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जम्मू का किसान पी.एम. मोदी से मांग रहा है अपना हक़

प्रदूषण की समस्या से इस समय पूरा देश परेशान है, जो आने वाले समय में आत्मघाती साबित हो सकता है। पर्यावण को बचाने के लिए जम्मू कश्मीर में बुजुर्ग केसरी शशि कुमार ने वृक्ष लगाने की मुहिम की शुरुआत की। किन्तु प्रशासन व पुलिस द्वारा उन पर अत्याचार किया गया। विरोध करने पर उनको देशद्रोही करार दे दिया गया और पुत्र द्वारा विरोध करने पर उसकी हत्या कर दी गई।

केसरी शशि कुमार जम्मू-कश्मीर राज्य के डोडा जिले के रहने वाले हैं और पेशे से किसान हैं। शशि जी ने बताया कि उनके द्वारा लगाए गए लगभग 15000 पेड़ पौधे ऑक्सीजन दे रहे हैं व प्रदूषण से लड़ने का काम कर रहे हैं। इससे भविष्य में सभी को फायदा मिलेगा। शशि जी ने 1985 में इंडो-इटालियन प्रोजेक्ट के दम पर पथरीली ज़मीन पर जैतून व अखरोट के पेड़ व पौधे लगाए थे। पौधे तैयार करके स्कूल व कॉलेजों में देते थे और स्कूलों में कृषि व पर्यवरण पर कभी-कभी लेक्चर भी लिया करते थे।

शशि से 1994 से 1996 के बीच इंडियन आर्मी ने 175 पौधे लिए थे जिसके पैसा न देकर एक थैंक्यू लेटर दे दिया गया। ठीक इसी तरह डोडा के ही गुरुनानक अकादमी ने उनसे 10000 पौधे लिए जिसके पैसे न देकर उन्होंने भी थैंक्यू लेटर भेज दिया। वृक्ष लगाने के सम्बन्ध में गवर्नर ने उनको 2009 में आउटस्टैंडिंग एनवायरमेंटलिस्ट का सम्मान दिया था। डोडा के पूर्व डीसी बशारत अहमद ने उन्हें राज्य से गोल्ड मैडल देने की सिफारिश की थी।

शशि जी बताते हैं कि उनकी 1970 में फ़ूड इंस्पेक्टर की नौकरी लगी थी। लेकिन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की रैली में उन्हें संधिग्द मानकर गिरफ्तार कर लिया गया। महीनो बाद जब वो जेल से छूटकर आये तो उनकी नौकरी उनसे छीन ली गई थी। इसके बाद उनके परिवार ने उन्हें घर से अलग कर दिया था।

सबसे पहले 1980 में शशि जी को 200 किसानों के हक़ के लिए सरकार से पानी मांगने पर और पुलिस का विरोध करने पर, प्रशासन के कहने पर गिरफ्तार कर लिए गया और उन्हें बहुत मारा गया। जिसमे उनका हाथ टूट गया था। निचली अदालत में उनके खिलाफ कोई सबूत न होने पर उन्हें बरी कर दिया गया और फ़ालतू में शशि जी को मारने पर पुलिस व प्रशासन को फटकार लगाई व 15 दिनों तक जवाब देने को कहा। पुलिस को ये सब बर्दाश्त नहीं हुआ तो उनको झूठे चोरी व देशद्रोह के केस में फिर से गिरफ्तार कर लिया और पुत्र राजन केसरी द्वारा विरोध करने पर उसे आतंकवादी बताकर फ़र्ज़ी मुठभेड़ में मार दिया गया।

यहीं से इस प्रकृति प्रेमी का बुरा दौर चालू हुआ जो आज तक चल रहा है। शशि जी से जब उनके परिवार के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बताया कि मेरे परिवार में मेरी पत्नी और मेरा एक बेटा है। उनसे मैंने बोल दिया है कि “मुझे भूल जाओ। जब तक मैं अपना व अपने बेटे का इन्साफ नहीं ले लेता तब तक वापस नहीं आऊंगा।”

चोरी व देशद्रोह के झूठे मुकदमे के खिलाफ शशि जी ने हाई कोर्ट में केस किया। हाई कोर्ट ने पुलिस को 3 बार जांच के आदेश दिए। लेकिन पुलिस ने कोर्ट को कोई जवाब नहीं दिया। इसके सम्बन्ध में शशि जी ने सुप्रीम कोर्ट में भी याचिका डाली। लेकिन कहीं से भी सीबीआई जांच के आदेश नहीं मिले। इस पर शशि जी कहते हैं कि, “20 साल मेरा समय अदालत और पुलिस स्टेशन के चक्कर लागाने में गुजर गया जिसके कारण मेरी खेती ख़राब हो गई है।” शशि जी ने कहा कि, “जब जब मुझे हथकड़ी लगी तो उससे कानून को जूते पड़े हैं।” गोरखा जिले के 25 किसानों को शशि जी ने आत्महत्या करने से बचाया और खेती में मदद की।

शशि जी ने प्रधानमंत्री को खत लिखा कि उनके केस की सीबीआई जांच कराई जाए। लेकिन वहां से किसी भी प्रकार के जांच से  मना कर दिया गया। शशि जी से जब पूछा गया कि सरकार अगर अब कोई कॉम्प्रोमाइज़ करना चाहे तो क्या वो कॉम्प्रोमाइज़ करेंगे? उन्होंने जवाब दिया कि “मैंने अपना बेटा खोया है और अब मैं कोई कॉम्प्रोमाइज़ नहीं करूँगा।” हालांकि शशि जी द्वारा लगाए गये सभी पेड़ सरकारी ज़मीन पर हैं लेकिन यूथ की आवाज़ को उन्होंने बताया कि एक आरटीआइ के जवाब में उन्हें बताया गया कि उनके लगाए सभी पेड़ों में से 85% पेड़ बिलकुल सही स्थिति में हैं।

शशि जी की मांग है कि या तो सरकार उनके अदालत व पुलिस थानों  के चक्कर लगाने में जो 25 से 30 साल का समय गया है व उनके द्वारा लगाए गए 15000 पेड़ों का उन्हें मुआवज़ा दे और उनके बेटे की हत्या की सीबीआई जांच कराई जाए या फिर देशद्रोही के तौर पर उन्हें गोली मार दी जाए। शशि जी ने आजीवन जंतर-मंतर पर धरना देने का निश्चय किया है। इससे पहले इन्होंने सात महीने जम्मू-कश्मीर के डोडा जिले में भी धरना दिया था।

किसानों की हालत इस समय बहुत ही खराब चल रही है। बहुत कम ही किसान अपने हक़ के लिए शशि जी की तरह हिम्मत से काम लेते हैं और प्रसाशन व सरकार से लड़ते हैं। देश में विकास की बात होती है, मेट्रो चलती है, अंतरिक्ष में सफलता प्राप्त होती है लेकिन किसान की परिस्थिति को देखते हुए कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा है। हमारा देश कृषि प्रधान देश है लेकिन किसानों की ये स्थिति समाज व सरकार को अवश्य कठघरे में खड़ा करती है।

रोहित Youth Ki Awaaz हिंदी के फरवरी-मार्च 2017 बैच के इंटर्न हैं।

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