रेप से निवेश
सुनील जैन ”राही”
एम-9810960285
सुबह-सुबह अखबार में रेप की खबर पढ़ कर लगता है, देश में काफी निवेश हो रहा है। निवेश यानी विदेशी महिला के साथ रेप तो विदेशी निवेश और देसी महिला के साथ तो देशी निवेश। शायद ही कोई दिन जाता हो जब अखबार में यह खबर हो कि महिला का बलात्कार न हुआ हो। इसमें निवेश के इच्छुक पर्यटकों को हवाई अडडे, बस अडडे और रेलवे स्टेशन से पीछे लग जाते हैं। गलत हो या सही, अंग्रेजी हो या विदेशी भाषा। अपने शब्द जाल में फंसाकर होटल या किसी अन्य निर्जन स्थान पर ले जाकर अपना उल्लू सीधा कर लेते हैं, ये सब सुरक्षाकर्मियों की निगाह से परे नहीं है। उनके पास इस तरह के निवेशकों की पूरी जानकारी होती है, जो जेब काटने से लेकर तक बलात्कार जैसे अमानवीय कृत्यों में लिप्त होते हैं। असली निवेश तो भारत की छवि का होता है। इतनी साफ सुथरी छवि बनाने का प्रयास किया जा रहा है, जिससे पर्यटक और दूसरे देश से इलाज कराने वाले भूल से भी इस ओर रुख न करें।
खबर तो तब और महत्वपूर्ण हो जाती है, जब किसी विदेशी महिला या दलित महिला के साथ बलात्कार होता है। समाज को आदत पड़ गई है, इन खबरों की। अब किसी महिला के साथ अभद्रता पर तो एकाद नेता का बयान भी नहीं आता। कुछ तो यह कहकर चुप हो जाते हैं, कानून अपना काम करेगा। कानून तो अपना काम करेगा, लेकिन उसको करने दिया जाएगा तभी तो वह अपना काम करेगा। कानून के हाथ भले ही लम्बे हो वह तो मुजरिम को पकड़ नहीं सकता, पकड़ना तो पुलिस को है। पुलिस ने पकड़ भी लिया और मुजरिम किसी विशेष जाति/प्रजाति का है तो एक बयान और आ जाता है कि लड़के हैं गलतियां हो जाती हैं।
देश में जैसे-जैसे पर्यटन बढ़ा है उसी अनुपात में यहां हो रही इस तरह की घटनाओं ने भारत की छवि को धूमिल किया है। इसके पीछे मूल कारण क्या है। जब भी ऐसी घटनाएं होती हैं, प्रशासन और सत्ता-शासक उस ओर से अपना मुंह मोड़ लेते हैं। दूसरी बात यह कि कानूनी दांवपेच और शर्मिंदगी इतनी होती है कि पीडि़ता स्वयं अपना पक्ष नहीं रखना चाहती। यहां तक वह मेडिकल जांच के लिए भी तैयार नहीं होती और खामियाजा यह होता है कि केस कमजोर हो जाता है और मुजरिम पकड़ने के बाद भी छूट जाते हैं।
समस्या मुजरिम को पकड़ने की नहीं है, खास समस्या तो यह है जो पकड़े गए उनके साथ क्या किया गया। केवल 15 या 20 दिन की पुलिस रिमांड या न्यायिक हिरासत में भेज देने से काम होने से रहा। क्या कोई ऐसा निदान हो सकता कि तुरंत न्याय मिल सके और ऐसा न्याय मिले जिससे इस अपराध से जुड़े या शामिल होने वालों के लिए सबक बन जाए। ऐसा न्याय मिले कि अपराधी की रूह कांप जाए और भविष्य में भी इस तरह की भावना जिसके मन आए वह थर्रा जाए।
लेकिन दुर्भाग्य है कि निर्भया कांड के मुजरिम अभी तक जेल में सजा का इंतजार कर रहे हैं और पता नहीं कब तक करते रहेंगे। इससे जनमानस में क्या संदेश जाएगा। चलो अच्छा है यहां न सही जेल में ही रोटियां तोड़ेंगे।
ये रेप का जो निवेश हो रहा है, इसे तुरंत रोकने की जिम्मेदारी किसकी है। इसमें अखबार नवीस भी कम दोषी नहीं है, खबर को इस तरह से पेश करते हैं, जैसे उन्हें स्वयं आनंद आ रहा है।
आनंद से दूर और पीडि़ता की भावनाओं के दर्द को समझे तभी यह निवेश बंद हो पाएगा।
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