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डर-डर कर जीने को मजूबर हैं डीयू में नॉर्थ ईस्ट के स्टूडेंट्स

देश भारत। हज़ारों न्यूज़ चैनल्स, ढेर सारे अखबार और ना जाने कितनी वेबसाइट्स। नॉनस्टॉप, 24 घंटे, लगातार, सबसे आगे, जाने क्या-क्या खबरें और हां महाकवरेज, जबरदस्त कवरेज, लाइव कवरेज। लेकिन कवरेज के इस कुंभ में नॉर्थ ईस्ट हमसे कहीं बिछड़ गया है। जो पता नहीं हमें कब किसी फिल्म की तरह वापस मिलेगा।

किसी राज्य में कोई बाढ़ हो, कहीं भूकंप हो तो तमाम तरह की कवरेज एकसाथ शुरू हो जाती हैं और जो बहुत जायज़ भी है। चुनाव हो फिर तो लगता है पूरा राज्य ही उलट देंगे। गांव-गांव जा कर लगता है वहां के मूस को भी बिल से खोज के पसंदीदा नेता पूछ लेंगे। लेकिन जब बात नॉर्थ ईस्ट की आती है तो सन्नाटा पसर जाता है। आलम तो यह है कि हम में से बहुत एक सांस में बिना गूगल किए नॉर्थ ईस्ट को सभी राज्यों का नाम भी ना ले पाएं। राजनीति और मीडिया की अनदेखी का परिणाम ये हुआ है कि आज देश की बाकी जनता भी पूर्वोत्तर के राज्यों और वहां के लोगों को अनदेखा कर रहे हैं।

ये अनदेखी धीरे-धीरे कैसे भेदभाव और पूर्वाग्रह में बदल गई है इसका जवाब अब ढूंंढ पाना शायद आसान नहीं। पूर्वोत्तर के लोगों से भारतीय होने का प्रमाण मांगा जाता है, उनकी खिल्लियां उड़ाई जाती है, उन्हें उपनामों से बुलाया जाता है। ऐसा प्रतीत होता है कि पूर्वोत्तर के लोग भारतीय समाज का हिस्सा ही नहीं हैं।

नॉर्थ ईस्ट के राज्यों (मिजोरम,मणिपुर,अरूणांचल प्रदेश,असम, मेघालय,नागालैंड,सिक्किम, त्रिपुरा ) से सबसे ज़्यादा युवा DU (दिल्ली यूनिवर्सिटी) और JNU में पढ़ने के लिए आते हैं। एडमिशन के बाद स्टूडेंट्स को यहां रहने के लिए बहुत सी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। कई युवा इन फिज़ूल समस्याओं का सामना करते रहते हैं तो कई परेशान होकर वापस लौट जाते हैं।

DU में कई राज्यों के युवा विद्यार्थी पढ़ने के लिए आते हैं। DU में एडमिशन लेने के लिए सबसे पहले हाई कटऑफ से गुज़रना पड़ता है फिर हॉस्टल के लिए धक्के खाने पड़ते हैं। ऐसे में स्टूडेंट्स बाहर किराये पर रूम लेकर या पीजी में  रहते हैं। अन्य राज्यों के युवाओं को तो ज़्यादा समस्या नहीं होती है लेकिन पूर्वोत्तर के युवाओं को पीजी के मालिक तो साफ साफ ये कह कर मना कर देते हैं कि ये मीट खाते हैं और दारु पीते हैं। मकान मालिक राज्य का नाम सुनते ही रूम तक नहीं दिखाते हैं। मजबूरी में दलाल को ज़्यादा पैसे देकर रूम लेना पड़ता है। बहुत मुश्किल से पूर्वोत्तर के विद्यार्थियों को रहने के लिए रूम मिल पाता है।

हाल ही में असम के कुछ स्टूडेंट्स को ताजमहल में एंट्री करने से रोक दिया गया। उनको 1000 रुपए वाली विदेशी नागरिकों वाली टिकट लेने को मजबूर किया गया था। तब पुलिस की मदद से स्टूडेंट्स को एंट्री के लिए आधार कार्ड दिखाकर अंदर जाना पड़ा। क्या एक ही देश के लोगों के साथ अलग-अलग व्यवहार करना देश की अच्छी छवि को दर्शाता है? ये घटनाएं आने वाले समय में बहुत ही विकट परिस्थितियां पैदा कर सकती हैं।

DU में नॉर्थ व साउथ कैंपस में बहुत से पूर्वोत्तर के लड़के लड़कियां रहते हैं। विजय नगर में रहने वाली नॉर्थ ईस्ट की लड़कियों (नाम नहीं बताए जाने की शर्त पर) का कहना है कि जब भी वे कहीं जाती हैं तो लोग उनको घूरते रहते हैं जैसे कि हम किसी और दुनिया या देश से आये हों। रात में कहीं जाने में डर सा लगता है इसलिए हम नॉर्थ ईस्ट के लड़के लड़कियां एक साथ ग्रुप में रहते हैं ताकि ज़्यादा समस्या न हो।

मणिपुर के कुछ स्टूडेंट्स ने बताया कि पहले कई बार नॉर्थ ईस्ट के लोगों को परेशान किया गया है व मारा गया है। हमारी भाषा अलग है और कम्युनिकेशन में समस्या हो जाती है इसलिए हम कभी कभी डर के कारण दिल्ली में लोगों से बात नहीं करते हैं।

हालांकि ऐसी कई संस्था है जो नॉर्थ ईस्ट से आए स्टूडेंट्स को भरपूर सहायता देती है। माय होम इंडिया एक ऐसी ही संस्था है। माय होम इंडिया के संस्थापक सुनील देवधर हैं और इसके दिल्ली यूनिवर्सिटी के को-कॉर्डिनेटर अरुण कुमार हैं। अरुण ने बताया कि हमारी संस्था पूर्वोत्तर से आये युवाओं को रूम ढूंढने में, कम्युनिकेशन आदि किसी किसी भी प्रकार की समस्या में पूर्ण रूप से सहयोग करती है। हम समय समय पर दिल्ली में नॉर्थ ईस्ट के लोगों को अपनापन महसूस करने के लिए कार्यक्रमों का आयोजन करते रहते हैं। जिसमे नॉर्थ ईस्ट के युवा बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते हैं।

लेकिन सवाल ये है कि अगर हम अपने ही देश के लोगों के साथ गैरों जैसा व्यवहार करेंगे कैसा देश और कैसी देशभक्ति?

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