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“उत्तर प्रदेश के युवाओं को अब रोज़गार नहीं रेवड़ी चाहिए।”

बसंत आया तो लेकिन कहां चला गया। पंजाब और गोवा से आया था और कहां चला गया। मालूम पड़ा कि वह अभी-अभी उत्तर प्रदेश गया है। बसंत वहां नहीं आता जहां चुनाव नहीं होते। जैसे सावन के अंधे को हरा-हरा नजर आता है वैसे ही चुनाव में चारों ओर बसंत नजर आता है। (आप उसे वसंत कह सकते हैं, मैं तो देहाती आदमी हूं) उत्तर प्रदेश का बसंत इस बार ज़ोरों से आया है। बसंती भी जोर से नाची थी, इस बार उत्तर प्रदेश जोर से नाचेगा। [envoke_twitter_link]उत्तर प्रदेश का नाच देखने के लिए पूरा देश उमड़ पड़ा है। [/envoke_twitter_link]उमड़े भी क्‍यों नहीं, चुनाव के बाद तो उत्तर प्रदेश में मक्खियां भिनभिनाएंगी और विकास की बैलगाड़ी में बैल जुत जाएंगे।

[envoke_twitter_link]उत्तर प्रदेश के युवाओं को अब रोज़गार नहीं रेवड़ी चाहिए।[/envoke_twitter_link] यह पहली बार नहीं हुआ, जब उत्तर प्रदेश में रेवड़ी के इंतजार में लोग मतदान की लाईन में घंटे खड़े हुए हों। अब भी और इस बार भी खड़े होंगे। लेकिन रेवड़ी किसे मिलेगी, खैर ये बाद की बात है किसे मिलेगी या नहीं मिलेगी लेकिन पहले यह तो देख लो कि इस बार की थाली में रेवड़ी के साथ-साथ क्‍या है। इस बार तो मिल बांटकर रेवड़ियां बांटी जाएंगी।

चुनाव में रेवड़ियां यानी आश्‍वासन का पोटला (टोकरा), सभी दल मतदाताओं को देने में लगे हैं। हर दल चाहता है कि उसे वोट मिले, भले ही इसके बदले उसे कुछ भी करना पड़ा, लेकिन अपनी जेब से कुछ भी नहीं देना पड़े अर्थात चुनाव जीते तो जनता का पैसा जनता को और चुनाव हारे तो पार्टी का पैसा पार्टी फण्‍ड में। जब चुनाव घोषणा की जाती है तो उसे पूरा करने का जिम्‍मेदार चुनाव हारने वाले और चुनाव जीतने वाले दोनों की ही होता है।

इस बात को आप इस तरह समझ सकते हैं, कि चुनाव से पहले जीता हुआ उम्‍मीदवार और हारा हुआ उम्‍मीदवार दोनों ही मुहल्‍ले का विकास करते हैं। तो फिर चुनाव जीतने के बाद भी दोनों को एक साथ विकास करना चाहिए। लेकिन चुनाव हारने वाला कुछ नहीं करता। चुनाव हारने वाला घोषणा करता है कि मैं सभी को साइकिल दूंगा तो चुनाव के बाद उसे सभी योग्‍य (अयोग्‍य) उम्‍मीदवारों को साइकिल देना चाहिए।

खैर मुझे क्‍या मैं तो बसंत की बात कर रहा था। कल उत्तर प्रदेश से बसंत का फोन आया था। इस बार के चुनाव में उसे क्‍या-क्‍या मिलना है। लैपटॉप, साइकिल, एक लाख तक का कर्जा माफ, बैंक से लिया लोन, किसान है इसलिए अन्‍य कर्जे माफ, बेरोजगार है इसलिए रोज़गार मिलने वाला है। [envoke_twitter_link]लड़कियों को साइकिल, हिफाजत भी मिलेगी।[/envoke_twitter_link] ये सब बातें अभी मिल रही हैं, लेकिन पिछले पांच सालों में ये सभी चीजें क्‍यों नहीं दी गईं? क्‍या इनकी आवश्‍यकता केवल अभी चुनाव तक ही है?

मतदाता को सोचना होगा। [envoke_twitter_link]अंधे की रेवड़ी है, जो सत्‍ता में आएगा वह अपने वालों में ही बांटेगा।[/envoke_twitter_link] सावन का अंधा भी वही होता है जो सत्‍ता में होता है। सत्‍ता जाने के बाद उसे गरीबी, महंगाई, बेरोज़गारी आदि-आदि दिखाई देने लगते हैं।
आप भी अंधों के साथ गठजोड़ करो शायद रेवड़ी मिल जाए।

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