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राजनीतिक पार्टियों के गुमनाम चंदों को कैसे रोकेंगे ये कमज़ोर नियम

भारत में चुनाव सिर्फ एक प्रक्रिया नहीं है। यह एक पर्व है। गाँव देहात में हो आइए, उत्साह भी दिख जाएगा और लोकतंत्र में लोगों की भागीदारी भी। भले ही वो एक रात पहले चढ़े नशे की देन हो या कुछ सौ, हज़ार में खरीदे हुए वोट। आपको यह एहसास अवश्य हो जाएगा कि कोई पर्व है जिसके इतिहास भूगोल के बारे में भले ही लोगों को न पता हो पर वे इसे मनाने में कभी पीछे नहीं रहते हैं।

शहर में रहने वाला मतदाता शंकित रहता है, वो भी इसे पर्व के रूप में देखता तो है पर प्रक्रिया समझ के समिल्लित होने से कई बार कतराता है। शहर में रहने वाला मतदाता वो है जो ना तो पूर्ण रूप से शामिल ही होता है और ना ही पृथक रह पाता है । इसे भी पर्व के इतिहास भूगोल के बारे में कोई ख़ास जानकारी नहीं है । ये प्रयास तो करता है पर असफल हो जाता है ।

जब तक अलंकार ना हो तब तक सुंदरता और भव्यता कैसी ? विशालकाय मंच, नोटों से बनी मालाएं, मंच पर आसीन नेता और लोगों का जमावड़ा, 2014 से डिजिटल होते भारत में LED और LCD में महंगे कपड़ों में हाथ जोड़े हमारे नेता । सब कुछ अलंकृत कर दो, दिल के तारों को झंकृत कर दो। क्या बात है !!

ये सब करने के लिए राजनीतिक पार्टियों को पैसा चाहिए। कहाँ से आता है ये पैसा ? कौन देता है ? इसका स्त्रोत क्या है ? क्या पाठक ने इन राजनीतिक पार्टियों को कभी चंदा दिया है ?

राजनीतिक दलों को हर वर्ष कई करोड़ रुपये चंदे के रूप में मिलते हैं । रिप्रेजेन्टेटिव ऑफ़ पीपल एक्ट,1951 की धारा 29(C)  के मुताबिक़ हर राजनीतिक पार्टी को 20,000 रु या उससे ज्यादा दान देने वाले दानदाताओं की सूची चुनाव आयोग को देनी होती है । 2017 में पेश हुए बजट के बाद अब यह रकम घटकर 2000 रु हो गई है। यदि कोई संस्था, व्यक्ति या कंपनी किसी राजनीतिक पार्टी को 2000 या उससे ज्यादा का दान देती है तो उस राजनीतिक पार्टी को, किए गए योगदान का हिसाब रखना होता है और चुनाव आयोग को इसके बारे में सूचित करना होता है। जो सूची चुनाव आयोग तक पहुँचती है उसमें दान करने वाले का नाम होना चाहिए, दानकर्ता का पता, चेक/डीडी संख्या, चेक/डीडी प्राप्ति की तारीख,बैंक का नाम, रकम, पैन नंबर स्पष्ट रूप से लिखा होनी चाहिए ताकि उसकी पुष्टि की जा सके।

राष्ट्रीय और क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टियों के आय, व्यय और उनको मिले योगदान से सम्बंधित सूचना पर कार्य करने वाले एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के अनुसार वित्त वर्ष 2015-16 में सभी राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टियों ने 1744 दानदाताओं से कुल 102.02 करोड़ रु का दान प्राप्त किया। जिसमें सबसे ज्यादा BJP को 613 दानों द्वारा 76.85 करोड़ रु प्राप्त हुए। दूसरे नंबर पर रही कांग्रेस को 918 दान प्राप्त हुए जिनका योग 20.42 करोड़ रु बना। कांग्रेस ने 918 योगदानों में से 318 योगदानों के बाकी विवरण तो प्रदान किये पर पैन नंबर उपलब्ध नहीं कराया।

इन 318 योगदानों से पार्टी ने 8.11 करोड़ रु प्राप्त किए। पूरी जानकारी के बिना चेक/डीडी द्वारा प्राप्त दान राशि का पता लगाना मुश्किल होता है। इसका अर्थ ये है कि 20.42 करोड़ रु कि कुल राशि जो पार्टी ने अपने दान रिपोर्ट में प्राप्त करने का दावा किया है उसमें से 8.11 करोड़ रु का चुनाव आयोग पुष्टिकरण नहीं कर सकता। इसी प्रकार BJP को वित्त वर्ष 2014-15 में 83.915 लाख रु ऐसे दान दाताओं से प्राप्त हुए थे जिनके पैन , पता , दान का माध्यम रिपोर्ट में उपलब्ध नहीं थे। दान रिपोर्ट में पार्टी ने केवल दान दाताओं का नाम और दान राशि ही उपलब्ध करायी । वित्त वर्ष 2015-16 में भाजपा ने 71 दान दाताओं से 2.19 करोड़ रु प्राप्त किये मगर उनका पैन विवरण घोषित नहीं किया ।

हमारी राजनीतिक पार्टियों को जब ये ज्ञात है कि 20,000 से ऊपर के दान राशि का विवरण चुनाव आयोग को प्रदान करना होता है तो वे इस बात का ध्यान क्यूँ नहीं रखते कि जिस भी स्त्रोत से पैसा आ रहा है उसकी पूरी जानकारी चुनाव आयोग को दें ? यदि कोई व्यक्ति, कंपनी या संस्था पैन विवरण नहीं देता है, पता नहीं बताता है या अन्य कोई जानकारी नहीं प्रदान करता है तो हमारी राजनीतिक पार्टियां इन से दान लेते ही क्यूँ हैं ? क्या यह गलत नहीं है ?

इस मामले में सबसे सच्ची पार्टी है बहुजन समाज पार्टी ! बहन जी की पार्टी को पिछले 11 वर्षों में 20,000 रु या उससे ज्यादा का एक भी योगदान प्राप्त नहीं हुआ है । मायावती की माया देखने लायक है, जिस पार्टी कि सन 2014-15 में कुल आमदनी 111.955 करोड़ रु रही उसके पास 20,000 या उससे ज्यादे के एक भी दान नहीं ? यदि इसकी और पड़ताल की जाए तो पता चलता है कि 111.955 करोड़ में से 92.80 करोड़ रुपये किसी व्यक्ति, कंपनी या संस्था द्वारा दान किये हुए हैं । मतलब ये 92.80 करोड़ रु का योग 20,000 से कम राशि के योगदानों को मिला कर बनी है।

क्या सिर्फ योगदान की राशि को 2000 रु कर देना समस्या का समाधान है ? क्या मायावती जो रकम 1 बार में 19,999 के रूप में ले रहीं थीं उन्हें 10 बार लेने में कोई हिचक होगी ? क्या राजनीतिक पार्टियां विवरण में घाल-मेल करना बंद कर देंगी ? अगर कोई इंसान 1 रूपए का दान भी करता है तो उसे क्यूँ नहीं जनता के सामने रखना चाहिए ?

इन्हीं सवालों के बीच एक और बात है जो देश के आम इंसान को परेशान करनी चाहिए । वित्त वर्ष 2015-16 में राष्ट्रीय पार्टियों को कुल 102.02 करोड़ रु का योगदान प्राप्त हुआ था जिसमें से 77.28 करोड़ रु की राशि ( कुल का 75.75 फीसदी ) का दान 359 कॉर्पोरेट द्वारा किया गया और महज 23.41 करोड़ रु ( कुल दान का 22.95 फीसदी ) का दान 1322 व्यक्तिगत दानकर्ताओं द्वारा प्राप्त हुआ । जब इतनी बड़ी मात्रा में कॉर्पोरेट राजनीतिक पार्टियों को दान देंगे और उन्हें चुनाव लड़वाएँगे, तो आपको इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए जब सरकारें कॉर्पोरेट को लाभ पहुंचाने वाली नीतियों बनाती है। जब आप भागीदार ही नहीं होंगे तो क्यूँ कोई आप के बारे में सोचेगा ? थॉमस होब्बस का कथन तो याद है न ? ह्यूमन नेचर इज सेल्फिश। मानव एक मतलबी प्राणी है ।

पाठक और हम सभी को ये समझना चाहिए कि चुनाव एक ऐसी प्रक्रिया है जहां बिना पैसों के जीत निश्चित नहीं की जा सकती है। जहां जनता मुद्दों पर वोट नहीं डालती बल्कि जाति, धर्म , क्षेत्र आदि के नाम पर मतदान होता है। राजनीतिक पार्टियों के आय और दान पर नज़र रखना कोई बहुत कठिन काम नहीं है। कुछ बदलाव किये जाएं तो अपने आप ये सब सही हो सकता है। इंटरनेट के युग में crowd sourcing के माध्यम से इरोम शर्मीला ने 4.5 लाख रुपये जुटा लिए हैं। ऑनलाइन दान करने से आपके हर एक रुपये का हिसाब रखने में आसानी होती है, आप इसमें कोई फेर बदल नहीं कर सकते।

20,000 या 2,000 जैसी किसी सीमा का कोई औचित्य नहीं है, इसे हटा कर हर एक रूपए का हिसाब जब तक नहीं रखा गया तब तक पारदर्शिता नहीं आ पाएगी । और अगर कोई लिमिट रहती भी है तो उसका कोई मतलब नहीं जब तक कि कोई सीमा न लगा दी जाए की 2,000 से कम राशि के इतने ही दान एक पार्टी ले सकती है। कॉर्पोरेट फंडिंग को कम से कम जब तक नहीं किया गया और पब्लिक फंडिंग का योगदान नहीं बढ़ा तब सही मायने में जन कल्याण नहीं हो सकेगा ।

(यह रिपोर्ट Youth Ki Awaaz के इंटर्न श्रेयस कुमार राय, बैच- फरवरी-मार्च,2017, ने तैयार किया है)

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