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“बढ़ती लोकप्रियता के बीच गधों पर फिल्म बनाने का फैसला”

देश भारी संकट से गुजर रहा है। [envoke_twitter_link]उत्‍तर प्रदेश सहित देश में गधों की संख्‍या में अचानक बाढ़ आ गई है।[/envoke_twitter_link] हर जगह गधे ही गधे दिखाई दे रहे हैं। अब समस्‍या यह है कि गधा किसे कहा जाए, किसे माना जाए, किसको न माना जाए, किसको न कहा जाए। कुम्‍हार का, धोबी का और  किसान का गधा तो सुना था, लेकिन[envoke_twitter_link] राष्‍ट्रीय स्‍तर पर अन्‍य गधों की पहचान कराने वाली राजनीति गधामय हो गयी है।[/envoke_twitter_link] राजनीति में किस गधे को नमस्‍कार किया जाए और किस गधे को दुलत्‍ती मारी जाए गहरे आर्थिक संकट की तरह अबूझ पहेली है।

अब सवाल यह है कि बोलने वाला गधा है या सुनने वाला या फिर देखने वाला या फिर महसूस करने वाला गधा है। चुप रहने वाले गधे भी पाए जाते हैं तो दूसरी तरफ बिना बात के बोलने वाले (रेंकने) गधे भी मिल जाते हैं। लेकिन इतनी प्रजातियां तो खरगोन के मेले में भी देखने को नहीं मिलती।

[envoke_twitter_link]अब सवाल उठ रहा है कि इस मौसम परिवर्तन में अचानक इतने गधे कहां से आ गए।[/envoke_twitter_link] इस मौसम में तो भ्रष्‍टाचार, नाली सुधार, महिला सुधार, नगर सुधार, जलेबी सुधार, सड़क सुधार, बिजली आपूर्ति सुधार आदि-आदि पाये जाते हैं, ये गधा कहां से टपक पड़ा।

[envoke_twitter_link]गधा एक निरीह प्राणी है।[/envoke_twitter_link] आप उससे प्रेरणा ले सकते हैं, उसको डंडा मार सकते हैं, उस पर अमानवीय अत्‍याचार कर सकते हैं, उसे गधा कह सकते हैं, उसे कहीं भी बांध सकते हैं, या बांधने का नाटक कर सकते हैं तो भी वह बंधा रहेगा। गधा ईमानदार होता है, लाचार होता है, निरीह होता है, समाज से तिरस्‍कारित होता है, राजनीति से निकाला गया होता है, जो राजनीति में नहीं चल पाता वह गधा होकर नौकर बन जाता है। गधे की बेबसी पर हर कोई मजाक उड़ा सकता है, हर कोई चिरोरी कर सकता है। उसका चुप रहना उसकी महानता है।

आज तक आपने किसी गधे को विरोध करते हुए नहीं देखा होगा, गधे को देश विरोधी नारे लगाते नहीं देखा होगा, दंगों में गधों का कोई योगदान नहीं होता, बलात्‍कारी गधे को आपने नहीं देखा होगा, बलात्‍कार पर राजनीति की रोटी सेकते किसी गधे को आप नहीं पा सकते, उसे जंगल में छोड़ दो या राजनीति में उसे गधा समझकर ही काम लिया जाता है।

गधे की लोकप्रियता आज टी आर पी के हिसाब से देखा जाए तो अमिताभ बच्‍चने से ज्‍यादा है और सचिन तेंदुलकर से कम नहीं। दोनों ही मेरे लिए दोनों सम्‍मानीय है और आदरणीय है। [envoke_twitter_link]वर्तमान चुनाव के दौरान गधा ही गधा अखबारों में छा रहा है और छप रहा है।[/envoke_twitter_link] कटरीना कैफ से ज्‍यादा गधे के फोटो अखबारों में दिखाई दे रहे हैं। उज्‍जैन के टेपा सम्‍मेलन में गधे की जो आवभगत होती है उससे ज्‍यादा उसे आज हर कोई तवज्‍जों दे रहा है।

हर नेता कह रहा है, हाय मुझे गधा क्‍यों नहीं कहा। जिन्‍हें कहा जा रहा है वे धन्‍य हो गए और जिन्‍होंने कहा वे भी धन्‍य मान रहे हैं। गधे की आत्‍मकथा लिखने की बात नहीं है अब तो विश्‍व मंच पर गधों पर फिल्‍में बनाने की बात चल रही है। गधों के गुणों पर विश्‍वविद्यालयों में व्‍याख्‍यान आयोजित करने की बात की जा रही है। प्रोफेसर और शिक्षाविद गधों के जीवन पर पाठय पुस्‍तकों में एक अध्‍याय जोड़ने की बात कर रहे हैं।

[envoke_twitter_link]गधा बेरोजगार नहीं होता है, वह रोजगार की तलाश में इधर-उधर भटकता नहीं है[/envoke_twitter_link], वह कभी किसी दंगें में शामिल नहीं होता है, वह सेना पर पत्‍थर नहीं मारता है, वह कॉलेजों में डंडे नहीं चलाता है, वह किसी पार्टी का चुनाव चिन्‍ह भी नहीं होता है। ऐसी स्थिति में निरीह/मजबूर गधे का मजाक बनाने वाले मुझे स्‍वयं गधे नजर आ रहे हैं। एक मूक होकर मुनी की तरह सबके अवगुणों को आत्‍मसात करने वाला [envoke_twitter_link]गधा आज राजनीति में फंस कर दुर्गति को प्राप्‍त हो गया है।[/envoke_twitter_link] ईश्‍वर उसे इस राजनीति से निकलने के लिए सेफ कॉरिडोर प्रदान करे।
मैं तो यही चाहूंगा अगले जन्‍म में हे ईश्‍वर मुझे गधा बनाये, जिससे मुझे गधत्‍व की प्राप्ति हो सके।
श्री गधायनम:

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