दिल्ली की सड़कों पर रेंगने वाली लाखों कारों के भीतर एफएम रेडियो आत्मा की तरह बसा हुआ है। [envoke_twitter_link]कभी बउआ किसी को बेवकूफ बना रहा होता है,[/envoke_twitter_link] कहीं खुरकी किसी को ट्रैफिक अपडेट दे रहा होता है। अच्छा-बुरा जैसा भी हो, हमें दिल्ली के ट्रैफिक जाम से राहत यही रेडियो देता है। ज़रा सोचिए, [envoke_twitter_link]अगर दिल्ली की कारों से एक दिन अचानक एफएम ग़ायब हो जाए![/envoke_twitter_link] दिल्ली की सड़कों पर कितनी शांति हो जाएगी। मगर फिलहाल बारी दिल्ली की नहीं, यूरोप के एक देश नॉर्वे की है।
12 जनवरी 2017 से नॉर्वे दुनिया का पहला ऐसा देश बनने जा रहा है, जहां एनालॉग ब्रॉडकास्टिंग (शॉर्ट वेव, मीडियम वेव, एफएम) पूरी तरह ख़त्म हो जाएंगे। यानी वहां की सड़कों पर चलने वाली क़रीब 20 लाख कारों में फिलहाल लोगों को कोई रेडियो नहीं सुनाई देगा। इसकी जगह लेगी डिजीटल ऑडियो ब्रॉडकास्टिंग (डीएबी)। कुछ कारों में ये तकनीक पहले से ही है, मगर उनकी संख्या बहुत कम है। चीन समेत दुनिया के करीब 30 देश इस डिजीटल तकनीक को अपना चुके हैं।
मगर [envoke_twitter_link]रेडियो सुनने के मामले में हम विकसित देशों से एक पीढ़ी पीछे चल रहे हैं।[/envoke_twitter_link] इस मामले में हमारी तरक्की एएम से बढ़कर एफएम तक ही आ पाई है। अमीन सयानी से होते हुए हम कड़क लौंडों तक आ गए हैं। छोटे शहरों को तो यही नहीं मालूम कि बड़ा होना क्या होता है। जो भी अच्छी-बुरी आदत उन्हें दिल्ली-मुंबई में दिखती है, वही उन्हें अपनी लगने लगती है।
एक सर्वे के मुताबिक नॉर्वे की जनता के बीच जब इस फैसले को लेकर सर्वे किया गया तो 66 प्रतिशत लोगों ने इसे बुरा फैसला बताया। 17 फीसदी लोग मेरे जैसे रहे जिन्हें अभी ठीक से कुछ समझ नहीं आ रहा।
कहते हैं कि इस तकनीक को अपनाने से नॉर्वे को 2.35 करोड़ डॉलर की सलाना बचत होगी। एफएम को डैब रेडियो सिस्टम में बदलने में 174.70 डॉलर की लागत आती है। यूरोप के दूसरे देश भी एफएम बंद करने को लेकर सोच रहे हैं। स्विट्जरलैंड ने एफएम रेडियो को खत्म करने के लिए 2020 की समयसीमा तय की है।
[envoke_twitter_link]भारत में अभी लोगों ने एफएम कान में लगाकर सुनना ही सीखा है।[/envoke_twitter_link] देखते हैं हम कब तक डिजिटल रेडियो तक पहुंचेंगे।