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कैमिकल से बर्बाद हो रहा तमिलनाडु का ये खूबसूरत हिल स्टेशन

कोडइकनाल, तमिलनाडु में स्थित, पहाड़ियों से घिरा हुआ एक खूबसूरत हिल-स्टेशन। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में कोडइकनाल एक और मामले की वजह से सुर्खियों में रहा। मामला यहाँ स्थित हिंदुस्तान यूनिलीवर लिमिटेड के प्लांट द्वारा किये गये प्रदूषण से जुड़ा है।

1983 में अमेरिका मे मर्करी उत्सर्जन से पर्यावरण पर होने वाले गंभीर असर को देखते हुए वहां की सरकार द्वारा पर्यावरण से जुड़े नियमों को कड़ा कर दिया गया। परिणाम ये हुआ कि वहां काम कर रही कई कंपनियां दूसरे देशों का रुख करने लगी। इसी कड़ी में Chesebrough Pond’s Inc ने थर्मामीटर व्यापार के लिये अपनी एक फैक्ट्री कोडइकनाल में लगाई। इस फैक्ट्री को वर्ष 1986 में इसी की सहायक कंपनी हिंदुस्तान यूनिलीवर लिमिटेड ने अपने अधीन ले लिया। 2001 में पता चला कि कंपनी ने सरकार द्वारा निर्धारित आवश्यक सुरक्षा के नियमों का खुले रूप से उल्लंघन किया था तथा साथ ही पूरी निर्माण प्रक्रिया के दौरान पैदा हुए औद्योगिक कचरे के निस्तारण के लिये किसी तरह का प्रबंध नहीं किया गया था |

2001 में पूरा मामला सामने आने से पहले कंपनी ने इस फैक्ट्री में 165 मिलियन थर्मामीटरों का निर्माण किया जिसमें लगभग 900 किलोग्राम मर्करी का इस्तेमाल किया गया। उस समय इस फैक्ट्री में लगभग 1200 कर्मचारी काम कर रहे थे। जिस समय यह मामला खुला उस समय यहां की मिट्टी के नमूनों में मर्करी की मात्रा सामन्य से 50,000 गुना अधिक तक पायी गयी थी जो कि पूरी स्तिथि की भयावहता को बताने के लिये काफी हैं।

इन सब परिस्तिथियों के कारण यहां लोगों को कई बीमारियों का सामना करना पड़ा हैं और कंपनी में कचरे के प्रबंध के लिये किसी भी तरह कि व्यवस्था ना होने से इसे कंपनी के आस-पास स्थित जंगलो में खुले में फेंका गया जिस से पर्यावरण पर इसका बुरा असर पड़ा और ज़मीन की उर्वरकता भी कम हुई।

इस घटना के बाद प्रशासन ने तत्काल प्रभाव से फैक्ट्री को बंद करवा दिया। कर्मचारियों के मुआवजे़, उनके पुनर्वास तथा पर्यावरण को हुए नुकसान को कम करने की मांग उठी। इन सभी मांगों पर यहाँ अलग-अलग संगठनों द्वारा लगातार आवाज़ उठाई जाती रही।  इन प्रदर्शनों के दबाव के चलते पिछले वर्ष कंपनी ने इन संगठनों के साथ एक समझौता किया। कंपनी ने कर्मचारियों के मुआवज़े तथा फैक्ट्री द्वारा फैलाये गये औद्योगिक कचरे के कारण हुई पर्यावरण की क्षति की जिम्मेदारी ली। कंपनी ने कोडइकनाल झील तथा यहां के जगलों में डाले गए कचरे को साफ करने की मांगों को स्वीकार कर लिया।

लेकिन इस समझौते के एक वर्ष बाद जब हमने यहां इस मुद्दे पर काम कर रहे संगठनों से बात की तथा वर्तमान स्तिथि का ब्यौरा लिया तो उन्होंने कंपनी द्वारा इस दिशा में उठाये गए क़दमों की आलोचना करते हुए इस पूरे मामले के प्रति कंपनी प्रबंधन की गंभीरता पर सवाल खड़े किये।

इस आन्दोलन में HUL के पूर्व मजदूरों की आवाज़ उठाने वाले संगठन EX-Employee Welfare Association के सचिव प्रभु ने Youth Ki Awaaz से बात करते हुए बताया “ इस समझौते के अनुसार कंपनी ने सिर्फ 519 लोगों के मुआवज़े तथा पुनर्वास का प्रबंध किया है जबकि इस घटना के समय कंपनी में करीबन 1200 कर्मचारी काम कर रहे थे और वे इस पूरे कुप्रबंधन का शिकार हुए हैं।” लेकिन कंपनी ने अब इस पूरे मामले से पल्ला झाड़ लिया हैं।

इस मुद्दे पर काम कर रहे संगठन TAAM (Tamilnadu Alliance Against Mercury) के अध्यक्ष राज मोहन ने Youth Ki Awaaz को इस मामले के समाधान के तहत कंपनी द्वारा कचरे की सफाई के प्रबंधन को ख़ारिज करते हुए कहा कि जिस तरह से झील तथा आस-पास के इलाकों की सफाई की जा रही हैं वो अन्तराष्ट्रीय मानकों के अनुसार नहीं हैं। “उन्होंने कहा कि जिस तरह से यह काम किया जा रहा है वो सिर्फ यहां की जनता की आँखों में धूल झोकने जैसा है।”

उन्होंने कहा कि “उनके संगठन की मांग है कि सफाई प्रबंधन के लिये बनायीं गयी समीति में यहां के स्थानीय लोगों को भी जगह मिलनी चाहिये जिस से कि उन्हें सही स्थिति का पता चल सके और कंपनी की जिम्मेदारी को सुनिश्चित किया जा सके।”

राजनीतिक नेतृत्व से मदद मांगने के सवाल पर राज मोहन ने बताया कि उन्हें उनसे कोई उम्मीद नज़र नहीं आती क्योंकि इस पूरे मामले पर आज तक उनके द्वारा किसी तरह का सहयोग नहीं मिला है।

यहां अधिकतर लोग अभी भी इस समझौते से नाखुश हैं और अभी भी लगातार अपनी मांगों के लिये लड़ रहे हैं। इस मुद्दे पर प्रशासन तथा राजनीतिक नेतृत्व की चुप्पी भी लगातार यहां के लोगों को खल रही है।

इस मुद्दे को कई तरह से अलग-अलग मंचों पर लगातार उठाया जाता रहा हैं। चेन्नई की कार्यकर्ता/रैपर सोफ़िया अशरफ ने इस मुद्दे पर लोगों की समझ में इज़ाफा करने के लिये Kodaikanal Won’t  नाम से एक वीडियो भी बनाया गया है।

इस पूरे मामले को हम इस तरह से ही समझ सकते हैं कि उद्योगों का होना आवश्यक है लेकिन सरकार तथा प्रशासन को सुनिश्चित करना चाहिये कि किसी भी तरह के नियमों का उल्लंघन ना हो क्योंकि इस तरह की लापरवाहियां कई तरह से आम जन का ही नुकसान करती है।

(ये रिपोर्ट  Youth Ki Awaaz के इंटर्न हितेश मोटवानी, बैच-फरवरी-मार्च 2017, ने तैयार की है)

 

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