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ए.एम.यू. में छात्र प्रदर्शन पर चला पुलिस का डंडा

2016 की आख़िरी सुबह अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय छात्रसंघ’ के लिए एक ऐतिहासिक सुबह साबित होने वाली थी। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र ‘नजीब अहमद’ को लापता हुए दो महीने से ज़्यादा का समय हो चुका है लेकिन दिल्ली पुलिस व जे.एन.यू. प्रशासन ने अब तक दोषियों पर कोई भी कार्रवाई नहीं की है। ऐसे में सरकार एवं प्रशासन पर दबाव बनाने के लिए ए.एम.यू. छात्रसंघ ने ‘रेल रोको आंदोलन’ की घोषणा की और इसमें शामिल होने के लिए विश्वविद्यालय व उसके बाहर के छात्रों से भी आह्वान किया। छात्रसंघ के इस साहसिक फैसले को विश्वविद्यालय के अंदर व बाहर, दोनों ही जगह सराहा जा रहा था। विश्वविद्यालय के वुमेन कॉलेज की स्टूडेंट्स यूनियन से भी अच्छी प्रतिक्रियाएं मिल रही थीं।

सुबह ग्यारह बजने के पहले से ही छात्र/छात्राएं विश्वविद्यालय की सेंट्रल लाइब्रेरी कैंटीन पर जुटना शुरू हो गये थे। मादर-ए-वतन हिन्दुस्तान व अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के झंडे हवा में लहराता हुआ और नजीब अहमद के समर्थन में व जे.एन.यू. प्रशासन के ख़िलाफ़ नारे बुलंद करता हुआ एक विशाल छात्रसमूह, छात्रसंघ अध्यक्ष ‘फैज़ुल हसन’, उपाध्यक्ष ‘नदीम अंसारी’, सचिव ‘नबील उस्मानी’ व अन्य छात्र नेताओं की अगुवाई में अलीगढ़ के रेलवे स्टेशन की ओर बढ़ा।

स्टेशन के क़रीब ही चर्च गेट पर भारी संख्या में तैनात यू.पी. पुलिस बल, आर.ए.एफ., और अन्य सशस्त्र बलों ने इस विशाल छात्रसमूह को रोक लिया व पुलिस बाधा लगा दी गई। छात्र रेलवे स्टेशन पर शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर विरोध दर्ज कराना चाहते थे लेकिन उनकी एक न सुनी गई। आक्रोशित छात्र पुलिस बाधा तोड़ कर स्टेशन की ओर बढ़े लेकिन उनका सामना हुआ पुलिस की बर्बरता से। उन निहत्थे छात्रों पर बुरी तरह लाठीचार्ज किया गया, पानी की बौछारें छोड़ी गई। यहां तक कि कई छात्र बुरी तरह ज़ख्मी हो गये। स्वयं छात्रसंघ उपाध्यक्ष को चोटें आई। राहगीरों को भी नहीं बख़्शा गया और पुलिस ने बर्बरता जारी रखी।

उधर एक छात्रसमूह सचिव नबील उस्मानी की अगुवाई में जैसे-तैसे स्टेशन पहुंच गया और वहां विरोध दर्ज कराया लेकिन दूसरे साथियों पर लाठीचार्ज की ख़बर पाकर यह छात्रसमूह भी वापस आ गया और पूरे छात्रसंघ के साथ लगभग पांच सौ छात्र/छात्राओं ने गिरफ्तारी दी। विमेन कॉलेज की स्टूडेंट्स यूनियन ने भी गिरफ्तारी दी। सभी को अलीगढ़ जेल ले जाया गया जहां से उन्हें शाम पांच बजे के क़रीब रिहा किया गया और घायलों को जवाहर लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया।

छात्रों के प्रति पुलिस की बर्बरता का यह दृश्य हम दिल्ली पुलिस द्वारा वहां के छात्रों पर अत्याचार के रूप में पहले भी कई बार देख चुके हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश पुलिस और प्रशासन का भी छात्रों के ख़िलाफ़ इस स्तर तक गिर जाना अत्यंत शर्मनाक है। शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे छात्रों पर ऐसे बर्बरता पूर्ण कदम उठाकर उनकी आवाज़ दबाना कहीं से भी लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नहीं है।

यह वर्ष ‘हैदराबाद विश्वविद्यालय’ के छात्र ‘रोहित वेमुला’ की संस्थानिक हत्या से शुरू हुआ था और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के छात्रों के साथ हुई दर्दनाक बर्बरता पर ख़त्म हो रहा है। मौजूदा सरकारों को छात्रों के प्रति दमन पर अपना रवैया बदलना होगा वर्ना इस तरह से रोज़ाना किसी न किसी रूप में छात्रों का दमन होना इन सरकारों पर भारी पड़ सकता है, जो कि एक लोकतांत्रिक और ससंवैधानिक देश के लिए किसी तरह से अच्छा नहीं है।

सरकारों को यह समझना होगा कि आर.एस.एस. और ए.बी.वी.पी. का विरोध करना देश के खिलाफ नहीं है। मीडिया का सियासी रंग भी सामने आ रहा है कि किस तरह उसने इस बर्बरता का दोषी, छात्रों को ही साबित कर दिया है। मीडिया का काम निष्पक्षता से सच दिखाना होता है, न कि किसी संगठन विशेष के लिए पत्रकारिता करना। अंत में अलीगढ़ के छात्रों के जज़्बे को सलाम कि उन्होंने प्रशासन के सामने न झुकने का साहस दिखाया। 2016 की सुबह तो ऐतिहासिक थी ही लेकिन इस दिन की शाम भी ऐतिहासिक हो गई। अभी उम्मीद हार कर बैठ न जाना। साथी नजीब की माँ के आँसू याद रखना और संघर्ष जारी रखना, जब तक साथी नजीब को वापस न ले आओ।

 

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