बहुत फिल्में होती हैं जो आपके आसपास की घटनाओं के लेकर बनाई जाती हैं। यानी जो भी समाज में उस दौर की समस्याएं होती हैं फिल्में उन्हें मनोरंजन के माध्यम से हमारे सामने लाती है।
कुछ फिल्में विवादों में आती हैं और रिलीज़ हो जाती हैं। कुछ फिल्में सेंसर बोर्ड की कैंची की धार में ऐसी फंसती है कि निकलते-निकलते फिल्म की धार ही खराब हो चुकी होती है। प्रकाश झा और उनकी विवादित फिल्मों का मेल जोल बहुत ही पुराना है।
हाल ही में प्रकाश झा प्रोडक्शन की फिल्म ‘लिपस्टिक अंडर माय बुर्का’ रिलीज़ होने से पहले ही विवादों में आ गई है।
‘लिपस्टिक अंडर माय बुर्का’ को अलंकृता श्रीवास्तव ने डायरेक्ट किया है और प्रकाश झा इसके प्रोड्यूसर हैं। इस फिल्म का टीजर अक्टूबर में रिलीज किया गया था। यह फिल्म मुंबई फिल्म फेस्टिवल में ‘बेस्ट जेंडर इक्वालिटी’ फिल्म का ऑक्सफेम अवार्ड जीत चुकी है। टोक्यो इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में इसे ‘स्पिरिट ऑफ़ एशिया प्राइज’ से नवाजा गया था। इसके अलावा कई फिल्म फेस्टिवल में इस फिल्म ने तारीफ़ बटोरी हैं।
लेकिन सेंसर बोर्ड ने इस फिल्म पर पूर्ण रूप से रोक लगा दी है। सेंसर बोर्ड का कहना है कि [envoke_twitter_link]’यह कुछ ज्यादा ही महिला केंद्रित फिल्म है।[/envoke_twitter_link] यह समाज के एक विशेष तबके के प्रति अधिक संवेदनशील है।’ फिल्म के यौन दृश्यों और भाषा पर भी सेंसर बोर्ड ने आपत्ति जताई है। जिस फिल्म को इतनी सराहना मिली उसको सेंसर बोर्ड ने “असंस्कारी” बताकर रिलीज होने से रोक दिया है।
प्रकाश झा की इससे पहले भी बहुत सी फिल्मों ने रिलीज होने से पहले ही सेंसर बोर्ड के कड़े फैसलों का सामना किया है। 2016 में रिलीज हुई फिल्म ‘जय गंगाजल’ को सेंसर बोर्ड ने यह कह कर यू/ए सर्टिफिकेट नहीं दिया था कि इसमें “साला” शब्द का प्रयोग किया गया है और इसके कुछ दृश्य आपत्तिजनक हैं। सेंसर बोर्ड ने इसे ए सर्टिफिकेट दिया था।
2010 में रिलीज हुई फिल्म ‘राजनीति’ को भी सेंसर बोर्ड ने एडिट करने के निर्देश दिए थे। जैसे कि ईवीएम् मशीन के गलत इस्तेमाल व राजनीती में सक्रीय महिलाओं का अभद्र चित्रण।
2011 में आई फिल्म ‘आरक्षण’ को यूपी, पंजाब और आंध्र प्रदेश में छोड़ कर पूरे भारत में रिलीज किया गया था। कुछ समय बाद विवाद खत्म होने के बाद इसको इन राज्यों में रिलीज करने के निर्देश दिए गए।
इस फैसले के बाद फिल्म जगत प्रकाश झा के समर्थन में उतर आया है। सभी सेंसर बोर्ड की निंदा कर रहे हैं। प्रकाश झा अपनी फिल्मों के द्वारा समाज में व्यापत समस्याओं एवं भ्रष्टाचार पर सीधा प्रहार करते हैं। जिसको कभी कभी राजनीति के कारण रोक दिया जाता है।
क्या सेंसर बोर्ड की पांच से छः सदस्यों की पीठ का निर्णय व नजरिया पूरी सवा सौ करोड़ जनता का नजरिया हो सकता है? सेंसर बोर्ड ये बोल कर फिल्मों को रोक देता है कि इससे हिंसा भड़क सकती है व दंगे हो सकते है। लेकिन फिल्म रिलीज हो जाने के बाद नाही कोई दंगा होता है और नाही दर्शकों में किसी प्रकार की कोई नाराज़गी होती है। बल्कि दर्शकों द्वारा फिल्म को सरहाना मिलती है।
(सोशल मीडिया फोटो और कवर फोटो आभार- Prakash Jha Productions Pvt. Ltd.)
नोट- ये रिपोर्ट Youth Ki Awaaz के इंटर्न रोहित सिंह(बैच- फरवरी-मार्च, 2017) ने तैयार की है।