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अमरूद और चुनावी विकास दोनों सीज़नल हैं

विकास का मौसम चल रहा है। [envoke_twitter_link]विकास और जाम (अमरूद) दोनों का मौसम एक साथ ही है।[/envoke_twitter_link] जाम (अमरूद) हर साल आता है, लेकिन विकास पांच साल में चार-पांच महीने तक ही रहता है। देश में विकास गति इन दिनों काफी बढ़ी हुई है। ऐसा विकास केवल उन्‍हीं राज्‍यों में हो रहा है, जहां चुनाव की तिथि घोषित है।

पांच साल में केवल एक माह में इतना विकास हो जाता है, जितना आज़ादी से लेकर अब तक नहीं हुआ। समूची समस्‍याओं का निदान हो जाता है। ऐसा लगता है, रामराज्‍य आ गया। अरे-अरे साम्‍प्रदायिक शब्‍दों का इस्‍तेमाल नहीं होना चाहिए। आचार संहिता के खिलाफ है। [envoke_twitter_link]रहीम राज्‍य भी नहीं कह सकते, उससे कश्‍मीरी पंडितों के घाव रिसने लगेंगे। आप धर्म निरपेक्ष कह सकते हैं[/envoke_twitter_link]।

इन दिनों मुकाबला सुशील कुमार और नरसिंह में न होकर मुकाबला है, साम्‍प्रदायिक ऊर्फ धर्म निरपेक्षता में। जो साम्‍प्रदायिक है, वह धर्म निरपेक्ष है, जो धर्म निरपेक्ष है-वह साम्‍प्रदायिक है। चुनाव के बाद दोनों गले मिलकर आपसी हित के लिए जनता का समान रूप से रक्‍तपान करेंगे। उस समय न धर्म निरपेक्ष होते हैं और न ही साम्‍प्रदायिक। दोनों का लक्ष्‍य एक ही है। देश का विकास करना। देश का विकास यानी शहर का विकास, शहर का विकास यानी, गांव का विकास और गांव का विकास यानी अपना विकास। बात आ जाती है कि अपना विकास कैसे किया जाए।

[envoke_twitter_link]अपने विकास के लिए जरूरी है, अधिकारियों का अपने पक्ष में होना।[/envoke_twitter_link] उनसे काम करवाना और उनके बच्‍चों के साथ-साथ उनके बैंक खातों के विकास के साथ अपने बैंक खातों का विकास करना। बैंक खातों के विकास में ही ज़मीन का विकास है। ज़मीन का विकास यानी बिल्डिंगें बनाना, कालोनी बनाना, हाई वे बनाना और हाई वे पर वारदात को अनदेखा करना। यही सब विकास के पर्याय हैं।

[envoke_twitter_link]दिल्‍ली का विकास भी हुआ था, चुनाव घोषणा के समय।[/envoke_twitter_link] दसियों कॉलेज खुलने थे, खुल गए, स्‍कूल भी खुल गए। सी सी टी वी लगने थे, लग गए। दारू बंद होनी थी हो गई, दारू की दुकानें बंद करने का आश्‍वासन नहीं था। अब बाकी विकास आने वाले पांच के बाद बचा हुआ विकास होगा।

अभी तो दिल्‍ली वाले पंजाब और गोवा का विकास करने के लिए दिल्‍ली से गोवा से पंजाब आ-जा रहे हैं। सवाल दिल्‍ली के विकास का नहीं है। सवाल है देश के सबसे बड़े राज्‍य (जो अब नहीं रहा) का विकास करना। उसके विकास के लिए सभी एकजुट हो गए हैं। एकजुट यानी विभिन्‍न पार्टियों के दल। लोग दिल्‍ली, मध्‍य प्रदेश, गुजरात, पश्चिम बंगाल और न जाने किन-किन प्रांतों से आ रहे हैं।

अब बात [envoke_twitter_link]उत्‍तर प्रदेश का अकेले विकास करना तो देश की एकता और अखण्‍डता के लिए हानिकारक होगा।[/envoke_twitter_link] पिछले दिनों उत्‍तर प्रदेश में गुण्‍डागर्दी का विकास हुआ, यमुना एक्‍सप्रेस वे पर आए दिन विकास की झलकियां देखने को मिलती हैं। इस विकास के चलते सभी विकास कमज़ोर हो गए। रिश्‍तों का विकास हुआ, उससे परिवार का विकास हुआ। परिवार का ऐसा विकास हुआ कि आंगन में दरार पड़ गई। एकता और अखण्‍डता के लिए पार्टियों का मिलकर विकास हुआ। केवल किसी पार्टी विशेष नहीं, बल्कि सभी पार्टियां मिलकर अपना-अपना विकास करने में जुटी हैं। ये विकास केवल चुनाव होने तक है। उसके बाद केवल सत्‍ता में आने वाली पार्टी का विकास होगा। चुनाव प्रचार समाप्‍त होने तक उत्‍तर प्रदेश की सड़कें गाल की तरह चिकनी और नालियां गंगा की तरह-साफ सुथरी हो जाएंगी। पानी की व्‍यवस्‍था भी होगी, होली आ रही है, हुड़दंग भी होगा, लट्ठ भी चलेंगे, और विकास की राजनीति को सफल बनाने के लिए गोलियां भी चलेंगी।

मंदिर भी बनाया जाएगा, मस्जिद का भी निर्माण होगा, लेकिन होगा सब संवधिान के तहत। [envoke_twitter_link]जो भी चीज संविधान के तहत आती है, उसका कभी विकास नहीं होता।[/envoke_twitter_link] आप बिल्डिंग बना रहे हैं और संवधिान के दायरे में किसी ने उस पर रोक लगवा दी तो दादा तो क्‍या पोता भी नहीं बना पाये। मंदिर-मस्जिद का निर्माण भी उसी तरह होगा जैसा संवधिान में दिखाया गया है। हर क्षेत्र की अपनी समस्‍या है। जैसे पलायन की समस्‍या, जातिवाद की समस्‍या, अतिक्रमण की समस्‍या, जनसंख्‍या और रोज़गार की समस्‍या। उत्‍तर प्रदेश की ये चुनावी समस्‍यायें हैं जो चुनाव घोषणा के साथ शुरू होती है और वोट डालने के साथ समाप्‍त हो जाती हैं।

अब बात पंजाब की। [envoke_twitter_link]नशामुक्ति आन्‍दोलन जोरों पर हैं दिल्‍ली नशामुक्‍त हो चुकी है[/envoke_twitter_link], आप निगमबोध घाट के पास देख सकते हैं। गोवा में पीने की समस्‍या ज्‍यों कि त्‍यों बनी हुई है। उसके निदान के लिए माल्‍या श्री की वापसी के लिए पुरजोर प्रयास जारी हैं। उनके जाने से निजी कार्यालयों में बॉस के कमरे की दीवार सूनी हो गई हैं। इस साल नायिकाओं के केलेन्‍डर नहीं लगे हैं। उत्‍तराखंड को नया रोजगार मिला है। प्‍लेन (हवाईजहाज नहीं, समतल भूमि वाले) वालों ने जीना दूभर कर दिया है। वहां पर अब वोट बैंक बनाये जा रहे हैं, ताकि उसका भी केरल और कश्‍मीर की तरह धर्म निरेपक्ष विकास हो सके। अलमोड़ा से लेकर गढ़वाल तक सभी देहरादून की विशेष सर्वसुविधायुक्‍त बिल्डिंग में आश्रय के लिए छटपटाते हुए वोटरों को आश्‍वासनों का पहाड़ दिखा रहे हैं। पहाड़ देखते-देखते वे पहाड़ की तरह संवेदनहीन हो गए हैं। पहाड़ पर्यटकों का हो गया है। [envoke_twitter_link]लोग आते हैं और पहाड़ियों को गंदगी साफ करने वाला रोज़गार देकर चले जाते हैं।[/envoke_twitter_link] अब अरुणाचल के विकास की जिम्‍मेदारी एक पार्टी की है, वह किसी भी राष्‍ट्रीय पार्टी में रहे, यह उसकी मर्जी।

इस दौरान गरीबी का विकास भी होता हैं हर साल गरीब पैदा हो जाते हैं। गरीबी हटाने के अनेक उपाय किए गए। ये हर पांच साल में किए जाते रहे हैं, लेकिन अभी तक वे पांच साल नहीं आए, जब गरीबी हट गई हो। देश में मुद्दों का अकाल है, फिर भी हर साल एक मुददा खड़ा हो जाता है, लेकिन कुछ ऐसे मुददे हैं, जो न तो समाप्‍त होते हैं और ना ही खत्‍म होते हैं। गरीबी उन्‍हीं मुददों में से एक है जो न तो समाप्‍त होता है और न खत्‍म। मजे की बात तो यह है कि हर राजनीतिक दल जानता है कि वह गरीबी नहीं हटा सकता, लेकिन उसके एजेण्‍डे में गरीबी का मुददा सबसे ऊपर होता है। [envoke_twitter_link]सभी राज्‍यों के चुनावी घोषणा पत्रों में आप एक ही समान मुददा पाएंगे, वह है गरीबी।[/envoke_twitter_link]

अरे भाई इतनी समस्‍याओं का निदान कैसे हो सकता है। समस्‍याओं का निदान होगा और प्रचार के आखिरी दिन प्रचार समाप्ति के साथ-साथ सभी समस्‍याओं को अगले चुनाव प्रचार तक के लिए स्‍थगित कर दिया जाएगा। सही मायने में यही विकास का अर्थ है। जो चुनाव घोषणा के साथ आता है और मतदान के साथ समाप्‍त हो जाता है।

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