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अल्फाज़-ए-मेवात 107.8 एफ एम: हरियाणवी महिलाओं की नई आवाज़

ऐसा ही क्यों होता है कि महिला दिवस पर ही बहुत से लेख प्रकाशित होते हैं और न जाने क्यों महिला दिवस की शाम ढलते- ढलते वो लेख, वो समानता की  बातें, वो सशक्तिकरण की बातें कहां लुप्त हो जाती हैं?

कभी महिलाओं के अधिकारों की लड़ाई से आरंभ हुआ यह महिला दिवस अब बहुत दूर तक चला आया है, पर एक  सवाल सदैव उठता है कि क्या महिलाएं आज हर क्षेत्र में बखूबी निर्णय ले रही हैं? क्या उनको वह साधन उपलब्ध हैं जिनसे वह अपने आपको बाहर की दुनिया से बांध सकें।

वैसे तो हम सभी जानते हैं कि महिलाओं को  सक्षम बनाने में उनका साथ देने के लिए काफी प्रयास शहरों और ग्रामीण स्तर पर हो रहे हैं परंतु फिर भी कुछ अनकहे, अनदेखे पहलू हमारी दौड़ती भागती ज़िन्दगी से रूबरू हुए बिना ही रह जाते हैं,  जिसका एक उदहारण मैं इस लेख के माध्यम से आप सबके साथ साँझा करना चाहती हूँ।

राजधानी दिल्ली और गुड़गांव की चकाचौंध से दूर दिल्ली से मात्र 70 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हरियाणा का नूंह जिले में महिलाओं की सोच और उनको आत्मनिर्भर बनाने में सूचना और नई-नई जानकारियों से लैस संचार का सबसे पुराना, सुलभ साधन कम्युनिटी रेडियो अल्फाज़- ए- मेवात एफ एम 107.8 (एस एम सहगल फाउंडेशन की पहल) अहम भूमिका अदा कर रहा है। अगर हम नूंह जिले के गांवों की बात करें तो डिजिटल इंडिया के इस दौर में 10 प्रतिशत से कम घरों में टेलीविज़न हैं, ऐसे में महिलाऐं जो पढ़ना-लिखना नहीं जानती रेडियो सुनकर सारी जानकारियां पाती हैं।

पिछले 5 सालों से कम्युनिटी रेडियो अल्फाज़- ए- मेवात न केवल समुदाय की महिलाओं से जुड़ा है व समाज के हर वर्ग बच्चों, किशोरों, किसानों, वृद्धों को विभिन्न रेडियो कार्यकमों के ज़रिये सूचना और जानकारी देकर आत्मनिर्भर बनाने में सहयोग कर रहा है। मकसद ये है कि वे अपने निर्णय खुद ले सकें और समाज में अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर सकें।

रेडियो के मुख्य कार्यक्रम जो लोगों की ज़िन्दगी का हिस्सा बन गए हैं वो  हैं :- किसान भाइयों के लिए कृषि खबर, तोहफा–ऐ- कुदरत जल जंगल ज़मीन, व महिलाओं को उनके स्वास्थ्य से जुड़ी जानकारी देने के लिए सेहत का पैगाम, मेवाती संस्कृति से रूबरू कराता है। कार्यक्रम सूफी सफ़र बच्चों को शिक्षा पर जानकारी देता है। कार्यक्रम रेडियो स्कूल और वक़्त हमारा है। किशोरों के भावनात्मक स्वास्थ्य से जुड़ी रेडियो श्रृंखला कुछ तुम कहो, कुछ हम कहें।

आज यहां की महिलाएं और किशोरियां इतनी सशक्त हुई हैं कि कम्युनिटी रेडियो कार्यक्रमों की लाइव चर्चोओं में भाग लेती हैं, अपनी राय प्रकट करती हैं। गाँव में कुछ महिला समूह ऐसे भी हैं जो  रेडियो कार्यक्रमों को बनाने में भी सहयोग देते हैं। आज इन महिलाओं की सोच में बदलाव आना शुरू हो गया है।

ज़रूरत है इस सोच को दिशा देने की ताकि इनके कदमों से हो इनकी पहचान। ये एक अलग बात है कि न जाने ये लेख कितने पढ़ने वालों को प्रभावित करेगा, कितनों के नज़रिए में बदलाव लायेगा परंतु ये इस बात की दस्तक ज़रूर है कि हमारे ग्रामीण इलाकों की महिलाओं ने अपने नज़रिए को समाज से अवगत करवाना शुरू कर दिया है।

 

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