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GDP के लॉलीपॉप और चुनावी वादों पर कब सवाल उठाएगी जनता?

कभी सोचा है आज भी हमारी राजनीतिक पार्टियां क्यूं हमें मुफ्त बिजली, मुफ्त पानी, लैपटॉप, फ़ोन,साइकिल आदि-आदि देकर लुभाने की कोशिश करती हैं? आज भी वैसे ही वादे किए जाते हैं जैसे पहले किये जाते थे। जातिगत राजनीति आज भी हो रही है कल भी हो रही थी और शायद आगे भी होगी, गरीबी हटाने की बात का भी यही हाल है, शिक्षा का भी और विकास का भी। पर क्या सही में कुछ होता भी है?

ये सवाल कब और कौन पूछेगा और क्यूं पूछेगा? आप अपने प्रतिनिधि से भले ही खुश ना हों पर आप NOTA दबाने से कतराते हैं, क्यूं? सिर्फ इसलिए कि उसकी कोई अहमियत नहीं? फिर तो इन प्रतिनिधियों के वादों की भी कोई अहमियत नहीं है क्यूंकि ना तो ये कभी पूरे हो पाते हैं और ना ही पूरे किये जाते हैं। अगर पूरे कर दिए तो अगले चुनाव में क्या वादे करेंगे?

भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया की सबसे तेज़ गति से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था है। 2015 में भारत का सकल घरेलु उत्पाद (या जीडीपी) 2.3 ट्रिलियन डॉलर रहा। इस आर्थिक सुधार से देश के सामाजिक और आर्थिक स्थिति में कितना बदलाव आया है? देश के गरीब को इस आर्थिक सुधार का कितना लाभ हुआ है? महिलाओं को इस वृद्धि की वजह से कितना रोज़गार मिला है?

2015 में आए मानव विकास सूचकांक (ह्यूमन डेवेलपमेंट इंडेक्स) के मुताबिक़ हमारा देश भारत 188 देशों की सूची में 130वें पायदान पर रहा। यह ईरान (69वें), श्रीलंका (73वें) और मालदीव्स (104) से नीचे है। जबकि जीडीपी के मामले में ये सभी देश भारत से नीचे आते हैं। मानव विकास सूचकांक में यदि कोई देश अच्छा प्रदर्शन करता है तो इसका मतलब है कि उस देश के लोग ज्यादा स्वस्थ रहते हैं, लम्बे समय तक जीवित रहते हैं और उनके जीवन का स्तर अन्य देशों के मुकाबले अच्छा होता है। भारत को क्यूं ना 130वें पायदान पर रखा जाए? इन सब मापदंडों पर अवश्य ही भारत अन्य देशों से पीछे रहा है।

भारत में 100000 शिशुओं के जन्म के साथ-साथ 190 माताओं की मृत्यु हो जाती है। जबकि ईरान में 23 माताओं की मौत होती थी, श्रीलंका में 29, मालदीव्स में 31, भूटान में 120 और पाकिस्तान/ बांग्लादेश में 170। इसका कारण? सरकारी चिकित्सालय की कमी, उनकी दयनीय स्थिति, डॉक्टरों की कमी, डॉक्टरों की अनदेखी, खराब स्वास्थ्य व्यवस्था और पौष्टिक भोजन न ग्रहण कर पाना आदि। शिशु मृत्यु दर में भी अपना देश पीछे नहीं है। भारत में 1000 नवजात बच्चों में से करीबन 41 बच्चे मर जाते हैं। जबकि पड़ोसी मुल्क श्रीलंका में ये आंकड़ा सिर्फ 8.2 है, मालदीव्स में 8.4, भूटान में 29.7, नेपाल में 32.2, और बांग्लादेश में 33.2।

इसी प्रकार मानव पूंजी सूचकांक (ह्यूमन कैपिटल इंडेक्स) 2016 के अनुसार भारत 130 देशों की सूची में 105वें पायदान पर आता है। BRICS राज्यों में भारत की स्थिति सबसे बुरी है। रूस इस सूचकांक में 28वें पायदान पर है, चीन 71वें पर, ब्राज़ील 83वें, और दक्षिण अफ्रीका 88वें पायदान पर। फ़िनलैंड ने इस सूचकांक में पहला पायदान प्राप्त किया। मानव पूंजी सूचकांक किसी भी देश की क्षमता का वो सूचक है, जिसमें हमें पता चलता है कि वो देश अपने लोगों के कौशल का कितना और किस तरह आर्थिक विकास के लिए उपयोग कर पाता है तथा अपने नागरिकों के कौशल के विकास में उसकी क्या भूमिका रहती है।

अभी कुछ दिन पहले ऑक्सफेम की एक रिपोर्ट आई थी जिसमें ये बताया गया कि भारत के सबसे अमीर 1 फीसदी लोगों के पास देश की 58 फीसदी संपत्ति है और बाकी 99 फीसदी के बाद बाकी संपत्ति। आप पाठक अगर उन 1 फीसदी में से हैं तो आपको इन सवालों पर विमर्श करने की जरूरत नहीं है। पर अगर आप बहुमत वाले खेमे के है तो ज़रा इस पर विचार करिए। अर्थव्यवस्था में वृद्धि किस को लाभ पहुंचा रही है? क्या देश के आर्थिक विकास में गरीबों का भी विकास हुआ है?

श्रेयस  Youth Ki Awaaz हिंदी के फरवरी-मार्च 2017 बैच के इंटर्न हैं।

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