कभी नेता जी की सुरक्षा की जिम्मेवारी उठायी तो आज नेता जी के साथ कंधे से कंधे मिला कर चल रहे हैं शिवपाल सिंह यादव। शिवपाल यादव ने ये भी कहा की वो मरते दम तक नेता जी के साथ होंगे। मुलायम सिंह यादव ने जैन इंटरकॉलेज में शिवपाल यादव को राजनीती शास्त्र भी पढ़ाया था। पर अपने गुरु के साथ आज भी डंटे हुए हैं, शिष्य के साथ साथ भाईचारा भी बखूबी निभाते दिख रहे हैं |
जानिये शिवपाल यादव की कहानी-
शिवपाल सिंह यादव, जन्मतिथि 06 अप्रैल, 1955, शैक्षिक योग्यता बी.ए., बी.पी.एड.।पिता स्व. श्री सुघर सिंह यादव, माता स्व. श्रीमती मूर्ति देवी। पत्नी श्रीमती सरला यादव। संतान पुत्र -एक पुत्री-एक
मुलायम के पांच भाइयों में सबसे छोटे भाई शिवपाल सिंह यादव ने ही सक्रीय राजनीति में प्रवेश किया। शिवपाल को छोड़कर मुलायम के किसी भाई का राजनीति में जाने का इरादा नहीं हुआ। शिवपाल एक दैनिक समाचार पत्र से बातचीत में बताते हैं कि 70 के दशक में चंबल के बीहड़ जिले इटावा में राजनीति की राह आसान नहीं थी।
1967 में जसवंतनगर से विधानसभा चुनाव जीतने के बाद मुलायम सिंह के राजनीतिक विरोधियों की संख्या काफी बढ़ चुकी थी। राजनीतिक द्वेष के चलते कई बार विरोधियों ने मुलायम सिंह पर जानलेवा हमला भी कराया। यही वह समय था जब शिवपाल यादव ने मुलायम सिंह यादव की सुरक्षा की जिम्मेवारी संभाली थी।
शिवपाल ने बताया कि मुलायम सिंह के जीवन पर लिखी अपनी किताब ‘लोहिया के लेनिन’ में मैंने इसका ज़िक्र भी किया है, ‘‘नेता जी जब भी इटावा आते, मैं अपने साथियों के साथ खड़ा रहता। हम लोगों को काफी सतर्क रहना पड़ता, कई रातें जागना पड़ता था।’’ मुलायम सिंह के नज़दीकी रिश्तेदारों में रामगोपाल यादव इटावा डिग्री कॉलेज में फिजिक्स पढ़ाते थे। इसीलिए लोग इन्हें ‘प्रोफेसर’ कहने लगे। वे कहते हैं, ‘‘सबसे ज्यादा पढ़े-लिखे होने के कारण रामगोपाल रणनीति बनाने और कागजी लिखा-पढ़ी में मुलायम सिंह की मदद करते थे और मैं नेताजी की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी संभालता था।”
1988 में शिवपाल यादव ने राजनीती में कदम रखा और इटावा के जिला सहकारी बैंक के अध्यक्ष चुने गए। इसके बाद 1996 में जसवंतनगर से जीतकर विधानसभा पहुंचे और उसके बाद आज तक जसवंतनगर से विधायक भी हैं। जब हमारी टीम जसवंतनगर पहुंची तो वहां के लोग विकास के कार्यों से खुश दिखे। सड़क,बिजली, खेतों में पानी की भरपूर व्यवस्था दिखी।
शिवपाल सिंह यादव ने मुलायम सिंह यादव के सहकारिता मंत्री रहते हुए पहली बार 77-78 में किसानों को एक लाख क्विंटल और अगले वर्ष 2.60 लाख क्विंटल बीज बांटे थे। उनके कार्यकाल में प्रदेश में दूध का उत्पादन तो बढ़ा ही, साथ ही पहली बार सहकारिता में दलितों और पिछड़ों के लिए आरक्षण की भी व्यवस्था की गई। सहकारिता आंदोलन में मुलायम के बढ़े प्रभाव ने ही शिवपाल के लिए राजनीति में प्रवेश का मार्ग खोला।
1988 में शिवपाल पहली बार जिला सहकारी बैंक, इटावा के अध्यक्ष बने। 1991 तक सहकारी बैंक का अध्यक्ष रहने के बाद दोबारा 1993 में शिवपाल ने यह कुर्सी संभाली और अभी तक इस पर बने हुए थे। 1996 से विधानसभा सदस्य के साथ-साथ आज कई शिक्षण संस्थाओं के प्रबंधन भी करते हैं।
पुत्र आदित्य यादव-
आदित्य यादव को लोग अंकुर यादव भी बुलाते हैं। वो सहकारिता के माध्यम से ही राजनीति में आएं इसकी वजह जानने के लिए थोड़ा पृष्ठभूमि में जाना होगा। 1977 में यूपी में रामनरेश यादव के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी। उस सरकार में मुलायम सिंह यादव को पहली बार सत्ता सुख मिला और वे सहकारिता मंत्री बने। वहीं से प्रदेश में सहकारिता आंदोलन की शुरुआत हुई। मुलायम सिंह ने सहकारिता को नौकरशाही के चंगुल से निकालकर आम जनता से जोड़ा। उसी दौरान यूपी में सहकारी बैंक की ब्याज दर को 14 फीसदी से घटाकर 13 फीसदी और फिर 12 फीसदी कर दिया गया। तब से ये कहना गलत नहीं होगा कि मुलायम परिवार के पास ही सहकारी बैंक के अध्यक्ष पद का दबदबा बना रहा। अंकुर यादव यूपी को-ऑपरेटिव फेडरेशन लिमिटेड (पीसीएफ) के सभापति पद पर बने हुए हैं और उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा भी मिला हुआ है।