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खादी, मोदी और महात्मा गांधी

सुमन कुमारी:

खादी को आज़ादी के समय के पहले से ही एक विचार के रूप में ग्रहण किया गया है और 21वीं सदी में भी खादी को एक विचार रूप में ही लिया जाता है। इस विचार में अगर कोई फेर-बदल होती हुई देखी गई तो समाज में इसे अपनाने में थोड़ी असहजता तो जरुर ही होगी। खादी और महात्मा गांधी एक ही पहलू के दो सिक्के हैं। खादी, महात्मा गांधी के नाम से जाना और पहचाना जाता है। [envoke_twitter_link]महात्मा गांधी ने ही खादी को जन-जन तक पहुंचाया और जन-जन का बनाया भी।[/envoke_twitter_link] खादी एक स्वदेशी सोच है जो शुरूआती दौर में भारत की ग़रीबी दूर करने में बहुत सहायक हुई थी।

महात्मा गांधी भारत के राष्ट्रपिता हैं और उनके विचार से पूरा भारत अभिभूत भी है। महात्मा गांधी ने जब भारत में आज़ादी की लड़ाई शुरू की थी, तब उन्होंने पैदल ही पूरे भारत को माप दिया था और पूरे भारत के जन-जन को खुद से जोड़ भी लिया था। वह हमेशा से शोषित और कमज़ोर के साथ खड़े रहे, उन्होंने स्वंय को भी इतना निम्न बना लिया कि हर व्यक्ति उनसे खुद को जोड़ने लगा।

जब खादी जन-जन तक पहुंचा और जब खादी स्वदेशी का एक सिम्बल बन गया, तब से महात्मा गांधी को चरखे के साथ जोड़ा जाने लगा। चरखे से स्वंय धागा कातकर कपड़े तैयार किये जाते हैं, जो शुद्ध देशी खादी का प्रतीक है। चरखे के साथ महात्मा गांधी की तस्वीर ना जाने हम कब से देखते आ रहे हैं, जो हम भारतीयों के मानसपटल पर छप चुकी है।

19 मार्च 1922 को नवजीवन में प्रकाशित एक साक्षात्कार में महात्मा गांधी ने कहा था, “मेरा सिर्फ एक ही संदेश है और वह खादी से जुड़ा हुआ है। आप मेरे हाथ में खादी दीजिए और मैं आपको स्वराज लौटाऊंगा। अन्त्यजों का उत्थान और हिंदू-मुस्लिम एकता भी खादी से संभव है। यह शांति का भी एक महान साधन है…” 

परिवर्तन ही संसार का नियम है। प्रत्येक परिवर्तन को अपनाने में कुछ वक्त भी लगता ही है। लेकिन परिवर्तन स्वाभाविक हो और सभी के स्वीकार्य हेतु हो तो अपनाने में सहजता होती है। बीते दिनों में भी एक ऐसा परिवर्तन हुआ है जिसे अपनाते हुए समाज असहज हो रहा है। साल-दर-साल जो हम चरखे के साथ गांधी जी की तस्वीर देखते आ रहे थे, वह तस्वीर इस वर्ष कुछ बदलाव के साथ सामने आया। चरखे के साथ इस बार गांधी की जगह वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तस्वीर देखी जा रही है।

तस्वीर के इस बदलाव में राजनैतिक दल हों या खादी से जुड़ा कार्यकर्ता, सब अपनी-अपनी नये और परिवर्तनशील की परिभाषा देते हुए दलीले दें रहे हैं। सर्वप्रथम इस बदलाव पर प्रधानमंत्री जी ने कहा, “मैंने कल पूज्य बापू की पुण्य तिथि पर देश में खादी एवं ग्रामोद्योग से जुड़े हुए जितने लोगों तक पहुंच सकता हूं, पत्र लिख कर पहुंचने का प्रयास किया।” उन्होंने इस बात पर प्रसन्नता जताई कि खादी के उत्पादों का उपयोग करने के लिए रेल मंत्रालय, पुलिस विभाग, भारतीय नौसेना, डाक विभाग सहित अन्य सरकारी संस्थान आगे आ रहे हैं । इसके चलते लगभग 18 लाख मानव दिवसों (मैन-डेज़) का अतिरिक्त रोजगार खादी के क्षेत्र में उपलब्ध होगा और इससे प्रत्येक कारीगर की आमदनी में बढ़ोतरी होगी।

बदलते समय के साथ देखा जाए तो खादी की लोकप्रियता में बढ़ोतरी आई ही है, अब खादी सिर्फ बुजु़र्गों की पसंद बनकर नहीं रह गई है। [envoke_twitter_link]खादी आज के दौर में युवाओं में भी खूब प्रचलित है।[/envoke_twitter_link] हर वर्ग खादी पहनने की इच्छा रखता है, चाहे वह स्त्री हो, पुरुष हो, युवा हो या फिर बुजु़र्ग हो।

खादी पहनने की जब शुरुआत हुई थी तब जरुर खादी सबसे सस्ता और टिकाऊ कपड़ा माना जाता था। खादी के सबसे सस्ता होने की वजह से इस तक गरीबों की पहुंच आसानी से थी। लेकिन आज इक्कीसवीं सदी में खादी सस्ता नहीं है, खादी हर कोई नहीं पहन सकता है। [envoke_twitter_link]आज खादी ग़रीबों की पहुंच से दूर है।[/envoke_twitter_link] अब खादी भी और सभी ब्रांड की तरह अमीरों की पसंद में शामिल हो गई है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी खादी के ब्रांड एंबेसडर हैं और वह खादी को रोज़गार और प्रचार की दलीलों से जोड़ते हुए महात्मा गांधी की तस्वीर के बदलाव को आधुनिकता की जरूरत मानते है। लेकिन यह भी सत्य है कि खादी रोज़गार और प्रचार की दलीलों को पूरा करे न करे, यह गरीबों की पहुंच से जरुर दूर हो रही है।

इस मुद्दे पर आयोग के चेयरमैन विनय कुमार सक्सेना ने कहा है कि यह हैरान होने जैसी बात नहीं है और पहले भी ऐसा होता रहा है। उनका कहना है, “पूरा खादी उद्योग ही गांधी जी के विचारों और आदर्शों पर आधारित है। ऐसे में उन्हें नजरअंदाज़ किए जाने का सवाल ही नहीं उठता।” सक्सेना ने आगे कहा, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी लंबे समय से खादी पहनते रहे हैं। वे खादी के सबसे बड़े ब्रांड एंबेसडर हैं। उनकी ‘मेक इन इंडिया’ और’स्किल डेवेलपमेंट’ योजनाओं के तहत खादी ग्रामोद्योग, गांवों को आत्मनिर्भर बनाने और युवाओं को रोज़गार देने के प्रयास में जुटा है। नए प्रयोग हो रहे हैं और मार्केटिंग को भी बेहतर बनाने पर जोर दिया जा रहा है।”

अब यह तो आने वाला समय ही बतायेगा की यह बदलाव कितना कारगर होगा और कितने रोज़गार के अवसर प्रदान करेगा।

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