“कोई स्त्री बदसूरत नहीं होती, केवल आलसी होती है”
इसे पढ़कर अजीब लगा ना? ज़ाहिर है, लगना भी चाहिए। क्योंकि ये बेहद ही खराब ढंग से लिखी गई एक विज्ञापन की लाइन थी, एक विज्ञापन जो फेसबुक पर घूम रहा था। ये विज्ञापन BeautyPlus नाम के एक ऐप को डाउनलोड करने का था और इसी विज्ञापन पर ये बेहुदी लाइन लिखी हुई थी।
‘कोई स्त्री बदसूरत नहीं होती, केवल आलसी होती है। BeautyPlus का सौंदर्यीकरण युग! ऑटो रीटच और मेकअप फंक्शन के साथ अपने नए रूप का स्वागत करें।’
ये ऐप दरअसल तस्वीरों को एडिट करने, ‘सुंदर’ बनाने और साथ में थोड़ा और गोरा करने का दावा करता है। इसके साथ एक वीडियो भी है जिसमें दिखाया गया है कि कैसे एक लड़की की तस्वीर एडिट हो रही है।
मुझे हैरानी हुई, कि ये क्या बकवास है। कोई ऐसा कैसे लिख सकता है? खैर थोड़ा ढूंढा खंगाला तो पता चला कि USA बेस्ड डेवलपर हैं और उन्हीं का ऐप है। वेबसाईट है beautyplus@us.meitu.com.
Beauty plus ने भारत में प्रचार करने के लिए हिंदी में विज्ञापन दिया है, जो इस भयानक लाईन के साथ फेसबुक पर घूम रहा है। और इस विज्ञापन के वीडियो को अब तक 10 लाख से भी ज्यादा लोग देख चुके हैं।
इसे देख कर बहुत सी बातें एक साथ दिमाग में आई। इसमें एक बात ये भी थी कि शायद ट्रांसलेशन की ठीक समझ न होने के कारण ऐसा हुआ होगा या संभव है कि किसी ठीक-ठाक हिंदी जानने समझने वाले व्यक्ति ने ही यह कॉपी लिखी हो। लेकिन जो भी हो, जिस विज्ञापन को 10 लाख लोग देख रहे हों उसमें ऐसी भयानक बात कैसे लिखी जा सकती है? क्या कुछ लोगों ने इस पोस्ट को रिपोर्ट भी किया होगा?? पर इस विज्ञापन में एक और दिलचस्प बात है और वो है फेसबुक के इस ऐड पर आए लड़कियों के रिस्पॉन्स।
एक लड़की ने इस पोस्ट पर लिखा कि, “एडिट करना चीटिंग करने की तरह है. मैं कभी अपनी तस्वीरें एडिट नहीं करती और आखिर एडिट करने की जरूरत क्या है, हर इंसान की एक नेचुरल ब्यूटी होती है तो दूसरों को क्यो चीट करना।”
-एक और लड़की ने इसी तरह की बात लिखी और कहा कि ये दूसरों के साथ-साथ खुद को भी धोखा देना है।
-अगले कमेंट आया कि आदमी को दिखावा करना ही क्यों चाहिए।
-हमें परफेक्ट ब्यूटी के लिए क्यों ऐम करना चाहिए, हम सब ह्यूमन हैं।
-यूं ही ठीक हैं हम, हमें फेक नहीं होना।
-मैं जैसी हूं ठीक हूं, सिर्फ तस्वीरें बदल देने से कुछ नहीं बदल जाएगा।
-एक लड़की ने कहा कि मेकअप के पहले वाली तस्वीर ज़्यादा अच्छी थी, मेकअप वाली तस्वीर तो कपड़ों के दुकान के पुतलों जैसी है।
खैर इस पोस्ट पर करीब 100 कमेंट्स थे, जिसमें ‘कोई स्त्री बदसूरत नहीं होती, केवल आलसी होती है’ पर कोई टिप्पणी नहीं दिखी। होता यही है, विज्ञापन आपको सवाल करना नहीं सिखाता, चीजों को मनवा लेता है, थोप देता है। जब आप ये लाईन पढ़ते हैं तो वाकई में सोच सकते हैं कि हां यार आलसी तो होते ही हैं हम।
लेकिन फिर भी जो कुछ कमेंट्स थे, राहत भरे थे। क्योंकि भले ही वे उस खास लाईन पर नहीं थे लेकिन ब्यूटी के पूरे कॉन्सेप्ट को चैलेंज करते थे और ये अपने आप में कितनी शानदार बात है।