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कल्पना की उड़ान

आज कल्पना चावला (मार्च 17, 1962 – फ़रवरी 1, 2003) की  14वीं बरसी है। वे कोलंबिया स्पेस शटल हादसे में मारे गए सात यात्री दल सदस्यों में से एक थीं। उनके काम और सफलता की चर्चा आज भी देश में ही नहीं, पूरे विश्व में होती है. लेकिन क्या थे उनके सपने और कैसे वो पहुंची अपने सपनों तक, आईये पढ़ते है उनके चाँद-तारों को छू लेने की चाहत और सपनों के बारे में।


आसमान कितना सुंदर दिखता है। दिन में सूरज की चमक, तो रात में झिलमिलाते चाँद-तारे। मन करता है आसमान तक पहुँच जाएँ। क्या होगा बादलों के ऊपर? जाने चाँद-तारे पास से कैसे दिखते होंगे?

ऐसी ही बातें हरियाणा की एक लड़की सोचती थी। उसका नाम है – कल्पना चावला। बचपन में उसका कमरा चाँद-तारों की तस्वीरों से भरा रहता था। बड़ी होने पर वह सचमुच धरती से लाखों मील ऊपर तक घूम आई। इस लाखों मील ऊपर की जगह को अंतरिक्ष कहते हैं। वैसे तो दुनिया के कई आदमी-औरत वहां जा चुके हैं। पर कल्पना हिंदुस्तान की सबसे पहली औरत है जो अंतरिक्ष में गई।

अंतरिक्ष में धरती जैसे कई ग्रह हैं – जैसे शनि और मंगल, इसके अलावा वहाँ चाँद, तारे, और सूरज भी हैं। पर यह सब धरती से बहुत अलग हैं। हमारी धरती पर साँस लेने के लिए हवा होती है। पर जैसे-जैसे हम धरती से ऊपर जाते हैं, हवा कम होती जाती है। अंतरिक्ष में तो हवा होती ही नहीं है! साँस लेने के लिए लोग वहाँ सिलिंडर में हवा ले जाते हैं। और हैरानी की बात यह है कि वहाँ पहुँचते ही लोग उड़ने लगते हैं। धरती में हर चीज़ को अपनी ओर खींचने की ख़ास ताकत होती है। इसलिए पेड़ से फल हमेशा ज़मीन पर गिरता है। अंतरिक्ष में ऐसी कोई ताकत नहीं होती। इसलिए वहाँ ज़मीन पर टिकने के लिए ख़ास कपड़े पहनने पड़ते हैं।

अंतरिक्ष धरती से इतनी दूर है कि वहाँ हवाई-जहाज़ से भी नहीं जा सकते। वहाँ रॉकेट नाम के ताकतवर जहाज़ में जाते हैं। पर आखिर वहाँ जाने की ज़रुरत क्या है? धरती से अंतरिक्ष में लोग जानकारी लेने जाते हैं। वहाँ की मिट्टी कैसी है? क्या वहाँ धरती जैसा जीवन है? और अंतरिक्ष से धरती कैसी दिखती है? इतनी दूरी से धरती के बारे में जानकारी मिल सकती है। ऐसी ही जानकारी लेने कल्पना चावला अंतरिक्ष गई।

कल्पना का जन्म हरियाणा राज्य के करनाल शहर में हुआ। अंतरिक्ष में जाने की बात तो दूर, पढ़ाई का ही भरोसा न था। कल्पना यह भी नहीं जानती थी कि माँ-बाप उसे कॉलेज भेजेंगे या नहीं। लेकिन जहाँ चाह, वहाँ राह। पिता ने हौसला बढ़ाया। कल्पना ने करनाल में हवाई-जहाज़ उड़ाना भी सीखा। फिर कालेज के बाद आगे की पढ़ाई के लिए विदेश गई। वहाँ बड़ी लगन से दिन-रात मेहनत की। आखिर अंतरिक्ष में जाना कोई मामूली बात तो नहीं! उसकी महनत मेहनत रंग लाई। अंतरिक्ष में जाने वाले लोगों के नाम की सूची निकली। तीन हज़ार लोगों में से सिर्फ उन्नीस को चुना गया। और इनमें से एक थी कल्पना चावला।

19 नवंबर, 1997 को कल्पना राकेट से अंतरिक्ष गई। उसके सभी घरवाले उसकी कामयाबी देखने विदेश गए। कल्पना के जन्म से पहले उसकी माँ लड़का चाहती थी। कल्पना को अंतरिक्ष में जाते देखकर उन्होंने एक ही बात कही। “कल्पना ने वो हासिल किया जो शायद ही कोई बेटा कर पाता।”

स्रोत : आपका पिटारा, अंक 27, 1997

(यह लेख मूल रूप से निरंतर ब्लॉग में प्रकाशित हुआ था)

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