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कोचिंग संस्थानों की ये भीड़ स्टूडेंट्स को कर रही है बीमार

एसोचैम की रिपोर्ट के अनुसार, देश भर में फैले इन कोचिंग संस्थानों का सालाना कारोबार 2.40 लाख करोड़ रुपये का हो चुका है। इस आंकड़े का एक औसत यह भी निकलता है कि हर एक छात्र से हर एक घण्टे 1000 से 4000 रुपये तक वसूला जा रहा है। NSSO यानी कि नैशनल सैंपल सर्वे ऑर्गेनाइज़ेशन ने भी एक आंकड़ा निकाला है जिसके अनुसार भारत में हर चार छात्र में से एक छात्र निजी कोचिंग संस्थान से कोचिंग ले रहा है। यह भारी-भरकम आंकड़े यह दर्शाने के लिए पर्याप्त हैं कि हमारे यहां कोचिंग संस्थानों का कितना बड़ा कारोबार चल रहा है।

सवाल यह है कि निजी कोचिंग संस्थानों के फलने-फूलने से आखिर समस्या क्या है? समस्या कोई एक नहीं, बल्कि कई सारी हैं। सबसे बड़ी समस्या यही है कि इन निजी कोचिंग संस्थानों के द्वारा जिस तरीके से छात्र-छात्राओं को शिक्षा दी जा रही है, वह तरीका ही गलत है। इनके पढ़ाने के तरीके में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का कोई स्थान ही नहीं है। इनके द्वारा पढ़ाया जा रहा पाठ्यक्रम महज़ कुछ पूर्व निर्धारित अध्यायों तक ही सिमट कर रह गया है। इस प्रकार से इन कोचिंग संस्थानों का सारा ध्यान महज़ छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं में सफल करवा देने पर ही रहता है। जबकि शिक्षा का उद्देश्य मात्र प्रतियोगी परीक्षाओं को पास करने-कराने का न होकर, समाज को एक जिम्मेदार, जागरुक नागरिक नागरिक देने का है।

इस बात से कोई इंकार नहीं कर रहा है कि इन निजी कोचिंग संस्थानों से कई सफल युवा निकले हैं। इन युवाओं ने आगे चलकर समाज की उन्नति में अपना अहम योगदान भी दे रहे हैं। मगर एक बड़ी सचाई यह भी है कि इन कोचिंग संस्थानों की पढ़ाई व अभिभावकों की उम्मीदों के बोझ तले दबे कई होनहार युवकों को समाज खो भी रहा है।

इसकी वजह यह है कि ये छात्र कड़ी मेहनत के बावजूद प्रतियोगी परीक्षाओं में कई बार असफल हो जाते हैं। इनकी असफलता ने इनके भविष्य को अंधकारमय कर देती है। इन्हें लगने लगता है, जैसे ये अब खुद के लिए, अपने परिवार के लिए व इस समाज के लिए एक बोझ बन चुके हैं। जबकि ऐसा होता नहीं है। आखिर इन्हें कौन समझाए कि जिंदगी रही तो अभी बहुत सारे मौके मिलेगें। हार मानने की ज़रूरत नहीं है।

देश का कोचिंग हब बन चुके राजस्थान के कोटा में आए दिन छात्रों की आत्महत्या करने की खबरें आती रहती हैं। मानसिक रोग विशेषज्ञ भी यही बात कहते हैं कि ये छात्र लम्बें समय से मानसिक दवाब से गुज़र रहे होते हैं। इन निजी कोचिंग संस्थानों का वातावरण काफी तनाव भरा होता है। ये छात्र प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता को ही जीवन का अतिंम लक्ष्य मान लेते हैं। ये छात्र देश-दुनिया की अन्य गतिवितिधियों से पूरी तरह कट चुके होते हैं। निश्चित रूप से कोचिंग संस्थानों में लम्बे समय से आमूल-चूल परिवर्तन करने की ज़रूरत है।

सुप्रीम कोर्ट ने देश में कुकुरमुत्ते की तरह फैलते जा रहे निजी कोचिंग पर कुछ महीने पहले चिंता जताई। स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया (SFI) के द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायालय ने कहा था कि निजी कोचिंग संस्थानों के नियमितीकरण किये जाने की आवश्यकता है। साथ ही साथ न्यायालय ने यह स्पष्ट कर दिया कि उसका इरादा कोचिंग संस्थानों पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाने का नहीं है। गौरतलब है कि एसएफआई के द्वारा दायर यह याचिका साल 2013 से ही लंबित पड़ी थी, जिस पर फरवरी में सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की।

हमें इस बात को समझना होगा कि महज़ सुप्रीम कोर्ट या सरकार के सक्रिय होने से ही यह समस्या समाप्त होने वाली नहीं है। इसे समाप्त तभी किया जा सकता है, जब हम सब इसकी गंभीरता को समझेगें।

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