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जा रे पर्यावरण तुम तो चुनावी मुद्दा भी नहीं हो

उत्तर प्रदेश में चुनावी सरगर्मी शुरू हो चुकी है। राज्य से लेकर राष्ट्रीय नेता और राजनीतिक दल ताबड़तोड़ घोषणाएँ कर रहे हैं, लोगों को लुभाने वाले वायदे किये जा रहे हैं, लेकिन इन सबके बीच जो सबसे ज़रुरी चीज़ छूट रही है, वह है पर्यावरण की बिगड़ती हालत और चुनावी राजनीति में इस महत्वपूर्ण विषय का गायब होना।

एक बात तो साफ हो गई है कि पर्यावरण पर बहुत सारे सेमिनारों और एवं गोष्ठी के आयोजन भर से जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण संकट से निपटारा नहीं हो सकता। खासकर, भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में जब तक पर्यावरण संकट के मुद्दे को अकादमिक बहसों से निकाल कर सड़कों पर, संसद में और चुनावी राजनीति में लाने की जरुरत है।

जब पूरी दुनिया और देश में जलवायु परिवर्तन की वजह से संकट आन पड़ा है, ऐसे में उत्तर प्रदेश चुनाव एक बेहतरीन समय साबित हो सकता है जब राजनीतिक दल इस मुद्दे को अपने एजेंडे में शामिल करें। वैसे भी पर्यावरण के खराब होने की जड़ में जाये बिना इस संकट से निपटना संभव तो नहीं दिखता। जनसंख्या में लगातार बढ़ोत्तरी, अंधाधुंध औद्योगकि विकास, जंगलों की कटाई और जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल में बेतहाशा वृद्धि जैसे पर्यावरण के खराब होने के मुख्य कारण को राजनीतिक इच्छाशक्ति के बिना सुलझाया जाना मुश्किल है।

जनसंख्या बढ़ने से हमारे संसाधन पर लगातार भार बढ़ता जा रहा है, इस भार को कम करने के लिए हम औद्योगिक विकास को जन्म दे रहे हैं, जो कि सबसे ज़्यादा खरनाक साबित हो रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) की रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में 10 में से नौ लोग प्रदुषित हवा में सांस लेने को मजबूर हैं। दुनिया भर में हर साल लगभग 60 लाख से ज़्यादा लोगों की मौत वायु प्रदूषण की वजह से हो जाती है।

इस सिलसिले में उत्तर प्रदेश के बाराबंकी की एक किसान महिला सुशिला देवी सही ही सकती हैं, कि सबसे ज़्यादा हम गरीब ही पर्यावरण से जुड़ी समस्या को झेल रहे है, अमीरों का क्या है? उनके लिये तो हर बिमारी का इलाज मौजूद है। सच में डब्लूएचओ के आंकड़ों पर गौर करे तो हम पाते हैं कि वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों में 90 फीसदी गरीब देश में सबसे ज़्यादा मौतें होती हैं।

उत्तर प्रदेश के चुनाव में पर्यावरण को एक गंभीर मुद्दा इसलिए भी बनाना जरुरी है क्योंकि तेजी से बढ़ते हुए शहरीकरण और विकास ने यूपी में कई दिक्कतें खड़ी की हैं। इसमें सबसे महत्वपूर्ण है कि राज्य के हर हिस्से में प्रदूषण का स्तर बढ़ गया है। विश्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक देश के सबसे 20 प्रदूषित शहरों में से चार यूपी के हैं। 2005 की एक रिपोर्ट के मुताबिक पूरे देश में यूपी से सबसे ज़्यादा ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जित होती है, जो देश के कुल उत्सर्जन का 14% है। ग्रामीण इलाकों के आठ करोड़ लोग और शहरी इलाकों के 50लाख लोग अब भी बिना आधुनिक  बिजली के रह रहे हैं। सॉलिड वेस्ट का ठीक तरह से निस्तारण नहीं होने की वजह से जमीन, हवाऔर पानी की भी गुणवत्ता खराब हुई है।

ऐसे हालात में जरुरी है कि उत्तर प्रदेश में आने वाली सरकार को इस संकट से निपटने के लिये कुछ कदम उठाने होंगे। वहां स्वच्छ हवा के लिए एक निश्चित समयावधि में बेहतर हवा की गुणवत्ता के लक्ष्यों को पूरा करने के उद्देश्य से एक नीतिगत ढांचे के साथ कार्य योजना बनानी होगी। इसके लिये राज्य सरकार को क्षेत्रीय सहयोग के लिए गंगा के मैदानी इलाकों में आने वाले राज्यों के साथ मिल कर काम करना होगा। देश की जनता को हवा की गुणवत्ता का डाटा और उससे निपटने के लिये एहतियाती स्वास्थ्यपरामर्श देने की व्यवस्था करनी होगी।

वहीं 2022 तक 13,000 मेगावाट सौर ऊर्जा उत्पादन के लक्ष्य के साथ 100 प्रतिशत  अक्षय ऊर्जा की योजना बनाना भी कारगर रास्ता साबित होगा।  एक बेहतर पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम को विकसित करना और उसे लागू करने के साथ ही डीजल से चलने वाली बसों और रिक्शे में इलेक्ट्रिक टेक्नॉलजी का इस्तेमाल को बढ़ावा देना होगा। पहले से चल रही गाड़ियों, फैक्ट्रियों और उद्योगों के लिये सख्त उत्सर्जन मानक बनाने होंगे। यूपी के शहरों में ग्रीन एरिया को बढ़ाने के लिये एक कार्ययोजना को तैयार करना होगा, वहीं वेस्ट मैनेजमेंट (कचरा प्रबंधन) के लिये न सिर्फ बड़े शहरों में बल्कि सभी कस्बों में सॉलिड और लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट सिस्टम को विकसित करना होगा।

सीधी सी बात है अगर हम अपना जीवन बचाना चाहते हैं, अपने बच्चों को सुरक्षित भविष्य सौंपना चाहते हैं तो इसके लिये हमें अभी से ज़मीनी, नीतिगत स्तर पर लड़ाई लड़नी होगी। हमें यह समझना होगा कि पर्यावरण बचाने की लड़ाई का मतलब है हमारे अपने अस्तित्व को बचाने का संघर्ष। पहले ये प्रदूषण शहरों तक सिमटा था, अब हमारे गाँव की हवा औऱ पानी भी जहरीली होती जा रही है। एक अनुमान के मुताबिक खेती योग्य भूमि का 60 प्रतिशत भूमि कटाव, जलभराव और लवणता से ग्रस्त है। कल्पना कीजिए जब हमारे पास खेती की जमीन नहीं होगी, हमारे गाँव भी प्रदूषित हो चुके होंगे, फिर हमारी पूरी सभ्यता किस तरफ जायेगी?

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