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सरकार स्कूल की जमीन किसी और को दे देगी तो हमें क्या नुकसान होगा ?

जीवन में क्या कमाया ? ऐसा सवाल कई बार परेशान करता है। इस सवाल का जवाब जीवन से ही मिलता है। जीवन जो बनता  है हमारी प्रतिबद्धताओं से। केवल साँस लेने से नहीं।

कल यानि 18 फरवरी, 2018 के दिन जीवन ने मुझे भी इस सवाल का एक जवाब दिया। जवाब भी ऐसा शानदार कि मारे ख़ुशी के रात की नींद उड़ गयी।

कल मेरे विभाग ने तुलनात्मक शिक्षा पर एक अन्तर्राष्ट्रीय सम्मलेन का आयोजन किया। इस सम्मलेन में मुझे एक सत्र में मोडरेटर की भूमिका निभानी थी और इस सम्मलेन मैं एक पर्चा भी पढ़ना था। सुबह जब मैं सम्मलेन में जाने की तैयारी कर रहा था तो मेरी भतीजी शीनू ने मुझसे पूछा कि “तू कहाँ जा रहा है ?” मैंने उसे सम्मलेन के आयोजन के बारे मैं बताया। उसने जिज्ञासा व्यक्त की कि वह मुझे बोलते हुए देखना चाहती है। मैंने उसे कहा कि सम्मलेन में मेरा काम 12:15 पर शुरू होगा और वह अपनी माँ और माँ के साथ सम्मलेन में पहुँच जाये और अपनी इच्छा पूरी कर ले।

वह सही समय पर अपनी माँ और माँ के साथ सम्मलेन में पहुँची और मुझसे दूर एक सीट पर बैठ गयी। सम्मेलन में ज्यादातर वक्ता अंग्रेजी में बोल रहे थें/थीं | इसी बीच वह मेरे पास आयी और लिखने के लिए एक पन्ने की मांग की। मैंने उसे एक पन्ना दिया। जब एक सत्र समाप्त हुआ तो वह मेरे पास आयी और बोली कि वह उस लोगों से सवाल पूछना चाहती है जिन्होंने अभी-अभी पर्चे पढ़े थे। मैंने उससे पूछा कि वह किनसे सवाल पूछना चाहती है। उसने कद और कपड़ों का विवरण देकर दो लोगों की पहचान बताई। वे डॉ. अजय चौबे और सुश्री ऋचा शर्मा थीं | मैं उसे उन दोनों के पास ले गया और उन्हें उसकी इच्छा से अवगत करवाया। दोनों ही बुद्धिजीवियों ने शीनू के सवालों का स्वागत किया और उसे संतुष्ट करने की कोशिश की। दोनों बुद्धिजीवियों से बात करने के बाद वह मेरे पास आयी तो उसका चेहरा ख़ुशी से चमक रहा था। मैंने पूछा “हाँ जी, क्या बात हुई ?” उत्तर मैं उसने दोनों ही बुद्धिजीवियों से हुई चर्चा का ब्यौरा सुना दिया।

इसके बाद उसने एक घंटे के एक और सत्र मैं चार-पांच बुद्धिजीवियों को और सुना। उसका वह पन्ना भर चुका था जिसे वह मुझे लेकर गयी थी। वह मेरे पास पन्ना लेने आयी तो अब की बार मैंने उसे अपने थैले से निकालकर एक नोट दे दिया। बीच-बीच में मैं देख रहा था कि वह बुद्धिजीवियों को ध्यान से सुन रही है और लगातार कुछ लिख रही है।

शाम 5 बजे के बाद वह सत्र शुरू हुआ जिसमें मुझे भी पर्चा पढ़ना था। इस सत्र की चेयरपर्सन डॉ. सैलजा चेनेट थीं। मुझ सहित चार बुद्धिजीवियों ने अपने-अपने पर्चे पढ़े। सवाल जवाब शुरू हुए। प्रतिभागियों ने सवाल पूछे। इसी बीच शीनू ने अपना हाथ उठाया। चेयरपर्सन ने नोटिस किया और हैरान होकर कहा कि ये बच्ची सवाल पूछना चाहती है। पूरा हाल तालियों से गूँज उठा। चेयरपर्सन ने शीनू से मुखातिब होकर पुछा “तुम्हें किससे सवाल पूछना है?” उसने कहा “मुझे, बीरेंद्र सिंह रावत से पूछना है।” उसका सवाल था कि “ अगर सरकार स्कूल की जमीन किसी और को दे देती है तो इससे हमें क्या नुकसान होगा ?” मैंने उसके सवाल का उत्तर दिया |

कल का दिन मेरे लिए ख़ास हो गया। एक तो यह कि शीनू, जो मात्र ग्यारह साल की है, 6 घण्टों तक बुद्धिजीवियों को सुनती रही। उनके पर्चों में इन्वोल्व रही। उसने मुश्किल विषयों को सुना, समझने की कोशिश में लगी रही, और अनजान, उम्र-दराज, और जानकर बुद्धिजीवियों से सवाल पूछे। मेरे लिए बेहद ख़ुशी का क्षण वह था जब उसने भरी सभा में मेरा नाम लेकर मुझसे सवाल पूछा।

यह मेरे जीवन की एक ऐसी कमाई है जिस पर मुझे नाज़ है।

(नोट- शीनू की तस्वीर अभी उपलब्ध नहीं है, मिलने पर ये लेख अपडेट किया जाएगा)

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