आज देशभर में दो शब्द जनता को खासे प्रभावित करने वाले दिख रहे हैं उनमें से एक है नोटबंदी तो दूसरा है शराबबंदी। अगर दोनों मुद्दों को बारीकी से देखें तो ये कहीं ना कहीं राजनीतिक पार्टियों के चुनावी वादों का ही हिस्सा नज़र आते है। केंद्र सरकार ने जनता से कालाधन मुक्त भारत के वादे के अनुसार नोटबंदी का ऐलान किया तो वहीं बिहार सरकार ने महिलाओं से किए अपने वादे के अनुसार पूरे प्रदेश में शराबबंदी का फैसला किया।
नोटबंदी का मूल कारण देश का काला धन बाहर लाना और अर्थव्यवस्था से नकली नोटों के चलन को रोकना है। शराबबंदी की मूल वजह प्रदेश में घरेलू हिंसा ,असहजता आदि को खत्म कर समाजिकता को बढ़ावा देना है। पिछले कुछ मामलो को छोड़कर यह कानून अपने धुरी पर खड़ा भी उतरता दिख रहा है। मगर नोटबंदी के ढाई महीने के बाद भी आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल द्वारा यह कह कर पल्ला झाड़ रहे हैं कि उन्हें अब तक जमा नोटों की संख्या ही नहीं पता है। यह दिखाता है कि वह अपनी जवाबदेही से बच रहे हैं।
बहरहाल ,इन दोनों मुद्दों में कुछ सामान्य बात भी है। उसमें पहली बात यह है कि देश की जनता को लंबी-लंबी कतारो में लगना पड़ा, हां वो अलग बात है कि नोटबंदी के दौरान लोगों को मजबूरी में बैंकों के बाहर लगाना पड़ा। मगर वही बिहार में शराबबंदी( नशा-मुक्ति) के दौरान मानव श्रृंखला बनाते हुए उसके समर्थन में लाइन में खड़ा होना पड़ा। दूसरी सामान्य बात है गड़बड़ी, शराबबंदी के बावजूद पूरे बिहार में कई ऐसे मामले सामने आए जहां अवैध शराब का कारोबार चलाया जा रहा था तो दूसरी और नोटबंदी के बाद देश के कई हिस्सों में बैंक कर्मियों द्वारा कमीशन पर काले धन को सफ़ेद करने की कवायद सामने आई।
हालांकि, जिस प्रकार नोटबंदी के बाद पूरे देश में इसके लागू करने और इससे उभरने के उपायों पर सवाल उठाया जा रहे हैं उसी प्रकार शराबबंदी पर जारी कड़े कानून की भी विपक्ष ने कड़ी आलोचना की। आलोचना की वजह ये थी कि शराब पीने वाले को तो सजा मिलेगी ही इसके साथ-साथ घर में पकड़े जाने पर परिवार वालों को भी इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा।
शराबबंदी के बाद से बिहार सरकार को करीब 4000 करोड़ का वार्षिक रूप से घाटा हो रहा है मगर परोक्ष रूप से देखे तो प्रदेश में शराबबंदी के बाद से सड़क दुर्घटना, मारपीट आदि की घटनाओं में कमी तो आई ही है। साथ ही गरीब वर्ग के लोगों की जिंदगी में राहत भी लाई है जो कि एक फायदे का सौदा है। मगर दूसरी और नोटबंदी के बाद से घाटे का तो अब तक कुछ स्पष्ट पता नहीं, हां मगर फायदा बहुत कम होता दिख रहा है।