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झम्‍मन गाजियाबादी

नवासे के ब्‍याह में बाप की तरह काम करने वाले झम्‍मन को अपनी शादी की याद आ गई। नवासे की शादी में गधे की तरह लगे हैं और अपनी शादी में गधे की तरह सुस्‍ताते रहे और बोझ से बचे रहे। गधे की तरह चिन्‍ता मुक्‍त। लाद दिया तो लद लिये नहीं तो एकाकी मुनि की तरह ध्‍यान में मस्‍त खड़े। न खाने की चिन्‍ता, न पीने की चिन्‍ता मिल गया तो खा लिया, नहीं मिला तो कोई गिलाशिकवा नहीं। अब कुत्‍ते की तरह भौंकने की आदत तो है नहीं कि खाना नहीं मिला तो इधर-उधर सूंघते फिरे या फिर अनायास आने जाने वाले पर मुंह उठाकर भौंकना शुरू कर दिया।
नवासे की शादी में मालूम पड़ा कि असली गधा क्‍या होता है? बड़ा चाव था झम्‍मन को नवासे की शादी अपने घर से करेंगे। उसके मां-बाप इस चिन्‍ता से मुक्‍त कि जब तक झम्‍मन हैं; तब तक किसकी मजाल है कोई आफत आ पड़े या मुसीबत खड़ी कर सके।
पहले की सी बात नहीं रही, जब बारात लेकर लड़की वाले के यहां जाते और पानी में भी नुकस निकालते। धोबी से लेकर पनवड़िया तक आपकी मेहमान नवाज़ी में तत्‍पर खड़ा रहता। पान थूकने के लिए दरबान पानदान लेकर तैयार रहता। अब तो रिवाज यह हो गया है कि बारात लेकर आप नहीं जाएंगे, बल्कि लड़की वालों को अपने यहां बुलायेंगे। गब्‍बर होता तो यही कहता-निकल गई सारी हेकड़ी, पानदान उठाओ, चायपान कराओ, रायता फैलाने वालों के आगे रायते का गिलास बढ़ाओ।
लड़के का दादा न हुआ हज्‍जाम हो गया। सारा इंतजाम देखना है, लड़की वालों का, लड़के वालों का, दूल्‍हें के नाजायज दोस्‍तों का, फेस बुक से लेकर वटद्स एप तक के फ्रेंडस को झेलो, जिनको जानते नहीं, जिनको पहचानते नहीं उनकी सेवा लम्‍बे सलाम के साथ हाजिर हो।
मुसीबत तो जब आ पड़ी जब दुल्‍हन को लेने के लिए गाजियाबाद जाना पड़ा। दुल्‍हन तो दुल्‍हन है कोई आपका अर्दली थोड़े ही है जो एक आवाज में हाजिर हो जाए। नवासे से मालूम पड़ा कि दुल्‍हन की तबीयत नासाज़ है तो, उसने फरमान जारी कर दिया मुरब्‍बा को भेज दीजिए। जो पास खड़े थे उनकी अकल पर पत्‍थर पड़ गए? ये मुरब्‍बा कौन है? मुरब्‍बा यानी अब्‍बा के अब्‍बा। यानी जो नवासे की हर बात पर हाज़िर हों उन्‍हें मुरब्‍बा कहा जा सकता है। बस फिर क्‍या था- नवासे के मुरब्‍बा झम्‍मन गाजियाबाद की ओर दौड़ पड़े।
उत्‍तर प्रदेश सरकार आपका स्‍वागत करती है, आपका मुख्‍यमंत्री, आपका विकास मंत्री, आपका स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री, आपके धर्म के पुरोधा, आपके मजहब के रखवाले, आपकी पगड़ी की इज्‍जत करने वाले, सबके पोस्‍टर लगे थे। झम्‍मन बड़े प्रसन्‍न थे। उत्‍तर प्रदेश  में कितना धार्मिक सदभाव है, लेकिन फिर भी कहीं न कहीं दंगा फसाद तो हो ही जाता है। अब असली बात ये थी कि हर चौराहे पर झम्‍मन दुल्‍हन का पता लेकर पूछ रहे थे, ये गली, ये मुहल्‍ला, ये सड़क कहां पर ? हर कोई बताता उसी राह पर चल पड़ते, कई बार तो एक ही जगह से दो बार गुजर गए। ऐसा लगा इससे तो अच्‍छा था कि इस जहां से गुज़र जाते।
गाजियाबाद में पता ढूंढना उसी तरह था जैसे कुए में भांग को खोजना। हर जगह, हर स्‍थान पर पोस्‍टर ही पोस्‍टर थे, जहां-जहां दिशासूचक निशान (इंडिकेटर) थे, वहां-वहां पर उत्‍तर प्रदेश सरकार विराजमान थी। जब दो घंटे नवासे की दुल्‍हन को ढूंढते-ढूंढते हो गए तो, नवासे को फोन से पूछा-अब कहां मरें यहां तो चारो रास्‍तों पर दिशासूचक निशान की बजाय सरकार बैठी है। नवासे ने कहा-मुरब्‍बा ऐसा करो गाजियाबाद थाने में रिपोर्ट करो। मुरब्‍बा ने वैसा ही किया। ठीक 15 मिनट में नवासे की दुल्‍हन थाने में हाजिर।
मुरब्‍बा को देख खुशी से सलाम किया, बाईक की चाबी मांगी और बाइक स्‍टार्ट कर बोली-आओ मुरब्‍बा ये यू पी है, यहां बाईक चलाना तुम्‍हारे बस की बात नहीं। घोड़े की नहीं ऊ्ंट की सवारी है।
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