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कश्मीर में बंदूकों के साये में मज़बूत होती क़लम

“गर फिरदौस बर रूए ज़मीं अस्त, हमीं अस्त ओ हमीं अस्त ओ हमीं अस्त।” अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध कश्मीर के विषय में यह शेर अमीर खुसरो ने यूं ही नहीं कहा था। कश्मीर को क़रीब से देखने पर आप भी इसे ईश्वर का वरदान ही कहेंगे। बर्फीली वादियों में लहलहाते हरे-भरे पेड़ अपने आप में जन्नत समेटे हुए हैं और इसीलिये कश्मीर को भारत का स्विट्जरलैंड कहते हैं।

केसर और सेब उगाने के मामले में तो कश्मीर ने अपना लोहा दुनिया से मनवाया ही है, इसके अलावा अब कश्मीर शिक्षा के मामले में भी दिनों दिन आगे बढ़ रहा है। जी हाँ! वही कश्मीर जो आज़ादी के बाद से अब तक अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है, जो कभी खोखले राजनैतिक समझौतों द्वारा छला जाता है तो कभी सीमा विस्तार की कट्टर महत्वाकांक्षाओं का शिकार बनता है। अपने दामन में जन्नत सी खूबसूरती संजोए वादियों में अब बंदूकें लहलहाना और फौजी पहरे आम बातें हैं।

लेकिन तनाव के ऐसे माहौल में भी कश्मीर एक नई करवट ले रहा है। क्या यह करवट अपने साथ बदलाव लाएगी, यह तो समय ही बताएगा लेकिन आइए आपको मिलवाते हैं कुछ ऐसे लोगों से जिन्होंने सिद्ध किया कि दहशत के माहौल में भी प्रतिभा अपना लोहा मनवा ही लेती है।

आमिर खान द्वारा निर्देशित फिल्म ‘दंगल’ में गीता फोगाट के बचपन का किरदार निभाने वाली जायरा वसीम ने जम्मू-कश्मीर बोर्ड की दसवीं की परीक्षा में 90 फीसदी से ज़्यादा अंक हासिल किए हैं। जायरा ने कश्मीर घाटी में चले सबसे लंबे हिंसा चक्र का सामना करते हुए यह उपलब्धि हासिल की है। श्रीनगर के पुराने शहर की रहने वाली जायरा वसीम ने दसवीं बोर्ड की परीक्षा में 92 फीसदी अंक हासिल कर घाटी के सबसे मुश्किल दौर में अपना लोहा मनवाया है। बीते गुरुवार को कश्मीर की दसवीं बोर्ड की परीक्षाओं के नतीजे घोषित किए गए। हिंसा की वारदातों के बीच परीक्षाओं का आयोजन भी मुश्किल था। आखिरकार जब परीक्षा हुई तो 99 फीसदी बच्चे इसमें शामिल हुए।

ज़ायरा वसीम परीक्षा देने के साथ-साथ फिल्म की शूटिंग भी कर रही थी। इसके बावजूद 92 फीसदी अंकों के साथ उन्होंने ए ग्रेड हासिल किया। सोलह वर्षीय जायरा सेंट पॉल्स इंटरनेशनल अकेडमी की छात्रा हैं। जायरा की इस उपलब्धि से उनके घर में खुशी की लहर दौड़ गई है। उल्लेखनीय है कि कश्मीर दसवीं बोर्ड परीक्षा के नतीजे 83 फीसदी रहे, जिनमें 84.61 प्रतिशत लड़के और 81.45 प्रतिशत लड़कियां हैं।

इससे पहले कश्मीर के बांदीपुरा ज़िले की रहने वाली नौ वर्षीय तजामुल इस्लाम ने वर्ल्ड किक बॉक्सिंग चैंपियनशिप में परचम लहराकर अपना लोहा दुनिया से मनवाया था। कश्मीर की इस बेटी ने बहुत कम उम्र में ही किकबॉक्सिंग की शुरुआत की थी। जम्मू में पिछले साल हुए राज्य स्तरीय मुकाबले में उन्होंने स्वर्ण पदक जीता था। मुकाबला जीतने के बाद तजामुल ने कहा था, “मैंने जब अपने प्रतिद्वंद्वी को देखा तो डर गई लेकिन याद किया कि मुकाबले में किसी की उम्र या डील-डौल से कोई फर्क नहीं पड़ता। मैंने तय किया कि प्रदर्शन पर ज़ोर दूंगी और अपना बेस्ट दिखाऊंगी।”

कश्मीर के ही निवासी अतहर आमिर उल शफी को कौन नहीं जानता, उन्होंने पिछले वर्ष यूपीएससी की परीक्षा में दूसरी रैंक हासिल की थी। अतहर कहते हैं कि “पिछले वर्ष मेरी रैकिंग कम थी इसीलिए मुझे आईआरटीएस दिया गया था परंतु मैंने नौकरी शुरू की।” आईएएस को अपनी पहली पसंद बताने वाले अतहर ने नौकरी के साथ परीक्षा में भी बैठने की योजना बनायी। उनके पिता स्कूल में बतौर शिक्षक कार्यरत हैं। अतहर को वर्ष 2009 में कश्मीर घाटी के शाह फैसल के लोक सेवा परीक्षा में सर्वोच्च स्थान हासिल करने के बाद आईएएस बनने की दिलचस्पी पैदा हुई। वे कहते हैं कि उनका सपना साकार हो गया है अब वह लोगों की बेहतरी के लिए काम करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ेंगे। जम्मू-कश्मीर कैडर का चुनाव करते हुए उन्होंने कहा था कि, “मुझे वहां काम करने का मौका मिला तो खुशी होगी। मुझे लगता है कि मेरे राज्य के लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करने की बहुत गुंजाइश है।”

इतना ही नहीं बल्कि यूपीए शासन काल में फांसी की सजा पाने वाले अफज़ल गुरु के बेटे गालिब गुरु ने भी पिछले वर्ष कश्मीर बोर्ड की दसवीं की परीक्षा में शानदार प्रदर्शन करते हुए 95 प्रतिशत अंक हासिल किए थे। गालिब ने कहा था कि वह डॉक्टर बनना चाहता है। जब वह अपने पिता से मिलने जेल गया था तब उसके पिता ने उसे एक साइंस की पुस्तक और पैन दिया था।

यह ख़बरें इस बात का प्रमाण हैं कि भले ही कश्मीर घाटी में हिंसा है, अशांति है लेकिन इसके बावजूद वहां के लोगों में शिक्षा के लिए उतना ही अधिक उत्साह भी है। उनके अंदर एक ऐसा कश्मीर बनाने की ललक भी है जिसमें दहशत नहीं बल्कि भाईचारा हो, लेकिन अफसोस चंद लोग सिर्फ अपने राजनीतिक फायदे के लिए कश्मीर मुद्दे पर घटिया राजनीति करते हैं लेकिन उन्हें मालूम हो कि अब कश्मीर शिक्षा को अपना हथियार बना रहा है, धीरे ही सही लेकिन शिक्षा को लेकर एक अच्छी शुरुआत घाटी में हो चुकी है।

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