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चुनावी मेनिफेस्टो की सौगात

एक तरफ जहां ठंड अपने चरम स्तर पर है वही दूसरी तरफ पांच राज्यों में होने वाले चुनावों को लेकर राजनीतिक सरगर्मी तेज होती जा रही है । सभी राज्यों के चुनाव आने वाले कुछ दिनों में शुरू होने को हैं जिसे देखते हुए तमाम राजनीतिक पार्टियां एक बार फिर लुभावने या यूं कह ले की ‘ खैराती ‘ घोषणापत्र लेकर हाजिर हैं ।

देश के बड़े राज्यों में से एक, उत्तर प्रदेश हो या फिर गोवा जैसा कम आबादी वाला प्रदेश हम जिस तरफ नजर घुमाएंगे हमें पार्टियों के चुनावी घोषणापत्र में बहुत से बातें आम मिल ही जाएगी चाहे वो समाजवादी पार्टी हो या बीजेपी, चाहे कांग्रेस हो या आप इनके घोषणापत्र में मुफ्त का लैपटॉप, इंटरनेट, किसानों का कर्ज माफ, मुफ्त बिजली, बेरोजगार भत्ता आदि-आदि चीजें सामान्य मिल ही जाएंगी बस नहीं मिलता तो इन वादो  का लागू करना । चुनाव के बाद कुछ एक पार्टियां ही ऐसी होती हैं जो अपने चुनावी वादो को जमीनी धरातल पर उतार पाती हैं ।

देश की तमाम व्यवस्थाएं चाहे वह आर्थिक क्षेत्र, व्यवसायिक क्षेत्र, स्वास्थ्य या सरकार द्वारा चालित कोई परियोजना हो यह सभी कहीं ना कहीं जनता के पैसे से ही चलते हैं यदि हम इसे गहनता से समझे तो पाएंगे की एक छोटी सी सुई हो या एक बड़ी गाड़ी हर वस्तु पर हमें बिक्री टैक्स देना होता है और ना सिर्फ बिक्री टैक्स साथ में सेवा, रॉयल्टी, कृषि ,आयकर, उत्पादन इत्यादि न जाने कितने तरह के टैक्सो का भुगतान करना पड़ता है और इन्ही टैक्स से सरकार अपनी कार्यप्रणाली या फिर अन्य परियोजनाओं को चलाती है मगर यहां सवाल यह उठता है कि पैसे तो जनता का ही है ,फिर भी तमाम राजनीतिक पार्टियां अपने मेनिफेस्टो को ‘ मुफ्त ’ शब्द से क्यों पाट देती हैं ? आखिर क्यों पार्टिया यह दिखाने की कोशिश करती हैं कि चुनाव के बाद वह ‘ मुफ्त ’ के ‘ खैरात ’ बाटेंगी ?

बहरहाल, एक तरफ जहां यह राजनीतिक पार्टियां है तो दूसरी तरफ हम आम लोग हैं ,आज 21वीं सदी के गतिशील विकास वाले दौर में रहते जरूर है मगर मुफ्त की चीजों से बहुत जल्दी आकर्षित भी हो जाते हैं। चाहे वह जियो का सिम हो या मेनिफेस्टो के ‘ खैराती ’ वादे हम में से ज्यादातर लोग आकर्षित हो ही जाते हैं और भूल जाते हैं तो बस कंपनी का नेटवर्क और पार्टियों का प्रदर्शन (काम) ।

अंततः , चुनावी मेनिफेस्टो के पीछे छुपे हुए राजनीति को समझने की कोशिश करेंगे तो जहन में यह सवाल जरूर उठेगा कि आखिर क्यों राजनीतिक पार्टियां सरकार में रहते, उन तमाम घोषणाओं को मूर्त रुप नहीं देती है जिसे वह चुनावी मेनिफेस्टो के लिए बचाकर कर रखती है ?

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