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जानिये क्या है जल्लीकट्टू

तमिलनाडु में मकर सक्रांति का पर्व पोंगल के रूप में मनाया जाता है। इस अवसर पर एक खास बैल दौड़ का आयोजन किया जाता है, यह तमिलनाडू का चार सौ वर्ष पुराना पारम्परिक खेल है। इसमें 300 – 400 किलो के सांडों के सींघो में सिक्का फंसाया जाता है फिर उन्हें भड़का के भीड़ में छोड़ दिया जाता है। जल्लीकट्टू खेल का ये नाम सल्ली कासू से पड़ा है। सल्ली का मतलब सिक्का और कासू  का मतलब सींघो से बंधा हुआ। सींघो में बंधे सिक्के को हासिल करना इस खेल का मकसद होता है, धीरे -धीरे सल्लीकासू का ये नाम जल्लीकट्टु हो गया।

विवाद 

इस खेल के दौरान जानवरों के साथ की जाने वाली क्रूरता जैसे कि जानवरों को भड़काने के लिए उन्हें शराब पिलाना और उनकी आँखों में मिर्च लगाना आदि के खिलाफ पेटा जैसे कई पशु अधिकार संगठनों ने आवाज उठाई। साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने जानवरों के साथ हिंसक बर्ताव देखते हुए प्रिवेंशन ऑफ क्रूअलटी टू एनिमल एक्ट के तहत इस खेल पर बैन लगा दिया था। आंकड़ों की बात करे तो पिछले 20 सालों में जल्लीकट्टू की वजह से मरने वालों की संख्या 200 से भी ज़्यादा थी। वहीं साल 2010  से 2014 के बीच जल्लीकट्टू खेलते हुए 17 लोगों की जान गई और 1000 ज्यादा लोग जख्मी हुए।

लोकप्रियता

इस खेल की लोकप्रियता का अंदाज़ा आप इसी से लगा सकते हैं कि एक कॉर्पोरेट कंपनी के सीईओ ने अपने कर्मचारियों को जल्लीकट्टू के लिए विरोध प्रदर्शन में जाने के लिए छुट्टी दे दी।

कई संस्थाएं और NGO लोगों को फ्री में भोजन बाट रही हैं, कल हज़ारों युवाओं और स्टूडेंट्स ने मरीन बीच में प्रदर्शन किया।

 

 

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