निकम्मापन यानी
सुनील जैन ”राही”
एम-09810 960 285
खुदा का कहर
कहर का असर देखो
चार महिलाएं और चारो चुप
बतियाती इशारों में
खुदा ने दिए कान और जबान दोनों
लेकिन दोनों ही निकम्मे
मेरी सरकार की तरह।
कुछ लोग जन्म से हरामखोर होते हैं, कुछ देख-देख कर हो जाते हैं। हरामखोरी करना एक कला है। इस कला के पारखी हर स्थान/क्षेत्र में पाये जाते हैं। इसे कला कहने पर विदवानों में गहरा मतभेद है। कुछ लोग कामचोरों को हरोमखोर कहते हैं तो कुछ लोग काम टालने वालों को भी इसी श्रेणी में रखना चाहते हैं। सत्य तो यह है कि हरामखोरी करने के लिए शरीर की ऊपरी में मंजिल भेजा नाम की वस्तु का होना जरूरी है। यह अक्सर उन अक्लमंदों/हरामखोरों द्वारा किया जाता है, जो दूसरों से अपना काम करवा लेते हैं या काम में ऐसा नुस्ख निकालते हैं या पैदा करते हैं, जिससे उस काम की आवश्यकता ही समाप्त हो जाए।
झम्मन से बड़ा हरामखोर आज कोई दूसरा नहीं हुआ। जहां भी गए अपनी हरामखोरी के झंडे गाड़ते चले गए। मजाल है जो आज तक उन झंडों को उखाड़ने की हिम्मत किसी ने की। अगर भूलवश किसी ने कर भी दी तो उतनी इज्जत नहीं पाई और सीधे-सीधे हरामखोरों की जमात में शामिल हो गए। असली हरामखोर तो वह है, जो हरामखोर हो कर भी हरामखोर न कहलाए। हरामखोरों के कई नाम हो सकते हैं। जैसे रेट के हिसाब से चीज की किस्म बदल जाती है, उसी तरह हरामखोरी की गुणवत्ता के आधार पर हरामखोरी करने वाले की किस्म तय हो जाती है। जैसे कुली नम्बर एक, हीरो नम्बर एक, वैसे ही हरामखोर यानी निकम्मापन, कामचोर, मुफ्तखोर अथवा मक्कार कह सकते हैं।
कुछ कम हरामखोर होते हैं, कुछ ज्यादा। कुछ दूसरों का भला करके हरामखोर बन जाते हैं, जिससे वे हरामखोरी की उच्चकोटि में समा जाते हैं। कुछ हरामखोर पूरे कामचोर हो जाते हैं, उनका उद्देश्य केवल अपना हित साधना होता है, चाहे उसके लिए किसी की जान ही क्यों न चली जाए।
हरामखोरों की उन्नत किस्म सरकारी महकमे में पाई जाती है। ऐसा नहीं है कि यह किस्म निजी कार्यालयों में नहीं होती। वहां पर ऐसे लोग ज्यादा दिन टिक नहीं पाते यानी हरामखोरी नहीं कर पाते। इनकी किस्म में दिनों दिन सुधार हो रहा है और इस सुधार को रोकने के लिए सरकार और निजी क्षेत्र दोनों ही मिलकर ठोस कदम उठा रहे हैं। कोई कैमरे लगवा रहा है तो कोई बायोमीट्रिक मशीन। लेकिन इससे इन पर कोई खास असर नहीं हो रहा है। वे कैमरे और मशीन को धता बनाकर अपने कर्म में पूरी निष्ठा से लगे रहते हैं। वैसे देखा जाए तो यह भी सच है कि इनकी बदौलत ही देश चल रहा है। अगर ये लोग न हो तो हरामखोरी रोकने के बारे में सोचने का काम कौन करेगा। देश के विकास के लिए उन्नत किस्म की योजना चाहिए वैसे ही देश के विकास के लिए उच्चकोटि के हरामखोर चाहिए। हरामखोरी की काट के नये-नये उपाय किए जाएंगे और ईमानदारी से काम करने वाले और अधिक ईमानदारी से ज्यादा काम करेंगे। हरामखोर तो काम करेंगे नहीं।
ईमानदार आदमी डरपोक और हरामखोर सीनाजोर होता है। ईमानदार आदमी जिम्मेदारी ओढ़ता है और हरामखोर जिम्मेदारी फेंकता हैं। ईमानदार आदमी पांच साल काम करता है और हरामखोर आदमी पांच महीने प्रचार करता है।
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