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मोमबत्‍ती

मोमबत्‍ती

                जितनी फजीहत लड़की के बाप की होती है, उससे ज्‍यादा प्राइवेट नौकरी में कर्मचारी की होती है। मालिक की दिवाली, दिवाली और नौकर की दिवाली तर्पण समान होती है। मालिक ने टाइम से छोड़ दिया तो घर पर बच्‍चों के साथ दिए जला लिए, नहीं तो दिए बुझने के बाद ही घर में प्रवेश हो पाता है।
                    झम्‍मन जी पर आज मालिक की कृपा हो गई, थोड़ा जल्‍दी छोड़ दिया। स्‍कूटर स्‍टेण्‍ड से बाइक पर सवार हो घर की ओर निकल लिए। घर पहुंचने में अभी भी 15-20 मिनट बाकी थे। चार-दिन से एक बुढि़या को सड़क के बीचों बीच हनुमान जी की फोटो लगाए, मोमबत्‍ती जलाए देख रहे थे। आज भी उसे देख कर उनका मन दुखी हो गया। उनका मन नहीं माना और जाकर बुढि़या के पास बाइक खड़ी कर दी। उतर कर मालिक की सौगात में से दो गुलाब जामुन और एक समोसा उसके सामने रख दिया। उसने झम्‍मन जी की ओर निरीह आंखों से देखा और बोली- बेटा देना ही है तो एक पैकेट मोमबत्‍ती का ला देना।
              झम्‍मन उसके सवाल से चौंक उठे। बुढि़या  ने बोलना शुरू रखा। देखों बेटा वो सामने मेन होल खुला पड़ा है। ये मोमबत्‍ती देख तुम्‍हारे जैसे तेज भागने वाले धीमे हो जाते हैं, और उससे बचकर निकल जाते हैं।
       दूसरे दिन झम्‍मन नगर पालिका में लिखित शिकायत लेकर पहुंचे। बाबू ने उन्‍हें अधिकारी तक पहुंचने ही नहीं दिया और फरमान जारी कर दिया-राज्‍य सरकार का आदेश ले आओ। ये हमारा काम नहीं है। दूसरे दिन वे राज्‍य सरकार के आफिस गये। वहां भी यही जवाब था, यह हमारा काम नहीं है, नगरपालिका का है।

शाम को आफिस से लौटते हुए मोमबत्‍ती के दो पैकेट खरीदकर बुढि़या को दे आए।
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