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“क्यूंकि बच्‍चे मन के सच्‍चे होते हैं”

बच्‍चे अच्‍छे होते हैं, मगर वो छोटे होते हैं। कॉलेज जाने वाले बच्‍चे नहीं होते। जो बच्‍चे बड़े हो जाते हैं, जिन्‍हें बुरे-भले की समझ आ जाती है, जो बहकावे में नहीं आते, जो काम करने के पहले सोचते हैं, जो आंख बंद करके मास्‍टर जी की हां में हां नहीं मिलाते, वे बच्‍चे नहीं होते।

बच्‍चों का उपयोग करना और कराना हमारी संस्‍कृति है। इस संस्‍कृति के ही कारण बच्‍चों का दुरुपयोग होने लगा है। हर कोई उनका उपयोग स्‍वार्थ के लिए करता है। गणतंत्र दिवस की परेड हो या 15 अगस्‍त का दिन, बच्‍चों को लाइन में खड़ा कर दिया जाता है। मुख्‍य अतिथि के आगमन से लेकर उनके जाने तक वो बैल की तरह काम करते हैं। बच्‍चे, बच्‍चे होते हैं। वे नाश्‍ता या चाय नहीं मांगते। पानी बाहर रखी सीमेंट की टंकी से पीते हैं, जो वर्षों से धुली नहीं। वो अपने लिए मेज कुर्सी नहीं मांगते। वे पेड़ के नीचे, खुली छत के नीचे, बिना टाट पटटी के, कहीं भी पढ़ने बैठ जाते हैं। बच्‍चे, बच्‍चे होते हैं। बच्‍चों का शोषण होटल से लेकर सेठों के घरों तक होता है। उनका काम बड़ों से ज़्यादा, लेकिन उनकी तनख्‍वाह बड़ों से आधी से भी कम होती है।

स्‍कूली बच्‍चों के ऊपर टिकी होती है देश की हर योजना। योजना को सफल बनाने के लिए स्‍कूल के बच्‍चों का उपयोग होता है। उनसे मुफ्त में विज्ञापन कराया जाता है। नेताजी के स्‍वागत के लिए घंटों पहले उन्‍हें सड़क के दोनों किनारों पर खड़ा कर दिया जाता। उन्‍हें भूख-प्‍यास नहीं लगती, ऐसा आयोजक मानते हैं। अगर उन्‍हें भूख और प्‍यास लगती तो नेताजी के आगमन और जाने के बाद उनके लिए भी खाने की व्‍यवस्‍था होती है। उनके पानी की भी व्‍यवस्‍था नहीं होती, महीना जून का हो कड़कड़ाती सर्दी में जनवरी का।

अब भी देश बचाने की, नारे लगाने की, राष्‍ट्रीय त्‍योहार मनाने, शराब बंद कराने, नशाखोरी बंद कराने, मानव श्रृंखला बनाने के लिए स्‍कूल के बच्‍चों का उपयोग बदस्‍तूर जारी है। तीन करोड़ की मानव श्रृंखला में कितने बच्‍चे शामिल थे। बूढ़े आ नहीं सकते, जवान नौकरी की तलाश में मोटे सेठों की दुकान के आगे अपनी बारी की प्रतीक्षा में खड़े हैं, तो क्‍या सारा ठेका स्‍कूली बच्‍चों का है। समाज की बुराइयां समाप्‍त करने और प्रदर्शन करने के लिए बच्‍चे ही बचे हैं। जब नेताजी जेल से रिहा होते हैं तो सैंकड़ों गाड़ियां सड़क पर होती हैं, तो मानव श्रृंखला जैसे कार्यक्रमों में बच्‍चों का उपयोग क्‍यों?

बच्‍चे मन के सच्‍चे होते हैं, उनको आवंटित होने वाला दूध मास्‍टर पी जाता है, उनको मिलने वाला दलिया अफसर बेच देते हैं, उनके लिए आने वाले खेल के सामान रिश्‍तेदार के बच्‍चों में बांट दिये जाते हैं। बच्‍चे मन के सच्चे होते हैं। वे जानते हैं, उनका दुरुपयोग हो रहा है, लेकिन इस दुरुपयोग/शोषण को रोकने के लिए उनके पास आत्‍मबल तो होता है, लेकिन उतनी समझ और शक्ति नहीं होती।

इस देश का दुर्भाग्‍य है, बच्‍चों के कुपोषण की बात उठती है, उनकी शिक्षा की बात की जाती है, लेकिन उनके मानसिक/भावनात्‍मक शोषण की बात कोई नहीं करता। कब तक बच्‍चे उच्‍च अधिकारियों/नेताओं की रैलियों की शोभा बढ़ाते रहेंगे?

फोटो आभार : फेसबुक और फेसबुक 

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