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इस देश को छात्र “राजनीति” के साथ छात्र”नीति” भी चाहिए।

क्या आपने कभी सोचा है कि जिस देश में सारे मौसम हों, उपजाऊ ज़मीन हो, इतना पुराना इतिहास और संस्कृति हो, वह आर्थिक, सामाजिक और शैक्षणिक क्षेत्र में पीछे क्यों है? क्यों हम आज भी उस दिशा में, उस रफ़्तार से नही बढ़ पा रहे हैं जिस का हम सामर्थ्य रखते हैं। क्यों हम वर्तमान परिस्थितियों का सामना करके उनका हल निकालने के बजाय दोषारोपण के लिए किसी चेहरे की तलाश कर रहे हैं? क्यों हम इतिहास को दोषी मानकर अपना कर्तव्य पूर्ण समझ रहे हैं? प्रश्न गंभीर है और इस पर चिंतन की आवश्यकता है। हमको पढ़ाए जाने वाले इतिहास में जो घटनाएं हुई उनको तो बताया जाता है, लेकिन वो किन परिस्थितियों में हुई और यह कैसे सुनिश्चित किया जाए कि अब ऐसा न हो, इसके बारे में कोई शिक्षा नीति नहीं है।

दरअसल भारत बंटा हुआ है और धर्म, जाति, क्षेत्र, भाषा आदि इसको बांटने के कारण हैं और वर्तमान राजनीति यही चाहती है कि हम बंटे रहें। इसीलिए उन्होंने युवाओं को व्यर्थ बातों में बहलाकर बांटना शुरू कर दिया है, क्योंकि वो जानते हैं कि क्रांति की चिंगारी सदैव युवा, विशेषकर छात्रों से निकलती है। यह वो दौर है जब छात्र शक्ति देश की सबसे बड़ी सत्ता को चुनौती भी देती है और सत्ता की कठपुतली भी बनती है जो भारत में पांव पसारते लोकतंत्र को दर्शाता है।

स्वामी विवेकानंद ने कहा था, “स्वतंत्र होने का साहस करो। जहां तक तुम्हारे विचार जाते हैं वहां तक जाने का साहस करो और उन्हें अपने जीवन में उतारने का साहस करो।” उनका कहना था, “अगर शिक्षा चरित्र का निर्माण नहीं करती है और लोगों को शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत नहीं बनाती है तो वह शिक्षा अधूरी है।”  दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर की पिटाई, वहां के छात्रों और उनके संगठन के चरित्र को दिखाती है। वर्तमान में स्वामी विवेकानंद को आदर्श मानने वाले लोग जिस प्रकार से व्यवहार कर रहे हैं, वह वास्तव में चिंताजनक है। क्या वास्तव में आज का युवा विवेकानंद, भगत सिंह आदि को पढ़ रहा है या मात्र चित्र की पूजा कर के झंडा उठा कर किसी नेता के पीछे चलने की तैयारी कर रहा है?

भारत के सामने चुनौतियां कम नहीं है, युवाओं के पास ऊर्जा है जिसका सही उपयोग नहीं हो पा रहा। युवा मात्र नारे लगाने, भीड़ बनने और सोशल मीडिया पर गालियां देने के लिए नहीं है, युवा होना एक ज़िम्मेदारी है जिसका उन्हें एहसास करवाना होगा। युवाओं को तय करना होगा कि उनके किये कृत्य का परिणाम क्या हुआ, क्या होना चाहिए था और क्या होगा। बड़े-बड़े आंदोलन छात्रों की लाशों से होकर गुजरे हैं और हाल में हुए आंदोलनों का हश्र देखकर यह तो समझ आ ही गया है कि स्थायी परिवर्तन के लिए जोश नहीं होश चाहिए। क्योंकि जो अग्नि हमें गर्मी देती है, हमें नष्ट भी कर सकती है यह अग्नि का दोष नहीं है

वर्तमान में युवाओं को संगठित होना होगा, प्रश्न पूछने होंगे और किसी का भी अंध समर्थन या अंध विरोध करना त्यागना होगा। हमारा संगठन ही हमारी ताकत है और हमारी ताकत ही देश का भविष्य । भारत विश्व का सबसे युवा देश है। जब सभी एक साथ रह नहीं सकते और एक बड़ी आबादी को मात्र इसलिए अछूत समझते है क्योंकि उनकी विचारधारा अलग है या वो अलग कॉलेज में पढ़े हैं, तो अन्य बाहरी समस्याओं से कैसे लड़ा जाएगा?

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