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हिन्दू मैरेज एक्ट, पाकिस्तानी अल्पसंख्यकों के लिए बड़ा कदम

पाकिस्तान में अल्पसंख्यक हिन्दुओं के लिए हिन्दू मैरज एक्ट पास कर दिया गया है। हिन्दुओं के विवाह के नियमन से जुड़े इस अहम विधेयक को संसद ने सर्वसम्मति से पारित किया है। अब राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के पश्चात यह  विधेयक  कानून बन जाएगा।

हिन्दू विवाह विधेयक-2017 को पाकिस्तान की संसद ने पारित कर दिया। आज़ादी के इतने दशक बाद यह सांत्वना पुरस्कार हिन्दुओं के खाते में आया है। शायद यह उनके ज़ख़्मों पर मरहम जैसा काम करेगा।

यह विधेयक हिन्दू समुदाय का प्रथम व्यक्तिगत कानून है। शायद पाकिस्तान को पहली बार महसूस हुआ होगा कि हिन्दू भी हमारे देश के नागरिक हैं। इनके लिए भी कुछ करना चाहिए।

इस विधेयक को नेशनल असेम्बली से पहले ही मंजूरी मिल चुकी है। इसे कानून  बनाने के लिए  केवल राष्ट्रपति के हस्ताक्षर की ज़रुरत है जो कि महज़ एक औपचारिकता मात्र है।

पाकिस्तान के प्रमुख अखबार दि डॉन के मुताबिक पाकिस्तान हिन्दू इस विधेयक को स्वीकार करते हैं क्योंकि यह शादी, शादी के रजिस्ट्रेशन,तलाक और पुनर्विवाह से संबंधित है।

पाकिस्तानी संसद ने लड़के और लड़की दोनों की विवाह के लिए न्यूनतम उम्र 18 वर्ष रखी है। यानी भारत की तरह लड़कों को 21 साल के होने का इंतजार नहीं करना पड़ेगा। यह विधेयक हिन्दू महिलाओं को उनके विवाह का दस्तावेजी सबूत हासिल कर सकने में मदद करेगा। अब तक ऐसी प्रक्रियाओं की व्यवस्था नहीं थी। महिलाएं अपने शादी की वैधता तक नहीं दिखा सकती थीं ।

पाकिस्तानी हिन्दुओं के लिए अधिनियमित यह व्यक्तिगत कानून पंजाब, बलूचिस्तान और पख्तूनख्वा प्रांत में प्रवर्तनीय होगा। सिंध प्रांत ने इस विधेयक से पहले ही अपना हिन्दू विवाह विधेयक बना लिया था। कानून मंत्री ज़ाहिद हमीद ने इस विधेयक को संसद में पेश किया जिसका किसी सांसद ने विरोध नहीं किया। विरोध न करने के पीछे यह वज़ह थी कि कई स्थाई समितियों में सभी राजनीतिक पार्टियों के सांसदों ने सहानुभूति पूर्ण संवेदना प्रकट किया था।

दो जनवरी को पूर्ण बहुमत के साथ ‘सीनेट फंक्शनल कमेटी ऑन ह्यूमन राइट्स’ ने इस विधेयक को मंजूरी दी थी। कुछ इस्लामिक संगठनों को इस विधेयक से आपत्ति है। उन्होंने इसका व्यापक स्तर पर विरोध किया है। उनके मुताबिक यह विधेयक इस्लाम के सिद्धांतों के खिलाफ है।

मुफ्ती अब्दुल सत्तार, जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम-फज़ल के सीनेटर हैं। इन्होंने कहा कि ऐसी जरूरतों को पूरा करने के लिए देश का संविधान सक्षम है। विधेयक को स्वीकृति देते हुए समिति की अध्यक्ष और मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट की सीनेटर नसरीन जलील ने कहा था कि यह अनुचित है कि हम पाकिस्तान के हिन्दुओं के लिए एक पर्सनल लॉ नहीं बना पाए हैं। यह न सिर्फ इस्लाम के सिद्धांतों के खिलाफ है, बल्कि मानावाधिकारों का भी उल्लंघन है।

इस विधेयक को अस्तित्व में लाने का श्रेय जाता है पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज के हिंदू सांसद रमेश कुमार वंकवानी को। पाकिस्तान में हिन्दू विवाह कानून के लिए ये तीन वर्षों से लगातार काम कर रहे हैं। शायद इस कानून से जबरन धर्मांतरण के मामलों में थोड़ी कमी आए।

अब तक पाकिस्तान में हिन्दू विवाहिता के लिए यह साबित करना मुश्किल था  कि वह शादीशुदा है। इससे जबरन धर्मांतरण कराने में शामिल धर्म  ठेकेदारों के लिए आसानी होती थी। वे जबरदस्ती किसी का किसी से निकाह करा देते थे।

यह कानून ‘निकाहनामा’ के दस्तावेज का ही हिंदू रुपांतरण है  जिसे ‘शादी परठ’ के नाम से जाना जाएगा।
यह दस्तावेज ‘निकाहनामा’ जैसा ही होगा जिस पर पंडित दस्तखत करेंगे और यह संबंधित सरकारी विभाग में पंजीकृत कराया जाएगा।

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