रोज़-रोज़-रोज़ कोई आग लगावेला
बांटे-बंटवारे के नारा लगावेला
गोला-बारूद के ढेर लगावेला।
रूस से कह दो, हथियार सारा छोड़ दे..
कह दो अमरीका से, एटम बम फोड़ दे..
दुनिया झमेले में, दो दिन के मेले में।
ये बलेसर यादव के गीत हैं। कौन कहता है कि बालेश्वर यादव गुज़र गए। [envoke_twitter_link]बलेसर अब जाके ज़िंदा हुए हैं।[/envoke_twitter_link] इतना ज़िंदा कभी नहीं थे मन में जितना अब हैं….मन करता है रोज़ गुनगुनाया जाए बलेसर को। कमरे में, छत पर, नींद में, सड़क पर, संसद के सामने, चमचों के कान में, सभ्य समाज के हर उस कोने में जहां काई जमी है। आज, कल, परसों, बरसों…ठीक है कि बलेसर ने चलताऊ किस्म के गाने भी ख़ूब गाए, मगर अपनी महफिलों में वो कोई न कोई सामाजिक संदेश ज़रूर छोड़ते थे।
लेकिन ज़्यादातर मीडिया की बुरी आदत ये है कि मसाला ज़्यादा खिलाती है और हाजमा ख़राब कर देती है। बलेसर यादव की इमेज बनाने में भी उसने यही किया। गौर इसपर भी करिए कि, भोजपुरिया दर्शकों की परवरिश ही ऐसी हुई है। वो लार टपका कर ही कोई भोजपुरी का प्रोग्राम देखने बैठता है। तो [envoke_twitter_link]बलेसर अपना ‘टार्गेट ऑडिएंस’ समझते थे।[/envoke_twitter_link] सोशल मार्केटिंग समझते थे। बिना कोई डिग्री लिए। वो रई..रई..रई से कोई रसीला शो शुरू करते और ऐसा गीत भी गाते जिसमें वो कहते –
‘दुश्मन मिले सवेरे, लेकिन मतलबी यार न मिले।
हिटलरशाही मिले, चमचों का दरबार न मिले।..’‘
ये दोष बलेसर का कम था, दर्शकों और हमारे भोजपुरी समाज का ज़्यादा कि उन्हें ऐसे तीखे तेवर वाले सामाजिक गीत सुनने से पहले दो-चार अश्लील गीत सुनाने पड़ते। बलेसर उसी उत्तरप्रदेश से हैं जहां अाज भी चुनाव प्रचार में भीड़ जुटाने से पहले डांस कराने की ज़रूरत पड़ती है। फिर झूठे वादे, फिर रैली ख़त्म। इससे बेहतर थे बलेसर के गीत। सीधा चोट करते।
[envoke_twitter_link]कलाकार कभी नहीं मरते। वो मरने के बाद और ज़िंदा होते हैं।[/envoke_twitter_link] बार-बार याद आते हैं। अगर हम सिर्फ महुआ टीवी पर बलेसर को ढूंढेगे, हमें अपने ढूंंढने पर अफसोस करना होगा।
इंटरनेट पर शायद ही कहीं बलेसर के वीडियो उपलब्ध हैं…मुझे चैनल के लिए आधे घंटे का प्रोग्राम बनाने का मौका मिला था, तो उनके कुछ वीडियो मऊ से मंगाए गए, जहां के थे बलेसर….वो अपलोड कर पाऊंगा कि नहीं, कह नहीं सकता मगर, इन गीतों के बोल डेढ़ घंटे बैठकर कागज़ पर नोट किए…..हो सकता है, लिखने में कुछ शब्द गच्चा खा रहे हों, मगर जितना है, वो कम लाजवाब नहीं….भोजपुरी से रिश्ता रखने वाले तमाम इंटरनेट पाठकों के लिए ये सौगात मेरी तरफ से….जो भोजपुरी को सिर्फ मौजूदा अश्लील दौर के चश्मे से देखते-समझते हैं, उनके लिए इन गीतों में वो सब कुछ मिलेगा, जिससे भोजपुरी को सलाम किया जा सके….रही बात अश्लीलता की तो ये शै कहां नहीं है, वही कोई बता दे…[envoke_twitter_link]जिय बलेसर, रई रई रई….[/envoke_twitter_link]
दुनिया झमेले में, दो दिन के मेले में…
कोई ना बोलावे, बस पइसा बोलावे ला..
कोई ना नचावे, बस पइसा नचावे ला…
देस-बिदेस, बस पईसवे घुमावेला
ऊंच आ नीच सब पईसवे दिखावेला…
साथ न जाएगा, पईसा ई ढेला
पीड़ा से उड़ जाई, सुगना अकेला….
रूस से कह दो, हथियार सारा छोड़ दे,
कह दो अमरीका से, एटम बम फोड़ दे…
दुनिया झमेले में….
आजमगढ़ वाला पगला झूठ बोले ला…
अरे झूठ बोले ला…साला झूठ बोले ला…
[envoke_twitter_link]बिदेसी दलाल है, कमाया धन काला, साला झूठ बोले ला…[/envoke_twitter_link]
समधिनिया के बेलना झूठ बोले ला…
श्यामा गरीब के, सोहागरात आई आई..
श्यामा औसनका के, सोहागरात आई आई..
जे दिन ‘बलेसरा’ पाएगा, ताली-ताला, साला झूठ बोले ला…
आजमगढ़ वाला पगला झूठ बोले ला…
हिटलरशाही मिले, चमचों का दरबार न मिले…
ए रई रई रई…
दुश्मन मिले सवेरे, लेकिन मतलबी यार ना मिले….
चित्तू पांडे, मंगल पांडे, मिले भगत सिंह फांसी..
देस के लिए जान लुटा दी, मिले जो लोहिया गांधी…
हिटलरशाही मिले, चमचों का दरबार ना मिले…
दुश्मन मिले सबेरे, लेकिन मतलबी यार ना मिले…
और ये भी…
सासु झारे अंगना, पतोहिया देखे टीभी….
बदला समाज, रे रिवाज बदल गईले…
भईया घूमे दुअरा, लंदन में पढ़े दीदी….
सासु झारे अंगना, पतोहिया देखे टीभी….
अगर गीत अच्छे लगे हों तो ये भी बताइए कि ढोल-मंजीरे के साथ कब बैठ रहे हैं खुले में….मिल बैठेंगे दो-चार रसिये तो जी उठेंगे बलेसर