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अस्वाथ्यकारी स्कूल

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अस्वाथ्यकारी स्कूल

-बीरेंद्र सिंह रावत

यदि आपको पेशाब करना है तो आपको एक पहरेदार साथ रखना होगा | आप पुरुष हों या स्त्री इससे फ़र्क नहीं पड़ता | उस पहरेदार की दो जिम्मेदारियाँ होंगी | एक , जब आप पेशाब करने शौचालय में जाएँ तो आपके बाहर निकलने तक उसे शौचालय के दरवाजे पर डटे रहकर विपरीत लिंग के/की व्यक्ति को भीतर आने से रोकना है | दूसरी जिम्मेदारी यह है कि उसे दरवाजे के पास खड़े होकर हांक लगाकर पूछना है कि शौचालय में कौन है ? उसे यह सुनिश्चित कर लेना होता है कि भीतर विपरीत लिंग का/की व्यक्ति नहीं है |

जी हाँ यह सच्चाई है दिल्ली के एक उच्चतर माध्यमिक बालिका विद्यालय की | इस विद्यालय में 2000 से ज्यादा लडकियाँ पढ़तीं हैं | 2000 लडकियों और उनकी शिक्षिकाओं ,उनके शिक्षकों और अन्य कर्मचारियों के लिए एक शौचालय है| उसी में पेशाब करने की तीन जगहें पुरषों के लिए तथा तीन शौच-स्थान हैं | शौच के लिए स्त्रियाँ और पुरुष इन्हीं शौच स्थानों का उपयोग करती/करते हैं | इसी कारण हर किसी को एक पहरेदार लेकर चलना पड़ता है |

इतना ही नहीं आपको पेशाब करने के लिए एक योजना बनानी होती है | जैसे की आपको पेशाब आने के 10 मिनट पहले ही पहरेदार की तलाश में जुट जाना होता है | यदि आप ऐसा करने में सफल रहती/ रहते हैं तो पहरेदार के साथ शौचालय के गेट को घेरकर किसी भी नए/नई उपयोगकर्ता को रोकना होता | इसके लिए आपका थोड़ा सख्त होना अपेक्षित है | वरना आप अपनी खैर मनाइए |

अंदर जाकर आपको पेशाब करने लायक जगह नहीं मिलेगी, लेकिन रेलवे लाइन के पास वाली किसी बस्ती के आस-पास की जगह को पीछे छोड़ती हुई उस सुविधा का उपयोग करने के अलावा आपके पास कोई रास्ता नहीं है |

यह देश की वह ठोस हकीकत है जिसमें एक राष्ट्र ने अपने विद्यार्थियों और उनके शिक्षकों तथा शिक्षिकाओं को सीखने-सिखाने के लिए अवसर उपलब्ध करवा रखे हैं | 670 से ज्यादा लडकियों के लिए एक शौच-स्थान उपलब्ध है | पेय जल और स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार 40 लडकियों के लिए एक शौच-स्थान उपलब्ध होना चाहिए | लडकों के लिए उपलब्धता 80 पर एक की होनी चाहिए | जबकि यूनिसेफ के मानदंड के हिसाब से 25 लडकियों के लिए एक शौच-स्थान तथा 80 लडकों के लिए एक पेशाब करने की जगह और एक शौच-स्थान उपलब्ध होना चाहिए | लेकिन इस स्कूल में शौच-स्थान : लड़की : : 1 : 670 | शौच-स्थान और लडकियों के अनुपात के मामले में इस स्कूल की लडकियाँ इसी स्कूल की दूसरी पाली में पढ़ने वाले लडकों से भी बदतर स्थिति में हैं | दूसरी पाली में लड़के भी इसी शौचालय का उपयोग करते हैं | लेकिन उनके पास पेशाब करने तथा शौच करने के लिए तीन-तीन जगहें उपलब्ध रहतीं हैं | इस प्रकार पेशाब करने के संदर्भ में उनके पास 1 : 335 के अनुपात में जगह उपलब्ध रहती है | लेकिन उन्हें एक परेशानी का अलग से सामना करना पड़ता है | शौचालय की छत पर रखी टंकियों का पानी उनके स्कूल लगने तक खत्म हो जाता है | बिना पानी के ये विद्यार्थी प्रकृति प्रदत दो चुनौतियों का सामना करते हैं | और अनेक बार पानी की अनुपलब्धता और जगह की कमी के कारण बने हालातों में ही सुबह लडकियों को इस ‘सुविधा’ का उपयोग करना पड़ता है |

अपने आप को किसी बुरी स्थिति से बचाने के लिए कई लडकियों ने अपने आप को दूसरी बुरी स्थिति में डाल लिए है | इनमें से अधिकांश उठने से लेकर, स्कूल से वापस घर पहुँचने तक पानी ही नहीं पीतीं | कम पानी पीने से होने वाले रोगों के बारे में कोई भी डाक्टर विस्तार से समझा सकता/सकती है | यानि इन लडकियों ने जुल्म से लड़ने की शिक्षा न पाकर स्वयं पर जुल्म करने की शिक्षा पा ली है | यह विचारणीय विषय है कि इस शिक्षा से लड़की के संदर्भ में किस-किस प्रकार के सत्ता पक्ष लाभ में रहेंगे |

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