चुनाव आते हैं चले जाते हैं, सरकारें आती हैं चली जाती हैं लेकिन जनता ये आस लगाए रखती है कि सरकारी अस्पतालों के हालात सुधर जाएंगे। लेकिन लग रहा है कि इस बार भी उत्तर प्रदेश कि [envoke_twitter_link]जनता को उसी पुरानी डगमगाती एवं लाचार स्वास्थ व्यवस्था से ही संतुष्टि करनी पड़ेगी। [/envoke_twitter_link]सपा-कांग्रेस, बीजेपी का घोषणापत्र आ चुका है, बसपा का तो घोषणापत्र ही नहीं आया है लेकिन किसी का भी ध्यान उत्तर प्रदेश की लचर स्वास्थ व्यवस्था पर नहीं गया।
सरकारी अस्पतालों में कूड़ाघर से भी ज़्यादा गंदगी, डॉक्टरों का मरीजों के साथ लापरवाही करना, मेडिसिन की कमी आदि ऐसी कितनी समस्याएं हैं जिनसे उत्तर प्रदेश की जनता न जाने पिछले कितने सालों से जूझ रही है और शायद आने वाले पांच सालों फिर से इन्हीं समस्याओं का सामना करना पड़ेगा।
उत्तर प्रदेश की औधोगिक नगरी कानपुर के सरकारी अस्पताल हैलेट, जो लाला लाजपत राय अस्पताल के नाम से भी जाना जाता है, में स्वास्थ्य सुविधाएं एकदम खस्ता हाल में हैं। स्ट्रेचर की कमी के कारण हैलेट में मरीजों को बैठ कर स्ट्रेचर का इन्तजार करना पड़ता है नहीं तो उसके परिजन गोदी में उठा कर डॉक्टर के पास ले कर जाते हैं। [envoke_twitter_link]एमरजेंसी वार्ड के बाहर मरीज स्ट्रेचर लेटा-लेटा डॉक्टर का इन्तज़ार करता रह जाता है।[/envoke_twitter_link]
कोई नर्स की व्यवस्था नहीं दिखती है। गंदगी का तो अस्पताल में ये आलम है कि मरीज के साथ आये हुए लोगों के भी बीमार होने की आशंका बनी रहती है। लोगों का कहना है कि ऑपरेशन के नाम पर डॉक्टरों द्वारा क्लीनिक आने की सलाह दी जाती है। ये बड़ी विकट स्थिति है कि आखिर [envoke_twitter_link]गरीब इतना पैसा कहां से लाएगा कि वो क्लीनिक में जा सके।[/envoke_twitter_link]
हैलेट में कैन्टीन की कोई भी सुविधा नहीं है, इस वजह से लोग बाहर गन्दी जगह का खाना खाने को मजबूर हैं। अगर केन्टीन की कोई सुविधा होती तो वो भी शायद अस्पताल की तरह ही गन्दी होती। कुछ ही महीने पहले की बात है, हैलेट में रात भर लाइट नहीं आई थी तब परिवारजन मोमबत्ती के उजाले में ही मरीजों का ख्याल रख रहे थे।
उत्तर प्रदेश सरकार के लिए ये बहुत ही शर्मनाक बात है कि जिस जनता ने अपनी सुरक्षा व सहूलियत के लिए आपको सत्ता दी है उसी जनता को इतनी दर्दनाक परस्थितियों का सामना करना पड़ रहा है। कुछ ऐसा ही वाकया हुआ था जौनपुर शहर के मुंगराबादशाहपुर स्वास्थ केंद्र में। बेड की कमी के कारण मरीज़ों को ग्लूकोज़, अस्पताल में बाहर बने चबूतरे पर चढ़ाया जा रहा था। [envoke_twitter_link]ये तो उत्तर प्रदेश के बड़े जिलों के हाल है।[/envoke_twitter_link] कितने ऐसे छोटे-छोटे गांव हैं, जहां आज भी स्वास्थ व्यवस्था बहुत ही चिंताजनक है।
बैनर और थंबनेल इमेज : फेसबुक
रोहित Youth Ki Awaaz हिंदी के फरवरी-मार्च 2017 बैच के इंटर्न हैं।