क्या आप सोच सकते हैं कि सालों से युद्ध संघर्ष झेलते गाज़ा में दर्द और बेरहम किस्सों के अलावा भी कुछ मिल सकता है? कुछ ऐसा जो आपको युद्ध की याद दिलाये लेकिन अफ़सोस के साथ नहीं बल्कि कामयाबी की किसी यादगार कहानी के साथ!
हम बात कर रहे हैं, गाज़ा की इस्लामिक यूनिवर्सिटी से इंजीनियरिंग ग्रेजुएट्स दो लड़कियों की जिन्होंने सालों से प्रचलन में रहीं पुरानी ईंटों की जगह इको-फ्रेंडली ईंटों का निर्माण कर सबको चौंका दिया है।
‘मज़द और रवान’ दोनों ने मिलकर युद्ध के बाद की तबाही को अपनी इस योजना से कम करने की कोशिश की है। युद्ध के मलबे से बनी यह ईंटे सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं। इन ईंटों को “ग्रीन ब्रिक्स” नाम दिया गया है। यह ईंटे बड़े पैमाने पर तैयार की जा रही हैं।
वर्षों से लम्बी और महंगी ईंट निर्माण की प्रक्रिया को बंद कर मलबे से तैयार यह ईंटे, 10 सालों में लगातार 3 बार युद्ध से जूझते गाज़ा के खंडहर पड़े हजारों मकानों को दोबारा खड़ा करने में मदद कर रही हैं।
रवान मैटेरियल साइंस में शुरू से रूचि रखती थी लेकिन वह यह नहीं चाहती थी कि जो पहले से ही बना हुए मटेरियल है वह उसके लिए काम करें। इसके बजाय, वह खुद की ऐसी बिल्डिंग बनाना चाहती थीं जिसमें लोकल मैटेरियल लगे और जो अधिक महंगा भी न हो। फिलहाल गाज़ा में रोजाना 40,000 ग्रीन ब्रिक्स की मांग है।
मजद बताती हैं कि “कुछ लोगों ने हमारा मज़ाक बनाया और हमारा आईडिया नहीं स्वीकार किया। यह कोई एक रात में सोच लेने वाला आईडिया नहीं था बल्कि यह हमारी छह महीने से ज़्यादा की मेहनत थी। हम चाहते थे कि कुछ ऐसा तैयार किया जाये जो रेत और पत्थरों के अलावा केवल मलबे से तैयार किया जा सके।”
उन्होंने बताया, “हज़ारों, टन राख भूमि को भरने के लिए यूंही फेंक दी जाती है। इसलिए इसे रिसायकल कर प्रयोग में लाने का सोचा। यह एक एनवायरमेंट फ्रेंडली प्रयोग है, न सिर्फ गाज़ा के लिए बल्कि पूरी दुनिया के लिए। मैं चाहती हूँ कि युद्ध के मलबे की यह राख एक उम्मीद बन जाये।”
मार्च 2015, UNRWA की रिपोर्ट के अनुसार, 9,061 फिलिस्तीन शरणार्थीयों के मकान पूरी तरह से नष्ट कर दिए गये थे। जबकि 5,066 शरणार्थीयों को गंभीर नुकसान उठाना पड़ा था, 4,085 को मुख्य रूप से और 120,333 को मामूली नुकसान हुआ था। इसके अलावा, उस समय तक, एजेंसी को केवल 9,061 मकान पूरी तरह से नष्ट मकानों में से मात्र, 200 मकानों के लिए ही पुनर्निर्माण धन प्राप्त हुआ था। मौजूदा नाकाबंदी ने समय पर पुनर्निर्माण का कार्य होना मुश्किल कर दिया था।
मौजूदा समय में यह ग्रीन ब्रिक्स युद्ध के मलबे में दबी राख को रीसायकल कर बनायीं जा रही हैं। इसका वजन साधारणतया इस्तेमाल की जाने वाली ईंट से आधा है और इसका मूल्य 30% से भी कम है। यह अग्निरोधी भी है। इस ईंट की यही विशेषताएं इस अनोखे आईडिया को गाज़ा की मौजूदा स्थिति के लिए उत्तम बनाता है।
रवान और मजद का अनुमान है कि अभी उन्हें लगभग 18,000 घरों का इन ईंटों से निर्माण करना है जो इनके आईडिया को सफलता तक पहुंचाने में सहायक होगा।
गाज़ा में महिलाओं का जीवन काफी हद तक अस्तित्वहीन ही रहा है। महिलाओं को यहाँ काम करने और शिक्षा प्राप्त करने की अनुमति नहीं दी जाती। इज़रायल-फिलीस्तीनियों के युद्ध संघर्ष में महिलाओं की संघर्षरत कहानियां लगभग लुप्त होने के कगार पर हैं ऐसे में मजद और रवान की यह कोशिश शायद इन्हें यादगार बना सके।
(फोटो में मज़द हैं, रवान की फोटो उपलब्ध होने पर लेख को अपडेट कर दिया जाएगा)