीमाओं को तोड़ दिया। मंच छोटा और दर्शक दीर्घा दूर तक फैल गई।
चेतना इंडिया के बैनर तले श्रीमती मृदुला श्रीवास्तव की पुस्तक का ”काश पंडोरी न होती” का विमोचन और विमर्श ने पाठकों का मन मोह लिया। श्री रमेश तिवारी की आलोचना ने पुस्तक पढ़ने और खरीदने के पाठकों को उद्धेलित कर दिया। बाल मण्डप में चेतना इंडिया के सानिध्य में बच्चों की कविताओं का पठन हुआ, जिसमें शबाना की कविता बेटी बचाओ पर दर्शक झूमने के साथ-साथ द्रवित भी हो गए। मंच संचालन सुनील जैन ”राही’ ने किया था।
कुल मिलाकर 2017 का यह विश्व पुस्तक मेला सार्थक रहा। युवा यानी यूथ की आवाज़ हमेशा बुलंद रही है और आगे भी ऐसे आयोजनों का होना जारी रहेगा, यूथ और यूथ की आवाज़ देश के आभा मंडल पर लहराता रहेगा।
फोटो आभार: गेटी इमेजेस