Site icon Youth Ki Awaaz

असली रईस, अब्दुल लतीफ की वो कहानियां जो गूगल पर भी नहीं है

साल 1993, 12वीं में था, साइंस सब्जेक्ट चुनी थी। क्यूंकी और मुझे कुछ पता नहीं था। ये एक चुनौती भी थी खासकर उस समय जब 12वी में साइंस का परिणाम लगभग 30% या उसके आसपास ही रहता था। मानसिक दबाव अपनी चरम सीमा पर था। एक दिन अपने दोस्त गिरीश यागीक से कहा “मुझे ये दुनिया रास नहीं आ रही हैं, सोच रहा हूं कहीं, भाग जाऊंं।”  गिरीश ने कहा “लतीफ की गैंग से जुड़ जा।” मैंने पूछा “ये, लतीफ कोन है ? ” और अब आप का भी यही सवाल होगा कि ये लतीफ कौन है। मैं आपको लतीफ की पूरी जानकारी दूंगा , वह भी जो खबरों में नहीं छपी। लेकिन उस डर को बयान करना मुश्किल है, जिसके कारण, उन दिनों, अमूमन, कोई गैर मुस्लिम, पुराने अहमदाबाद शहर में जाने से डरता था।

[envoke_twitter_link]नाम अब्दुल लतीफ, लेकिन पहचाना जाता था लतीफ के नाम से।[/envoke_twitter_link] अहमदाबाद के कालूपुर इलाके में, 1951 में एक मुस्लिम परिवार में जन्म। कुल 7 भाई बहन थे, परिवार में पिता जी ही कमाने वाले थे। आर्थिक हालात ठीक नही थे। पिता ने लतीफ को अपने साथ अपनी दुकान के काम पर लगा लिया जहां लतीफ को बस तंबाकू बेचना था। लतीफ को दिहाड़ी के 20 रुपये नागवार थे। लतीफ बड़ा हुआ पिता को और उनकी दुकान को अलविदा किया, किसी और व्यवसाय की तलाश शुरू कर दी।

मेरे कॉलेज के मुस्लिम दोस्त अक्सर लतीफ के बारे में कहते थे, लतीफ को बड़ा बनना था। उसकी चाहत कुछ ही दिनों में आसमान छूने की थी। इसके लिए वो कोई भी कीमत देने को तैयार था। किसी बिज़नेस से कोई बैर नहीं। कोई उसूल नहीं कि कौन सा व्यवसाय करना है और कौन सा नहीं। बस नाम, शोहरत और पैसा ये, तीनों होनी चाहिये।

[envoke_twitter_link]इसकी शुरुआत, अल्लाह रक्खा की शागिर्दी में हुई।[/envoke_twitter_link] अल्लाह रक्खा गैर क़ानूनी, जुए का अड्डा चलाता था। 1995 में गुजरात में BJP की सरकार बनी। इसके पहले, पुलिस भी उन इलाकों में जाने से डरती थी। तो यहां बे रोक-टोक, जुए का अड्डा चलाना कोई बड़ा अपराध नहीं था। और ना ही इसकी जानकारी आपको कहीं गूगल करने से मिलेगी। लतीफ की महत्वाकांक्षाएं बड़ी थी। कुछ ही वक्त के बाद लतीफ को लगने लगा कि अल्लाह रक्खा के साथ उसे कुछ ज़्यादा हासिल नहीं हो रहा। लतीफ ने विरोधी खेमा पकड़ा लेकिन यहां भी निराश रहा।

जब सपने, आसमान को छूने के हो तो आसमान तक राह भी खुद ही बनानी पड़ती हैं। ये बात अब लतीफ के समझ में आ चुकी थी। फिर [envoke_twitter_link]जिस दौर की शुरुआत हुई,  वो लतीफ के जश्न का दौर था।[/envoke_twitter_link] लतीफ ने कुछ और लोगों को अपने साथ जोड़ा और अपनी खुद की गैंग बना ली। लतीफ ने हर उस जगह और इंसान में पैठ जमाई जिसकी उसे ज़रूरत थी। पुलिस, राजनीतिक पार्टी, नेता, अपराधी, सब अब्दुल लतीफ को जानने लगे थे। [envoke_twitter_link]लतीफ की गैंग ने हर वो काम करना शुरू कर दिया जिससे उसकी दहशत लोगों तक पहुंचे।[/envoke_twitter_link] मसलन जबरन बसूली, अपहरण, जुआ, शराब।

किस्सा ये भी मशहूर हुए कि [envoke_twitter_link]दाऊद और लतीफ के बीच दुश्मनी का रिश्ता था।[/envoke_twitter_link] और दोस्ती की पहल, खुद दाऊद ने की थी। अबतक आपको ये अंदाज़ा लग चुका होगा कि अब्दुल लतीफ कितना बड़ा नाम बन चुका था। अब लतीफ की पहुंच हर जगह थी, [envoke_twitter_link]ये एक रईस की पहचान थी।[/envoke_twitter_link] लोग उससे हाथ मिलाने में अपनी तारीफ़ समझते थे।

ऐसा कहा जाता है, कि अब्दुल लतीफ की गैंग में सिर्फ और सिर्फ मुसलमानों की ही एंट्री मुमकिन थी। लतीफ ने पुराने अहमदाबाद में अपनी इमेज रॉबिन हुड की बनाई। यहां गरीब मुस्लिम परिवार की लतीफ हर वो मदद करता जो उसे उनके बीच खुदा बना दे। कहते हैं बुरे वक्त में कमाया हुआ इंसान ही काम आता है और ऐसा लतीफ के साथ भी हुआ। लतीफ एक अपराध के तहत 1986-87 में जेल में बंद था।  जेल में रहते हुए वो पांच म्युनिसिपल वार्ड के चुनाव में जीत गया।

पुराने अहमदाबाद में [envoke_twitter_link]अब लतीफ, एक मुस्लिम रहनुमा, ताकत और अपराधी की पहचान बन चुका था।[/envoke_twitter_link] और यही एक वजह गैर मुस्लिम समाज में भय का कारण बन रही थी। उस समय पुराना अहमदाबाद का शहर ही एक मुख्य बाज़ार था और ज्यादातर यहाँ आबादी मुस्लिम थी। गैर मुस्लिम लोगो ने यहाँ आना कम भी कर दिया था। शाम होने से पहले यहां से जाने में ही समझदारी समझी जाती थी। इसमें मैं भी व्यक्तिगत रूप से शामिल था।

इसी बीच 1992 में अहमदाबाद एक विभत्स हत्याकांड से कांप चुका था। लतीफ गैंग के शूटर, हंसराज त्रिवेदी को मारने राधिका जिमखाना गए थे। लेकिन वहां 9 और लोग थें। हंसराज को पहचानना मुश्किल था,[envoke_twitter_link] लतीफ का ऑर्डर आया और सभी 9 लोगों पर गोली दाग दी गई।[/envoke_twitter_link] यहाँ पहली बार गुजरात किसी अापराधिक मामले में AK-47 रायफल की आवाज़ से गूंजा था।

जब कोई नाम, आसमान से उचा बन जाये तो जितने दोस्त होते हैं उतने ही दुश्मन भी। खैर [envoke_twitter_link]राजनीति में अपना सगा तो कोई नहीं खोज सका है।[/envoke_twitter_link] कहा ये जाता है कि अब्दुल लतीफ को प्रदेश कांग्रेस इकाई का भरपूर समर्थन था। ये भी कहा जाता है कि लतीफ का रिश्ता उस समय के कांग्रेस नेता श्री चिमन भाई पटेल के साथ काफी घनिष्ठ था।

1995 में BJP ने लतीफ को ही अपना चुनावी मुद्दा बनाया। BJP ने लतीफ को कानून व्यव्स्था का मज़ाक के रूप में प्रचारित किया। लोगों से गिरफ्तारी के वादे किए। हर चुनावी रैली में लतीफ भाजपा नेता के ज़ुबां पर था। कांग्रेस को मुस्लिम तुष्टिकरण और मुस्लिम वोटबैंक के लिए लतीफ जैसे गुंडे को बढ़ावा देने का दोष दिया गया।

चुनाव हुए BJP की सरकार बनी। लतीफ को दिल्ली से गिरफ्तार किया गया। गुजरात के एंटी टेररिज़्म स्कवॉड का 2 महीने चला ऑपरेशन रंग लाया। 2 साल बाद अब्दुल लतीफ ने पुलिस के शिकंजे से भागने की कोशिश की और मारा गया। [envoke_twitter_link]आतंक का नाम बन चुके एक डॉन का अंत हो चुका था। रईस मारा जा चुका था।[/envoke_twitter_link]

 

 

Exit mobile version