मैं जैसे ही कैब में बैठता हूं तो पता नहीं क्यूं पूछ लेता हूं कि आप कहां के रहने वाले हो। मुंबई में कार और ऑटो चलाने वाले ज़्यादातर लोग यूपी और बिहार से होते हैं। कोई अपनी तरफ का मिल जाए तो उससे बात करने का अपना सुख है। मुंबई में अपनी बोली की थोड़ी सी महक भी मिल जाये तो लगता है घर पर सब ठीक है। कल जो साहब मिले उनका नाम था मोहम्मद फ़ैयाज़ अशफाक़, रहने वाले मुजफ्फरपुर के।
बात कुछ ऐसे शुरू हुई। मोहम्मद ने अगली कार कौन सी खरीद लें इस बारे में पूछा। मुझे कार-वार का कोई आइडिया ज़्यादा था नहीं, फिर भी अपने हिसाब से मैंने कुछ बताया। शनिवार के चक्कर में कई जगह रात में ड्रिंक एंड ड्राइव वाली चेकिंग चल रही थी। पता नहीं कहां से मोहम्मद ने कहा कि “सर टाइम कितना कम है।” मुझे लगा शायद घर पहुंचने में टाइम बहुत कम बचा है, मैंने बड़ा ही कैजुअल जवाब दिया। “हां यार, ट्रैफिक वाले नहीं होते तो और कम लगता।” इस पर मोहम्मद साहब ने कहा, “सर मैं ज़िंदगी की बात कर रहा था कि टाइम कितना कम है।”
इसके बाद मोहम्मद ने बताया कि आज वो ओवर टाइम कर रहा है, क्योंकी अगले दिन फैमिली को पूरे दिन घुमाने का प्लान है। एक दिन गाड़ी नहीं चलेगी तो उसकी कमाई आज ही एक्सट्रा टाइम चलाकर पूरा कर रहा है। अगली चीज जो मोहम्मद ने बताई वो ये कि जब ये OLA/Uber नहीं था तो उसको कार में किसी के 50 लाख रुपये मिल गए थे। उसने ढूंढकर उस आदमी को पैसा लौटाया तो उस आदमी ने रहने के लिए अपना घर दे दिया। “यहां तो मौत आ जाएगी सर लेकिन मरने के बाद वाली दुनिया में मौत की मौत हो जाती है। वहां मौत नहीं आती, वहां पर हिसाब कैसे देंगे?”
मोहम्मद ने बड़े प्यार से बिना ज्ञान चिपकाये बता दिया कि हम सबके पास टाइम बहुत कम है। लाइफ में फैमिली सबसे ज़्यादा इंपॉर्टेंट है और कोई भी वो काम जिसका जवाब आप अपने आप को ना दे पाएं वो नहीं करना चाहिए। ये बात भले ही एक भुलावा हो कि इस दुनिया में सब कुछ ठीक है, लेकिन इस भुलावे की उम्मीद देने वाले लोग कितने कम है। मोहम्मद से बात करके यही लगा कि इस दुनिया में सब ठीक है और अगर ठीक नहीं है तो इस दुनिया के बाद वाली दुनिया में सब ठीक हो ही जाएगा। ये उम्मीद क्या कम है कि आज की रात चाहे जैसी हो कल का दिन ठीक वैसा होगा जैसा हमने सोच रखा है।
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फोटो आभार: फ्लिकर