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चलता, रुकता, थकता बैंगलोर

हितेश मोटवानी:

बैंगलोर, इस शहर का नाम सुनते ही हमारे ज़हन में जो तस्वीरें उभरती हैं, उनमे यहाँ का बेहतरीन मौसम, बड़े-बड़े आईटी पार्क, और सॉफ्टवेयर कंपनियों के चमकते हुए आलीशान ऑफिस ही नज़र आते हैं। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से एक और वजह से इस शहर की एक बिल्कुल अलग पहचान बनी हैं और वो हैं [envoke_twitter_link]यहाँ की बदहाल ट्रैफिक व्यवस्था।[/envoke_twitter_link] समय के साथ यह समस्या लगातार गंभीर होती जा रही है।

वर्ष 2005, में यहाँ ट्रैफिक के आगे बढ़ने की औसत गति 35 किमी प्रतिघंटा थी और जो कि अब कम होकर मात्र 9.2 किमी प्रतिघंटा रह गयी हैं। सुबह और शाम के समय तो स्तिथि और भी खराब होती हैं जब ट्रैफिक की चाल मात्र 5 किमी प्रतिघंटा ही होती हैं। इसके साथ ही प्रमुख सिग्नलों को पार करने का समय लगभग 5 से 6 मिनट होता है जो कि आदर्श स्तिथि में 2 से 3 मिनट का ही होना चाहिये।

हम जानते ही हैं कि पिछले डेढ़ दशक से बैंगलोर में आईटी उद्योग में लगातार बढ़ोतरी हुई हैं और इसी के चलते विश्व की सभी प्रमुख कम्पनियों के दफ्तर यहाँ खुले हैं। आईटी उद्योग का केंद्र होने के कारण, पिछले कुछ समय से देश के अलग-अलग इलाकों से लोग यहाँ आ कर बसे हैं, जिसकी वजह से इस शहर की जनसँख्या पिछले 10 वर्षों में लगभग दुगुनी हो गयी है। वर्ष 2001 की जनगणना के आंकड़ो को देखें तो यहाँ की जनसँख्या लगभग 5.6 मिलियन थी जो कि अब बढकर 11.5 मिलियन हो गयी है और यह लगातार बढ़ ही रही है। इतनी बड़ी जनसँख्या के लिये जरुरी आधारभूत ढांचे का अभाव ट्रैफिक की इस समस्या का एक बहुत बड़ा कारण हैं।

इस समस्या का दूसरा बड़ा कारण पर्याप्त स्तर पर सड़कों का विस्तार ना होना भी है। यदि रोड डेंसिटी की बात की जाये तो बैंगलोर में यह मात्र 8.2 किमी प्रति स्क्वायर किलोमीटर हैं, जो कि भारत के सभी बड़े शहरों कि तुलना में सबसे कम है। इसके विपरीत दिल्ली में रोड डेंसिटी 21.6 किमी प्रति स्क्वायर किलोमीटर हैं, इस अन्तर से हम आधारभूत ढांचे की कमी का अंदाज़ा लगा सकते हैं।

इसके साथ ही यहाँ के प्रशासन की इस पूरी स्तिथि को सुधारने के प्रति उदासीनता भी इस समस्या में लगातार वृद्धि कर रही है। 2007 में शुरू हुआ मेट्रो के पहले चरण का काम भी अभी तक पूरा नहीं हो पाया हैं तथा इसके पूरे होने की समय-सीमा को लगातार आगे बढ़ाया जा रहा है।

ट्रैफिक की इस समस्या के कई तरह के विपरीत परिणाम अब दिखने लगे हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक शहर में प्रत्येक नागरिक, एक वर्ष में लगभग 240 घंटे ट्रैफिक जाम में बिता देता है और प्रोफेसर श्री हरी के अनुसार इससे प्रत्येक वर्ष तकरीबन 6500 करोड़ का नुकसान होता है। दूसरा लगातार बढ़ते हुए वाहनों की संख्या और उस से उपजे ट्रैफिक जाम की स्तिथि, शहर में ट्रैफिक पुलिस के कर्मचारियों की सेहत पर भी विपरीत असर डाल रही है। यहाँ कर्मचारियों को कई तरह की बीमारियों का सामना कर पड़ रहा है। ट्रैफिक जाम की इस समस्या से यहाँ काम कर रहे लोगों की कार्यक्षमता और उनके मानसिक स्वस्थ्य पर भी प्रतिकूल असर पड़ रहा है।

इस पूरी स्तिथि में शीघ्र बदलाव होगा इसकी तो कोई सम्भावना नहीं दिखती लेकिन प्रशासन को चाहिये कि वो परिवहन के लिए जरुरी ढांचे का विकास करे और इस के लिये किये जा रहे प्रयासों में तेजी लाये।

हितेश मोटवानी Youth Ki Awaaz हिंदी के फरवरी-मार्च 2017 बैच के इंटर्न हैं।

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