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ट्रम्प की नयी वीज़ा नीति का क्या होगा भारत पर असर?

बहुत कम ही नेता ऐसे होते हैं जो चुनाव के पहले किये वादे को जीतने के बाद पूरा करते हैं। डोनाल्ड ट्रम्प उन्ही में से एक अपवाद हैं। मुसलमानों से उनकी नाराजगी जगजाहिर है और राष्ट्रपति बनने के बाद सात मुस्लिम देशों के लोगों को अपने देश में घुसने पर रोक लगाकर उन्होंने अपनी इस नाराज़गी पर संवैधानिक मुहर लगा दी है। ये सात देश हैं इराक, ईरान, सीरिया, यमन, सोमालिया, सूडान और लीबिया।

हालांकि इन देशों से पहले भी अमेरिका के रिश्ते अच्छे नहीं रहे हैं लेकिन फिर भी इस समय पूरा विश्व ट्रम्प के इस निर्णय से खुश नहीं है और दो खेमों में बंटा हुआ नज़र आ रहा है। एक तरफ वो लोग हैं जिन्हें लगता है कि आतंकवाद से निपटने के लिए उठाया गया ये कदम काबिले तारीफ है तो दूसरी तरफ एक बहुत बड़े तबके का यह मानना है कि यह निर्णय मानवता और धर्म विरोधी है। कुछ लोगों की गलती की सजा पूरे देश को या किसी ख़ास कौम को कभी भी नहीं मिलनी चाहिए।

ट्रम्प यहीं नहीं रुकते हैं बल्कि उनकी सरकार ने विदेशी नागरिकों को अपने देश में नौकरी करने के लिए दिए जाने वाले वीजा नियमों में भी कई बदलाव वाले बिल का प्रस्ताव रखा है। अमेरिका हर साल अपने यहां काम करने के लिए सालाना 85 हज़ार एच-1बी वीजा जारी करता है, जिसमें दुनिया के हर हिस्से के लोग शामिल होते हैं। यूएससीआईएस (United States Citizenship and Immigration Services) की रिपोर्ट के अनुसार विदेशी नागरिकों में सबसे ज्यादा संख्या भारतीयों की ही है।

अब नये नियमों के अनुसार सिर्फ वही लोग इसे पाने के हकदार हैं जिनका सालाना वेतन न्यूनतम 130000 डॉलर हो, जो कि मौजूदा दर से लगभग दोगुना है। ऐसे में सबसे ज़्यादा मुश्किल वहां पर काम कर रहे भारतीयों को ही है, क्योंकि सीधे तौर पर कम्पनियां उनका वेतन दोगुना नहीं कर सकती हैं। ऐसे में स्थिति यह बनती है कि शायद वे अपने नागरिकों को वापस अपने देश ही बुला लें। इससे बेरोज़गारी का संकट और गहरा सकता है। ऐसा माना जा रहा है कि ट्रम्प का यह निर्णय विदेशी नागरिकों की बजाय अपने देशवासियों को ज्यादा रोज़गार देने के लिए उठाया गया एक महत्वपूर्ण कदम है फिर भी इस निर्णय के कई राजनीतिक पहलू हो सकते हैं।

हालांकि अभी तक यह बिल पूरी तरह पास नहीं हुआ है लेकिन उम्मीद जतायी जा रही है कि यह पास हो जायेगा। अब तक प्रधानमंत्री मोदी 4 बार अमेरिकी दौरे पर जा चुके हैं और पिछले हफ्ते ही डोनाल्ड ट्रम्प से उनकी फोन पर हुई। बातचीत से ऐसे कयास लगाये जा रहे थे कि अब दोनों देशों के आपसी रिश्ते और बेहतर होंगें साथ ही रोज़गार के अवसर बढेंगे, लेकिन ट्रम्प के इस निर्णय ने सबको चौंका दिया है।

भारत के विदेश मंत्रालय ने भी इस पर चिंता जतायी है और अमेरिका के उच्च अधिकारियों से बात करने की कोशिश की है। बेशक यह अमेरिका का निजी मामला है लेकिन पहले से ही नोटबंदी के कारण बेरोज़गारी की मार झेल रहा यह देश अभी एक और नयी समस्या के लिए बिल्कुल तैयार नहीं है। उम्मीद है माननीय मोदी जी इस परेशानी को समझ रहे होंगें और जल्द ही अमेरिका पर इन नीतियों में बदलाव और सुधार लाने के लिए दवाब डालेंगे।

अनूप कुमार सिंह Youth Ki Awaaz हिंदी के फरवरी-मार्च 2017 बैच के इंटर्न हैं।

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