Site icon Youth Ki Awaaz

“बारात से बचा खाना भले ही कुत्‍ते खा जाएं, मगर बारात को ढोने वाला भूखा ही जाएगा”

मुन्‍ने खां जोर से अखबार पढ़ने के लिए बदनाम थे। आज भी वे जोर-जोर से अखबार पढ़ रहे थे। इस साल 56 दिन शादी होंगी। झम्‍मन मियां गुज़रते-गुज़रते रुक गएं। खुदा का शुक्रिया करते हुए ठेकदार के घर की ओर दौड़ गए। इस साल 56 दिन तक उन्‍हें हंडे उठाने का काम मिल गया।

बारात शबाब पर थी। नाचने वाले नाच रहे थे। कौन सा नाच हो रहा था, इससे मतलब नहीं था। सभी बस नाच रहे थे। किसी को मिर्गी का दौरा पड़ा, कोई चप्‍पल उठाने के लिए नीचे झुका जा रहा था, कोई फल तोड़ने की मुद्रा में ताड़ासन कर रहा था। कुछ पानी के पेग गिलास के दो घूंट मार फेंक रहे थे, कुछ कोकाकोला में मदिरा मिलाकर पीकर झूम रहे थे। एक ही गाना बजा-बजा कर बाजे वाले परेशान थे- ‘’पीता नहीं हूं पिलाई गई है’’। कुछ होश में तो कुछ होश में न होने का नाटक कर रहे थे। कुछ रईस होने के नाटक कर हाथ में सबसे छोटा दस का नोट उड़ा रहे थे। बच्‍चे और बूढ़े नोट उठाने के लिए बारात के भीतर घुसने की कोशिश में गिर-पड़ रहे थे।

मियां झम्‍मन तीन बार अपनी दाढ़ी पर हाथ फेर चुके थे। चालीस रुपये का इज़ाफा दिहाड़ी में हो चुका था। ठेकेदार ने भी उन्‍हें कह दिया था, जितने घर में हैं, सबको लगा दो। 800 रुपये की दिहाड़ी बन जाएगी। ईनाम मिलेगा, वो तुम्‍हारा।

उनके सामने बारात की दूसरी तरफ जमीला खड़ी थी। उसके पास रुबीना और अफजल तथा नन्‍हें के पीछे अनीसा थी। अनीसा सबसे छोटी थी। उसकी उम्र 15 साल थी। आज वह पहली बार हंडा उठाने आई थी। जैसे-जैसे रात बढ़ रही थी, बारात के शबाब के साथ-साथ ठंड भी बढ़ रही थी। कपड़ों के नाम पर वह सलवार और कुर्ती पहने थी। दुपट्टा नहीं था उसके पास, जिससे वह अपने कान बांध सके। जब ठंड का प्रकोप ज्‍यादा बढ़ा तो उसने हंडे को कमर से नीचे उतारा और ज़मीन पर रख दिया। अब उसने हंडे से अपने शरीर को सटा लिया। अपने गाल हंडे के ऊपर टिका लिए। ठंड से अनीसा ही परेशान नहीं थी,बल्कि मियां झम्‍मन भी बार- बार ठंड से बचने के लिए अपनी लुंगी को समेट कर इकट्ठा करने की कोशिश में लगे थे। दूसरी ओर उनका ध्‍यान उन छोकरों पर था, जो दस-दस के नोटों की गड्डी लिए खड़े थें।

बारात पंडाल के पास पहुंचने वाली थी। सभी नृत्‍य कला के प्रदर्शन की भरसक कोशिश में जुट गए। पटाखे छोड़ने वालों का आखिरी मुकाम आ चुका था। जितने पटाखे चलाने हैं, उसका आखिरी मौका था। यह सभी के लिए आखिरी मौका था। नोट उड़ाने वाले भी इसी समय का इंतजार कर रहे थे।

एक मनचले ने 5000 रुपये वाली पटाखों की लड़ी ठीक बारात के बीच में लगा दी। उसी समय एक लड़के ने दस-दस के नोट उड़ाने शुरू कर दिए। हर तरफ अफरा-तफरी मच गई। ठीक उसी तरह जब मुर्दे को घर से उठाया जाता है और घर की महिलाएं एक साथ उसे रोकने के लिए विलाप के साथ टूट पड़ती हैं। इस हड़बडी में जैसा होता है वैसा ही इस बारात में भी हुआ। नोटों को उठाने और पटाखों से बचने के चक्‍कर में मियां झम्‍मन जमीन पर धड़ाम से गिर पड़े। बारातियों को फुरसत नहीं थी, उन्‍हें उठाने की। अनीसा ने भागकर उठाया, लेकिन झम्‍मन के घुटने में खरोंच से खून निकल आया।

बारात का शबाब समाप्‍त हो चुका था। झम्‍मन घायल घुटनों के साथ परिवार के साथ घर की ओर चल पड़े। मियां झम्‍मन को इस बात का दुख रात भर सालता रहा-आखिरी के दो-तीन दस-दस के नोट नहीं उठा पाए। बारात के पटाखों से झम्‍मन ही नहीं और जानवरों के साथ-साथ उस इलाके में रहने वाले लोग भी परेशान थे, लेकिन दूल्‍हें की मैयत में सब कुछ भूल गए थे।

हर बारात में झम्‍मन होता है। कभी बाजे वाले, कभी हंडे वाले, कभी बिजली वाले, कभी हाथ ठेला चलाने वाले के रूप में पाये जाते हैं। झम्‍मन बारात के गुज़र जाने के बाद घर जाकर रोटी खाते हैं। बारात से बचा खाना भले ही कुत्‍ते खा जाएं, लेकिन बारात को ढोने वाला झम्‍मन हमेशा भूखा ही जाएगा।

Exit mobile version