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पत्रकार और पुरस्कार

आज का यूथ नौकरी की तलाश में भटक रहा है। जो भी यूथ काॅलेज से बाहर निकलता है तो नायक की भांति पत्रकार बनना चाहता है और वह चाहता है कि वह सीधे मुख्यमंत्री का इन्टरव्यू करे। पत्रकारिता अब सम्मान का पेशा नहीं माना जाता है। ऐसा लगता है जैसे पत्रकार न होकर कोई धमकाने आया हो। पीत पत्रकारिता के अपने जलवे हैं। पेड न्यूज का धब्बा भी साफ नजर आता है। हर कोई पत्रकार को भय के कारण और अपने काम करवाने के लिए मित्र बनता है और बनाता है, ताकि उस पर मीडिया की गाज न गिरे।
लेकिन आज ऐसी पत्रकारिता को भी सलाम किया जा रहा हैं जो पूरी तरह पत्रकारिता के मापदण्ड पर खरा उतरती हो । ऐसे ही पत्रकार, पत्रकारिता के नोबल हैं और उन पर गर्व करने के लिए संस्था इंडियन चेम्पटर आॅफ इंटरनेशनल प्रेस इंस्टीट्यूट ने बीड़ा उठाया और नोबल पुरस्कार से सम्मानित श्री कैलाश सत्यार्थी के कर कमलों से दो पत्रकारों को आई पी आई पुरस्कार से सम्मानित कियाा। राजस्थान पत्रिका के पत्रकार वरूण भटट और द वीक मेगजीन के रबी बनर्जी को एक-एक लाख रुपये की राशि से सम्मानित किया गया!
निश्चय ही इस खबर को सुनकर हर युवा पत्रकार बनना चाहेगा और बनना भी चाहिए। पत्रकार बनने में शोहरत है, पैसा है और आगे पीछे घूमने वाले अनेक लोग भी हैं, लेकिन इस पुरस्कार को पाने वाले ऐसे हाई फाई पत्रकार न हो कर एक साधारण राजस्थानी युवक वरूण भटट है जो राजस्थान के दूर दराज के इलाके में रहकर अपनी पत्रकारिता चलाता है। दूसरे द वीक मेगजीन के श्री रबी बनर्जी हैं।
श्री वरूण भटट की कहानी भी अलहदा है। उन्होंने इस पुरस्कार के लिए काम नहीं किया, बल्कि देश के उस सम्मान के लिए काम किया जो उसे आज का यूथ भूल चुका है और वयोवृद्ध हैं, उन्होंने तो उसे याद ही नहीं किया अन्यथा इस युवक को 1913 में अंग्रेजों के खिलाफ लड़े शहीदों के सम्मान के लिए दस वर्ष का संघर्ष नहीं करना पड़ता है। अगर यही जज्बा है तो पत्रकार सर आंखों पर पुरस्कारों/धन/शोहरत तो हर दिन/हर रात आकर कदम चूमेंगी।
ऐसे ही दूसरे सह सम्मानित रबी बनर्जी की कहानी है। द वीक मेगजीन में कार्यरत श्री बनर्जी ने भी ऐसा ही एक बीड़ा उठाया। मणिपुर की लोह महिला मानी जाने वाली इरोम शर्मिला की कहानी जन-जन तक पहुंचाई। कितने दिनों तक उनकी कहानी को समेटा, लिखा, शब्दों में पिरोया और जनता के सामने पेश किया। यह दीगर बात है कि आज उनको जो मुकाम मिला है उसमें भले ही श्री बनर्जी की भूमिका नगण्य रही हो, लेकिन इस बात को भी नहीं नकारा जा सकता कि अगर उनको मीडिया नहीं मिलता तो हो सकता और उन्हें और कुछ वर्षों तक गुमनाम जिन्दगी और मुकाम पाने के लिए संघर्ष करना पड़ता।
यूथ को चाहिए कि यूथ की आवाज की तरह इन यूथ (दोनो पुरस्कार से सम्मानित युवाओं )को भी सर आंखों पर बिठायें और इनकी तरह पत्रकारिता में नया आयाम प्रस्तुत करने के लिए यूथ के लिए यूथ की आवाज के साथ जुड़ जाएं। अगर यूथ मजबूत होगा, उसकी आवाज जब सुनी जाएगी तो निश्चित रूप से पत्रकारिता के नये मुकाम आयेंगे और पाये जाएंगे।
पुरस्कारों के वितरण के बाद श्री कैलाश सत्यार्थी ने अपने जीवन के महत्वपूर्ण क्षणों को साझा किया और कहा कि उनकी सफलता में उनकी पत्नी का बहुत बड़ा हाथ है। अपने कार्य की मुहीम के दौरान पैदा हुई परेशानियेां का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा-युवकों/यूुथ को अपना मार्ग स्वयं सुनिश्चित करना चाहिए। उन्हें कौनसी स्टोरी देनी है, उसका कथ्य क्या है, वह किसी क्षेत्र के लिए उपयोगी है इन सब बातों को ध्यान में रखकर अपने ध्येय के लिए बिना किसी पुरस्कार लालसा के लग जाना चाहिए।
श्री मैत्यू ने पत्रकारों को निडरतापूर्वक कार्य करने की सलाह दी। कार्यक्रम के पश्चात श्री वरूण भटट और श्री रबी बनर्जी को पत्रकारों ने घेर लिया और सवालों की लम्बी लाईन पेश कर दी।

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