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यहाँ चुनाव जितवाने के आर्डर लिए जाते हैं।

कड़ाके की सर्दी के बीच भारत में चुनावों की सरगर्मी को आसानी से महसूस किया जा सकता है और इस सरगर्मी का केंद्र बन चुका है – लखनऊ। लखनऊ का मिजा़ज सचमुच में नवाबी है। यहां जो होता है, वक़्त की नजा़कत और नफासत के हिसाब से होता है। [envoke_twitter_link]2014 के लोकसभा चुनाव से भारत की राजनीति में जो बदलाव शुरू हुआ था[/envoke_twitter_link], लखनऊ ने उसे कई गुना आगे बढ़ाने का काम किया है।

लोकसभा एवं बिहार के नतीजों ने एक बात तो साबित कर दी है कि [envoke_twitter_link]अब चुनाव जीतना सिर्फ अकेले राजनीतिक पार्टी के वश की बात नहीं रही।[/envoke_twitter_link] आक्रामक और लोक-लुभावन प्रचार शैली की मांग के कारण भारतीय राजनीति में ‘चुनाव मार्केटिंग विशेषज्ञ’ एवं ‘व्यवसायिक राजनीति रणनीतिज्ञ’ के एक नए वर्ग को जन्म दिया है जिसके कारण आम शिक्षित युवाओं की राजनीति में दिलचस्पी और भी बढ़ने लगी है। भारी संख्या में आई.आई.टी., आई.आई.एम., एवं अन्य बड़े संस्थानों के ग्रेजुएट्स इस तरह के संगठनों से जुड़ने लगे हैं।

उत्तरप्रदेश विधानसभा का चुनाव सभी राजनीतिक पार्टियों के लिए अत्यंत ही महत्वपूर्ण है। इसलिए लगभग सभी राजनीतिक पार्टियां ऐसी ही प्रोफेशन टीमों के साथ मैदान में हैं। यह टीम अपनी क्लाइंट पार्टी की जीत सुनिश्चित करने हेतु पूरे जोर-शोर के साथ लगी हुई हैं, जिसने चुनाव का तापमान कई गुना अधिक बढ़ा दिया है।

प्रशांत किशोर अधिकृत इंडियन पोलिटिकल एक्शन कमेटी उत्तरप्रदेश में फिलहाल कांग्रेस के साथ काम कर रही है। प्रशांत किशोर इससे पहले नरेंद्र मोदी, तंजानिया के राष्ट्रपति चुनाव और बिहार में नीतीश कुमार के चुनाव प्रबंधन का भी काम कर चुके हैं।

उत्तरप्रदेश विधानसभा में कांग्रेस के आक्रामक चुनाव प्रचार और जो पार्टी के समर्थकों के अन्दर नवीन ऊर्जा का संचार देखने को मिल रहा है, उसका पूरा श्रेय इस टीम को जाता है। खाट रैली, किसान यात्रा जैसे कार्यक्रमों के द्वारा किसान वर्ग पर पकड़ बनाने की योजना का रुपरेखा भी प्रशांत किशोर एंड टीम ने ही तैयार की थी। हाल में ही [envoke_twitter_link]सपा-कांग्रेस गठबंधन में भी प्रशांत किशोर बड़ी भूमिका में थे।[/envoke_twitter_link]

भारतीय जनता पार्टी अपने हाईटेक चुनाव प्रचार शैली और आक्रामक सोशल मीडिया कैंपेन के लिए जानी जाती है। या यूं कहें कि भारत में इस वर्ग का जनक भाजपा ही रही है। लोकसभा चुनाव में अपने आक्रामक चुनाव प्रचार शैली और मीडिया प्रबंधन से भाजपा ने सभी अन्य पार्टियों को चारों खाने चित कर दिया। उत्तरप्रदेश विधानसभा में भी भाजपा अपनी आक्रामकता को और भी धार देने को आतुर है। भाजपा की ओर से इसका कमान एसोसिएशन ऑफ़ बिलियन माइंडस नामक संस्था के कन्धों पर है।

आपको बताते चलें कि यह टीम पूर्व में प्रशांत किशोर के साथ लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के साथ काम कर रही थी जो कि प्रशांत किशोर के भाजपा से अलग होने के बाद भी भाजपा का दामन थामे रही। यह संस्था मूलतः पार्टी विशेष ना हो राजनेता विशेष रणनीतियां बनाती है। उत्तरप्रदेश चुनाव में एवं भाजपा के अन्य बड़े कार्यक्रमों में अटल-अडवाणी की तस्वीरों के छोटा और विलुप्त होने एवं मोदी-शाह के तस्वीरों के क्षेत्रफल को बढाने में इनकी भूमिका अत्यंत ही महत्वपूर्ण रही है।

उत्तरप्रदेश में गैर यादव वोटों पर पकड़ बनाने हेतु मोदी-मौर्या का ट्रम्प कार्ड एवं ताबड़तोड़ पिछला वर्ग सम्मलेन, एसोसिएशन ऑफ़ बिलियन माइंडस के ही दिमाग की उपज है। जिसके कारण भाजपा आज उत्तरप्रदेश में अपनी खोयी ज़मीन वापस पाकर सत्ता में लौटने का दावा ठोक रही है।

अखिलेश यादव ने भी इन तमाम चुनौतियों को भांपते हुए, परिस्थितयों को समझते हुए अमेरिका के राजनीतिक परामर्श कंपनी एस.जे.बी. स्ट्रेटेजीज़ इंटरनेशनल के सीईओ एवं हावर्ड विश्विद्यायल के राजनीति विशेषज्ञ स्टीव जॉर्डन को सितम्बर में ही चुनाव प्रचार के रणनीतिकार के रूप में तैनात किया था। कहा जाता है कि यादव परिवार के अंदरूनी कलह को हथियार बनाकर अखिलेश के छवि को चमकाने में स्टीव का बहुत ही बड़ा हाथ रहा है।

इसके अलावा हालिया जारी हुए घोषणापत्र में स्टीव ने अहम भूमिका निभाई है। इसके साथ ही साथ अखिलेश ने एक और जबरदस्त पहल करते हुए सितम्बर में ही अपने 10 विश्वस्त युवा लड़के-लड़कियों का दल अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव का अध्ययन करने के लिए भेजा था। यह दल यूनिवर्सिटी ऑफ़ एक्रोन के रे ब्लिस इंस्टिट्यूट ऑफ़ एप्लाइड पॉलिटिक्स में ढाई महीने की फ़ेलोशिप पर अमेरिका गया। इन लोगों ने हिलेरी क्लिंटन के चुनाव प्रचार अभियान में हिस्सा लिया एवं अमेरिका में इस्तेमाल हो रहे नए से नए तरीकों को समझा। इस विधानसभा चुनाव में अखिलेश ने इस दल शहरी क्षेत्र के सपा के कमजोर सीटों चुनाव प्रबंधन की जिम्मेदारी सौंपी है। यह दल अमेरिकी चुनाव प्रचार की आधुनिक तरकीबों का इस्तेमाल शहरी मतदाताओं को सपा की ओर मोड़ने में कर रहा है। ये लोग मुख्य रूप से सोशल मीडिया कैंपेन, वन टू वन इंटरेक्शन और टेलीफोन संदेशों को संभाल रहे हैं। अखिलेश इस आक्रामक चुनाव प्रबंधन के कारण फिर लोकप्रिय मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप में उभरे हैं।

अब [envoke_twitter_link]उत्तरप्रदेश की चुनावी लड़ाई आखिरी दौर में है।[/envoke_twitter_link] लेकिन चुनाव के अन्दर जो एक नया प्रोफेशनल चुनावी प्रबंधक वर्ग तैयार हो रहा है, निकट भविष्य में भारतीय राजनीति में इसके और भी विस्तार होने की उम्मीद की जा रही है। उत्तरप्रदेश की लड़ाई भले ही मार्च में ख़त्म हो जाये लेकिन यह लड़ाई तो अभी शुरू हुयी है।

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