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हाथ जोड़ने का मौसम है, अभी वो, बाकी 5 साल आप

देश बदले या न बदले मौसम बदल रहा है। कुछ एंठ कर चल रहे हैं। कुछ सर झुकाकर तिल्‍लर हुए जा रहे हैं। जो अब तक बात करने को तैयार नहीं थे वे अब सर झुका कर लम्‍बा सलाम कर रहे हैं। पीछे से पीठ पर हाथ रखकर कहते हैं-अरे भाई झम्‍मन हम भी हैं आपकी राहों में। हमारा भी खयाल रखना। इस बार हमें हर बार की तरह भूल न जाना। इस बार अगर याद नहीं रखोगे तो-मैं भी तुम्‍हें देख लूंगा। भाषा पर न जाएं भावनाओं को देखें। अभी तक सब कुछ ठीक-ठाक है। मौसम सुहाना है। तमीज से बात हो रही है। लल्‍लन, छुट्टन, भैय्यन, सबके, सब हाथ जोड़े खड़े हैं। सर झुके हैं, जमाने भर की विनम्रता, आखों में असीम सागर स्‍नेह का या लाचारी कह लो। लेकिन सब के सब झुके सर से हाथ जोड़ कर खड़े हैं।

होली का डांडो गड़ चुका है। पंजाब/गोवा/उत्‍तराखंड में होलिका मिलन की तैयारी हो चुकी है। वहां पर अब लोग हाथ जोड़-जोड़कर थक चुके हैं। अब हाथ उठाने या घर में होलिका के डर से छुप जाने का मौसम है। अब तो वहां के लोग कहते हैं-हाथ जोड़ो और पीछा छोड़ो।

मणिपुर और उत्‍तर प्रदेश में हाथ जोड़ने का मौसम अभी चल रहा है। कुछ जिलों में वहां पर हाथ जोड़ने का मौसम जा चुका है। हाथ जोड़ने का मौसम चुनाव के समय आता है और चुनाव परि‍णाम के आते ही चला जाता है। [envoke_twitter_link]चुनाव परिणाम के बाद आपको हाथ जोड़ना है।[/envoke_twitter_link] आपको विधायक जी के यहां जाना पड़ेगा, वहां बोर्ड पर लिखा होता है-साहब बिजी हैं, विधायक जी मीटिंग में हैं, दौरे पर हैं। साहब घर पर नहीं हैं। बाहर कहां गए हैं, गोपनीय दस्‍तावेज की तरह गोपनीय है।

जनता भेड़-बकरी की तरह होती है, जिधर से फरमान जारी होता है, उस राह पर चल पड़ती है। भेड़ की आंखों पर धर्म की काली पट्टी बंधी होती है। वह धर्म के इशारे समझती है। वह बिना सबूत फैसला सुनाती है। गलत सही के लिए सबूत चाहिए, वह सबूत न देख सकती है न पेश कर सकती है। उसका धर्म उसका कानून है। कानून अंधा भी हो सकता है। उसका फैसला गुगली होता है। पहले नहीं मालूम पड़ता कौन सा विकेट लेगी। लेग या मिडिल उड़ाएगी।

[envoke_twitter_link]भेड़-बकरी ही सत्‍ता का भविष्‍य तय करती है।[/envoke_twitter_link] झुण्‍ड ही सत्‍ता का प्रतीक है। [envoke_twitter_link]भेड़-बकरी सत्‍ता के लिए पांच साल तक शोषण, उपयोग, उपभोग का साधन होती है।[/envoke_twitter_link] भेड़ चाहे किसी राह पर चले उसे तो कटना ही है।

अब कुछ भेड़-बकरी पढ़ी-लिखीं भी है, लेकिन लकीर से हटने के लिए वे कबीर को नहीं पढ़ती है। कबीर का धर्म भेड़ बकरी का धर्म कभी नहीं रहा। कबीर ने चुनाव नहीं देखा, न किसी के आगे हाथ जोड़े, ना ही मौसमी नमस्‍कार किया।

प्रजातंत्र में सत्‍ता का गठन भेड़तंत्र के जरिए होता है। भेड़िए उपभोग करते हैं। चुनाव घोषणा से परिणाम आने तक भेड़िए अपने नाखून छिपाए रखते हैं। हाथ जोड़े खड़े रहते हैं। भेड़ों का काम है अपनी खाल के जूते बनाए और भेड़ियों को पहनाएं।

हाथ जोड़ने के मौसम की आखिरी हवा है। अब तूफान की आशंका नहीं है। अब पांच साल तक कोई मौसम में परिवर्तन नहीं होगा।

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