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रईस क्यूं देखें- क्योंकि ऐसी 56 हज़ार फिल्में पहले भी देख चुके हैं

अगर आप पिछले दस सालों की भोजपुरी फिल्में देखें तो एक जैसी ही नज़र आएंगी। जैसे भोजपुरी फिल्म का नायक कोई ‘देहाती मूर्ख’ जैसा होगा, आइटम साँग गाएगा, शहरी हो जाएगा, हीरोइन खुश हो जाएगी वगैरह वगैरह। ऐसे ही बॉलीवुड की डॉन-आधारित फिल्मों का भी इतिहास देखें तो फॉर्मूला ही सनातन सत्य है। अमिताभ बच्चन से लेकर अजय देवगन से लेकर शाहरुख खान तक सब इस फॉर्मूले के आगे कठपुतलियां हैं। [envoke_twitter_link]कौन कब और किस नाम से ‘रिलीज़’ होगा, कोई नहीं जानता।[/envoke_twitter_link] और अगर फिल्म में शाहरूख हैं तो ये फॉर्मूला भी एमडीएच मसाले में लिपटा होगा। लेख के अगले हिस्सों में स्वादानुसार इसका विवरण मिलेगा।

डियर ज़िंदगी’ के बाद [envoke_twitter_link]अगर आप शाहरुख खान से बहुत ज़्यादा उम्मीदें लगाए बैठे थे तो आप अत्यंत भोले दर्शक हैं[/envoke_twitter_link]। शाहरूख इस फिल्म में वही करते नज़र आते हैं जो हर दौर में हिट होने के लिए नौसिखिए लोग करते रहे हैं। फिर 50 साल के बाद शाहरूख को ऐसा करने की ज़रूरत क्यूं पड़ी, ख़ुदा जाने! एक ऐसा डॉन जो मरते-मरते भी तीन-चार बेस्टसेलर डायलॉग मारकर जाएगा और फिल्म इंडस्ट्री पर एहसान कर जाएगा।

कहते हैं कि ‘रईस’ गुजरात के बड़े डॉन अब्दुल लतीफ की असली कहानी पर आधारित है। गुजरात में क़रीब दो दशक पहले जिस तरह बीजेपी ने कुर्सी हथियाई, उसमें वहां के वांटेड गुंडों को शरण देने में उस वक्त के मुख्यमंत्री की चमचई और मौकापरस्ती ही फिल्म का सबसे साहसी कदम है। इसके अलावा [envoke_twitter_link]आदि से अंत तक बस शाहरुख ही शाहरुख है।[/envoke_twitter_link]

बॉलीवुड की फिल्म का नायक कोई मोस्ट वांटेड क्रिमिनल हो या महापुरुष, उसका बचपन नैतिक शिक्षा से ही शुरू होना है। मां थोड़ी ग़रीब ही होनी है और बहुत इंसाफ पसंद। वो बेटे की कमज़ोर नज़र के लिए दो रुपये की उधारी भी बर्दाश्त नहीं करती। और चूंकि भविष्य के डॉन की मां है तो ऐसे नाज़ुक मौक़ों पर भी ब्रह्मवाक्य की तरह के डायलॉग मारनी नहीं भूलती – ‘मैं इसे उधार का नज़रिया नहीं, चौकस नज़र देना चाहती हूं डॉक्टर साहब।’ और फिर बेटे की चौकस नज़र सबसे पहले गांधी जी की मूर्ति से चश्मा चुराती है, पुलिस की गाड़ी के आगे आकर शराब के माफियाओं को बचा लेती है वगैरह वगैरह।

फिर जैसे अमिताभ दौड़ते-दौड़ते या राजेश खन्ना रोटी को लेकर भागते-भागते बड़े होते रहे हैं, ये [envoke_twitter_link]’रईस’ भी मोहर्रम के कोड़े खाते-खाते बड़ा हो जाता है।[/envoke_twitter_link] फिर एक मोहर्रम में जब इस रईस को मारने का प्लान बनता है तो बंदूक वाले शूटर भैया ठीक वहीं खड़े होते हैं जहां से ‘चौकस’ नज़र वाले रईस की नज़र पड़ जाए। आप एक कॉमेडी नहीं, ख़तरनाक डॉन की फिल्म देख रहे हैं। फिर [envoke_twitter_link]रईस अचानक शाहरूख खान से शक्तिमान बन जाता है।[/envoke_twitter_link] दीवारों पर चढ़कर, छतों पर गुलाटियां मार-मारकर अपने जानी दुश्मन को मार डालता है। उसे अभी फिल्म में सवा घंटे और बने रहना है।

उसे अभी सबसे अच्छे पुलिस अफसर को ख़ाली ट्रक दिखाकर चकमा देना है। खाली ट्रक में अपने माल की जगह चाय का एक कप छोड़ना है। एक बेवकूफ लड़की से प्रेम करना है। एक ऐसी लड़की जो डॉन की सभी बदमाशियों को गाने गाकर भूल जाती है। वक्त-वक्त पर डॉन की फिल्म में गाने का ब्रेक लेती है। जेल जाने पर रईस जैसे बड़े डॉन को भी पहला कॉल रोमांस के लिए करने पर मजबूर करती है। ख़ुदा बचाए ऐसी प्रेमिकाओं से।

हम ‘रईस’ को क्यूं याद रखें। क्योंकि ‘परज़ानिया’ जैसी गंभीर फिल्म देने वाले निर्देशक राहुल ढोलकिया को इस बार शाहरुख ही चाहिए। क्योंकि हम इस तरह की छप्पन हज़ार फिल्में पहले भी देख चुके हैं और इस बार शाहरुख खान है। क्यूंकि आपकी फ्रेंड लिस्ट में आज भी पंद्रह लड़कियां ऐसी हैं जो शाहरूख खान के नाम पर करवा चौथ का व्रत रख सकती हैं। क्योंकि दिन और रात लोगों के लिए होते हैं, शाहरूख जैसे शेरों का तो ज़माना होता है। ओवर एंड आउट!

चलते – चलते : ”पाबंदी ही ‘बग़ावत’ की शुरुआत है।” फिल्म का शुरुआती डायलॉग शराबबंदी फेम बिहार सरकार के लिए चेतावनी की तरह है। यानी [envoke_twitter_link]नए ज़माने के किसी डॉन का बिहार से उदय होने ही वाला है।[/envoke_twitter_link] इंतज़ार कीजिए।

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