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“हम त अकलेश के भोट देब, मुलायमा पगला गईल बा”

हाँ भईया, तो उत्तर परदेश में चुनाव की तारीखें घोषित हो गई हैं। तो चलिए जायजा लेने आपको गाँव ले चलती हूँ मेरे अपने गाँव ‘अहिरानी बुजुर्ग’। जान रही हूँ कुछ लोग नाम पढ़ते ही दांत चियार दिए होंगे। खैर बताती चलती हूँ कि अहीर बाहुल्य होने के कारण गाँव का नाम ‘अहिरानी बुजुर्ग’ पड़ा। एकाध घर बाभन के है और कुछ दूर दक्खिन में दलित बस्ती है।

चुनाव आ गए हैं तो चकरोट के किनारे ‘नान्हू काका’ की दुकान पर ताड़ी पी के गावँ के बूढ़ पुरनिया और अधेड़ लोग ज्ञान झाड़ना शुरू कर दिए है। आठी काका, जिनका नाम पता नही क्या है लेकिन आठ उंगलिया होने के कारण लोग आठी कहके बुलाते है कह रहे है ‘[envoke_twitter_link]हम त अकलेश के भोट देब, मुलायमा पगला गईल बा[/envoke_twitter_link],जौने दिने शिवपलवा लात मारी न तब पता चली कि ‘ कौने धान क होरहा होला’! ‘पढ़ोहि काका’ तबतक तैश में आ गए थे और मूंछ से ताड़ी साफ़ करते हुए बोले ‘ जे मुलायम न होता त तब पता चलत तू लोगन के, उनही के कारण सपा बनल अउर आज ले हवे[envoke_twitter_link] अहिरन के सबसे आगे मुलायम बढ़वले हवे ,नाही त अबले खाली भैंसिये चरौता’।[/envoke_twitter_link]

तभी पढ़ोहि की पत्नी बोल उठी ‘त अब कऊन जहाज उड़ावत हवा, जा गईया के लेहना झोर द’। पढ़ोहि काका उठे और अकलेश को गरिया के बोले [envoke_twitter_link]’गाड़ी में दम नाहिं अउर बारि में बेरा'[/envoke_twitter_link]।हुह! ‘बाप से लड़त हवे’| तभी नुनीऔटी से ‘छंगु बो’ जिसका असली नाम मैं आजतक नही जान पाई जबसे सुना उसे ‘छंगू बो’ यानी छंगु की मेहरारू नाम से ही जाना,का आगमन हुआ।

गाँव के लोग उसे पसंद नही करते क्योकि उसका पति जब सऊदी रहता तो वो दिनभर ‘नान्हू काका’ की दुकान में रहती। पति जब आता पिटाई करता वो भी लात घुसे चला देती। तेज आवाज़ में नान्हू काका से हँस के बतियाती थी, उनसे गाने की फरमाइश करती थी| बस यही बात गाँव के लोगों को नही पचती थी। खैर उसके आने पर कई लोग उठ के चले गए। जो बचे वो इस पर बात करने लगे कि गाँव के चार घर पण्डित किसे वोट करेंगे।

नान्हू काका बोले ‘पंडित हवे कुल भाजपे के भोट कारिहह, पण्डितवा कुल केहू क होला का’। इसी बीच गाव का नौजवान ‘दहरु’ बोला ‘ मोदी जी बहुत बिकास कइले हवे, कोचिंग में माट साब बतावत रहने गुजरात चमके ला, हम भाजपे के वोट देब’| इतना सुनते ही दहरु की माई बोली कि ‘का रे अधिकवा! तो अकलेश के भोट ना देबे! चल घरे, दिन भर एहा बईठ के अधिकपन करेला’। दहरु बोला ‘ तो का जनबि गंवार कब्बो स्कूले गईल हई’! इस पर दहरु की अम्मा चप्पल निकाल के बोल पड़ी ‘ [envoke_twitter_link]जब तो पैदा ना भइल रहले तबसे भोट देनी[/envoke_twitter_link]..एक्को बेर गईल हवे?…’अंडा सिखवे बच्चा के’ अधिकउ! ‘गाडी में गू नाही माई रे हग्गब’| चल एहा से….

मज़मा उठ चुका था, अभी ये कई दिनों तक चलेगा। मैं खिड़की बन्द कर देती हूँ। जाति और मिलावटी ताड़ी के ज़हर को अपने गांव की हवा में महसूस करती हूं ।अफ़सोस करती हूं कि इस टूटी फूटी चुनावी बहस में दखिन के ‘चमरौटी पार’ से कोई नहीं है।

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