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पता नहीं क्या मज़ा आता है पुरुषों को साथ खड़ी महिला को छू लेने भर से!

रोज़ की तरह बस स्टॉप पर चार्टेड बस आई, आमतौर पर उस बस में आगे की सीटों पर महिलाऐं और पुरुष पीछे की तरफ बैठते हैं। उसमें पीछे बैठे कुछ लोगों का समूह ताश खेल कर अपना सफर तय करता था। उस दिन बस आम दिनों से कुछ ज़्यादा भरी हुई थी। मैंने पीछे देखा एक सीट पर दो पुरुष बैठे थे और उनके साथ वाली एक सीट खाली थी, मैं वहां जाकर बैठ गयी। जब बैठी तो भी सिमट कर बैठी क्योंकि वे दोनों सो कॉल्ड पढ़े-लिखे सभ्य पुरुष अपनी मर्दानगी दिखाते हुए चौड़े होकर बैठे थे। पूरे रास्ते मोबाइल पर वे कोई वीडियो देख रहे थे और अपनी भाषा में कुछ बात कर रहे थे।

मेरे बराबर में बैठे हुए पुरुष ने अपना हाथ अपने सामने वाली सीट पर कुछ इस तरह रखा हुआ था कि उसका हाथ मेरे कंधे को पूरी तरह छू रहा था। उसके इस तरह से हाथ रखने की मंशा कुछ ऐसी लगती थी, मानो बताना चाह रहा हो कि ये हमारा इलाका है और इसमें घुसने की कोशिश मत करना। मंगलवार होने की वजह से उस दिन रास्ते में कुछ ज़्यादा ही जाम था और थकान के मारे मुझे नींद आ रही थी। एक चौथाई सीट पर अपने आधे से ज़्यादा शरीर को हवा में लटकाए मैं सोने की कोशिश करती रही लेकिन उस बराबर वाले पुरुष का अपनी सशक्त बांहों से बार-बार छूना और मेरी नींद जैसे आपस में कोई लड़ाई लड़ रहे थे। मैं अपने शारीरिक भावों से बार-बार उन्हें जताने की कोशिश कर रही थी कि मुझे बैठने में दिक्कत हो रही है। लेकिन मेरे भावों को नज़रंदाज़ करते हुए वो अपने में मस्त थे और अपनी हरकतों को अपनी जीत समझ रहे थे।

वैसे तो पब्लिक प्लेस में मैं कुछ बोलती नहीं हूं, सोचती हूं कि कौन सीन क्रिएट करे। वैसे भी कुछ कहो तो पुरुषवादी लोग कहते हैं जब मर्दों से इतनी परेशानी है तो घर से बाहर ही क्यों निकलती हैं ये आज की आधुनिक ,पढ़ी-लिखी और आत्मनिर्भर महिलाएं। यह सोचकर मैं भी काफी देर तक उनकी हरकतें बर्दाश्त करती रही, लेकिन फिर जब मेरी बर्दाश्त ख़त्म हो गयी तो मैंने उनसे कहा, “आप थोड़ा ठीक से बैठ जाइए मुझे दिक्कत हो रही है।” जवाब में उन दोनों में से एक पुरुष ने कहा, “क्या करें मैडम सीट ही छोटी है” और इतना कहकर वो हंसने लगे। उनके इस लॉजिक पर गुस्सा भी आया और हंसी भी।

[envoke_twitter_link]दरअसल बस की सीट छोटी नहीं थी, उन मर्दों का दिमाग ज़्यादा संकुचित था।[/envoke_twitter_link] पता नहीं क्या मज़ा आता है पुरुषों को साथ खड़ी या बैठी महिला को छू लेने भर से। पता नहीं उन्हें कौन सा प्लेज़र मिलता है, जिसकी आस में वो हर राह चलती महिला से टकराते हैं। लेकिन उनके थोड़े टाइम के प्लेज़र से यानी गलत तरीके से छुए जाने पर महिलाएं किस मानसिक पीड़ा से गुजरती हैं, यह पुरुष नहीं समझेंगे। काश ऐसा कोई एप या तकनीक होती जो इन मर्दों को महिलाओं या लड़कियों के साथ तरीके से बैठने की ट्रेनिंग देती। बात छोटी सी है जिसे हर महिला को हर रोज़ सहना पड़ता है, लेकिन अगर मर्द ये छोटी सी तहजीब सीख जाएं तो महिलाओं को उस अनचाही छुअन की मानसिक पीड़ा से नहीं गुजरना पड़ेगा। वह निश्चिन्त होकर अपना रोज़ का सफ़र बिना सफर (suffer) किये कर सकेंगी। उसे सफ़र के दौरान बैठते समय यह सोचना नहीं पड़ेगा कि उसके बराबर में कौन बैठा है। वह केवल उस सीट को नहीं चुनेंगी जहां कोई महिला साथ बैठी हो।

निर्दोष स्पर्श और एक अनचाहे गलत स्पर्श के अंतर को हर वह महिला समझती है जिसने घर परिवार में पिता और भाई के अच्छे प्यार और ममता भरे स्पर्श को अनुभव किया है। माता-पिता, बहन-भाई के साथ प्यार से गले मिलना, दोस्तों के साथ हाथ मिलाना या ऐसा कोई भी स्पर्श जो प्रेम से भरा हो वह गलत नहीं। लेकिन किसी अन्य व्यक्ति का आपके शरीर पर वह स्पर्श जो आपको असहज करे और आपको घृ्णित एहसास कराये, गलत स्पर्श है और गलत को बर्दाश्त न करें। राह चलते, सफ़र में, घर व ऑफिस में ऐसे किसी भी अनचाहे स्पर्श का विरोध ज़रूर करें। घर पर अपने भाई, पिता या पुरुष दोस्त से इस बारे में बात करें ताकि वे ध्यान रखें कि घर से बाहर उनका अनचाहा स्पर्श किसी अन्य लड़की को मानसिक पीड़ा न दे।

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