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“BHU में गांधी और RSS पर बहस की इजाज़त नहीं”

कल महात्मा गांधी की पुण्यतिथि थी।  हम सब ”भारत विभाजन, गांधी और आरएसएस” विषय पर संगोष्ठी के लिए मधुबन (BHU) में एकत्रित हो रहे थे। इसी बीच प्रशासनिक अमले के साथ पहुंचे चीफ प्रॉक्टर ने कार्यक्रम होने से पहले रोक दिया। चीफ प्रॉक्टर का तर्क था कि आप इस विषय पर बहस नहीं कर सकते, इस विषय से आरएसएस को निकाल दीजिये।
एक बड़ा सवाल कि इस कैम्पस में कृष्ण गोपाल, इंद्रेश कुमार, शिव नारायण और अभय शुक्ल जैसे साम्प्रदायिक RSS प्रचारक आकर भड़काऊ भाषण देकर चले जाते हैं, “RSS का राष्ट्र निर्माण में भूमिका” विषय राजनीति विज्ञान विभाग द्वारा सेमिनार कराया जाता है, लेकिन छात्र बहस और संगोष्ठी नही कर सकता।
BHU जैसे विश्वविद्यालय की उत्पत्ति ही भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के गर्भ से हुआ। मुल्क में जम्हूरियत और खुदमुख्तारी कैसे लाई जाये इस बात की बहस भी इसी कैम्पस से शुरू हुई। गांधी जी ने जब असहयोग, सिविल नाफ़रमानी, और भारत छोड़ो आंदोलनों का आह्वान किया तो उनके साथ बानर और माँजरी सेना बनाकर BHU के छात्र छात्राओं ने सरों सीनों पर लाठियां और गोलियां भी खायीं, विश्वविद्यालय के छात्र रहे राजेंद्र लाहिड़ी ने फांसी के फंदे तक को चूमा।
बनारस हिंदू विश्व विद्यालय के स्थापना के नींव की पहली ईंट रखने वालों में महात्मा गांधी भी थे और इसके साथ भारतीय राजनीती में गांधी जी का प्रवेश भी BHU के स्थापना के अवसर पर हुए भाषण से शुरू होता है।
लेकिन दुःखद यह कि आज उसी विश्वविद्यालय में हम गांधी की पुण्यतिथि पर बहस नहीं कर सकते और तो और गांधीजी को एमए इतिहास विभाग के सिलेबस से निकाल दिया गया। स्वतंत्रता आंदोलन की लड़ाई में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की मुखबिरी करने और अंग्रेजो का साथ देने वाले संगठन आरएसएस के प्रचारकों के कार्यक्रम और भाषण लगातार BHU में हो रहे हैं। इंद्रेश कुमार, अभय शुक्ल, शिव नारायण, कृष्ण गोपाल, सुब्रमण्यम स्वामी जैसे साम्प्रदायिक और भड़काऊ भाषण देने वाले RSS प्रचारकों को विश्वविद्यालय अपने अकादमिक सेमिनारों और वर्कशॉप में बुला रहा है, यह बहुत ही हास्यास्पद और दुर्भाग्यपूर्ण है।
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